यूपी चुनाव: मीडिया बिका बाज़ार में…



(उत्‍तर प्रदेश चुनाव को कवर कर रहे पत्रकारों के कुछ ऐसे अनुभव हैं जो अखबार में तो नहीं छप सकते, इसलिए वे इसे अपने सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं। ऐसे दो अनुभव पेड न्‍यूज़ को लेकर दो पत्रकारों ने अपने फेसबुक पर लिखे हैं: अजय प्रकाश और ज़ीशान अख्‍़तर। हम नीचे दोनों टिप्‍पणियां छाप रहे हैं ताकि यह पता चल सके कि चुनाव के मौसम में खबरों की सौदेबाज़ी कैसे हो रही है : संपादक)


अजय प्रकाश, वरिष्‍ठ पत्रकार, दिल्‍ली

मैं आजकल उत्तर प्रदेश में ही हूँ और कई मित्र प्रत्याशी हैं जो चुनाव लड़ रहे हैं। तो वे लोग खबर छपवाने के लिए मीडिया भी खरीद रहे हैं। मीडिया का कहना है कि चुनाव के दौरान प्रत्याशी की खबर छापना विज्ञापन है इसलिए पैसा दो। उनमें से दो की मीडिया खरीद के दौरान मैं भी बैठा रहा। एक विधायक प्रतिनिधि मित्र ने कहा, आप ही बात कर लीजिए, देखते हैं कितने पर मानते हैं। मैंने कहा, मुझसे न हो पायेगा, मैं उनको बोल-बाल दूंगा, पर पत्रकार होने के नाते एक सीधी वार्ता देखना चाहता हूँ। पहली खरीद का क्षेत्र शामली मंडल था और दूसरे का इलाहाबाद मंडल। बड़ा ही जबरदस्त अनुभव था, चुनाव बीत जाये तो लिखता हूँ। पर इसमें कोई शक नहीं कि मीडिया की लगाने वाली बोली से आप क्षेत्र की आर्थिकी और सामाजिक हैसियत बहुत अच्छे से समझ जायेंगे।

मीडिया 5 तरह से प्रत्याशियों और पार्टियों से पैसा वसूल रही है…

  1. विज्ञापन के रूप में
  2. खबरनुमा विज्ञापन के रूप में
  3. खबर के रूप में
  4. चुप रहने के रूप- मतलब प्रत्याशी के बारे में न नेगेटिव न पॉज़िटिव
  5. केवल सकारात्मक खबर छापने के रूप में

एक और तरीका है जो टीवी में खूब लोकप्रिय है, ‘कम्प्लीट पैकेज’। इसके तहत चुनाव के दौरान पार्टी को मुश्किल सवालों से बचाया जाता है। पर यह डील चुनाव से साल- छह महीने पहले हो जाती है, जिसे चैनल का रुझान कहा जाता है। रुझान का सबसे चर्चित मॉडल है, मुश्किल सवालों के वक्त उस पार्टी को या उससे जुड़े प्रतिनिधि को ब्रेक के बाद दिखाया जाना।आमतौर पर दर्शक ब्रेक से पहले ही मुश्किल सवालों और उसपर प्रतिनिधि की ओर से आयी राय सुनकर अपना मिजाज बना लेता है। इसका दूसरा फॉर्म है टीवी डिबेट। जिस पार्टी या प्रतिनिधि से पैसा लिया गया है उसके पक्ष के तीन पैनलिस्ट बैठाना और जिससे नहीं लिया है उसके सबसे कमजोर लोगों को बुलाना या 3 के मुकाबले 1 को बुलाना।

ज़ीशान अख्‍़तर, ऑनलाइन पत्रकार, झांसी

अजय प्रकाश साहब मीडिया मंडी का भाव और बेचने-ख़रीदने के तरीके बता रहे हैं. सूखाग्रस्त बुंदेलखंड की स्थिति और खराब है. कुछ दिन पहले किसी के जरिये सूचना पहुंचाई गयी कि एक नेताजी की लिस्ट में मेरा नाम लिखा है. कहा कि नोटबंदी चल रही है इसलिए थोड़ा दिक्कत है. वरना ज़्यादा करते. कहा- चुनाव जीते तो काफी कुछ किया जाएगा. आपका नाम अलग लिस्ट में भी है. हमारे फोटो जर्नलिस्ट ने फ़ोन करने वाले से कहा कि आप बात कर लें. और अगर रुपये की बात करना चाह रहे हैं तो बात न करें.

इस बार मंडी का भाव अच्छा नहीं है. कैंडिडेट नोटबंदी का बहाना बना रहे हैं. इस बहानेबाजी को सुन कई लोग मोदी जी को गरियाते नज़र आये. जाहिर है सीजन पर असर पड़ा है. एक बड़ी न्यूज एजेंसी के पत्रकार को एक करोड़पति प्रत्याशी के यहाँ से 2500 का लिफ़ाफ़ा पकड़ा दिया गया. अगर कोई कुछ साल पुराना है तो 10 हज़ार, थोड़ा सीनियर है तो (चैनल या अखबार की रेपुटेशन के हिसाब से) 20 हज़ार, प्राचीन यानी ज्यादा सीनियर है तो 30 हज़ार. ये खुला रेट है. 100-100 पत्रकारों की लिस्ट बनी है. देकर बाकायदा साइन कराये जाते हैं ताकि फिर से हाथ न मार सकें. कुछ की बात अंदरखाने में इससे ज्यादा की बन रही है.

आप तो 10 हज़ार ले जाओ. बच्चों की मिठाई के लिए. अच्छी बुरी कैसी भी खबर न छापना, कुछ न करना’ कह कर आमंत्रित किया जा रहा है. अधिकतर में हर्ष है. बढ़िया इंतज़ाम हो रहा है. वहीँ बड़े अखबारों का हाल कुछ ठीक नहीं. अखबार हमेशा की तरह चाहते हैं कि 50 लाख से एक करोड़ का पैकेज हो, लेकिन करोड़पति प्रत्याशी नोटबंदी का बहाना बना रहे हैं. खबर वालों की खबर है कि बात बनने में मुश्किल हो रही है तो एक राष्ट्रीय अखबार द्वारा एक को कम और दूसरे को (जिससे डील नहीं भी हुई) ज्यादा छापा जाने लगा. पहले वाले को डराने के लिए ऐसा किया गया.

जो नहीं ले रहे उनके लिए कहा जा रहा है कि नहीं लोगे तो न लो. ईमानदारी में खबर छाप कर भी क्या कर लोगे. कौन सा असर पड़ेगा. ज़्यादा होगा तो चुनाव बाद देख लेंगे.