प्रधानमंत्री के शपथ लेते ही BHU में निकला था गैस का टेंडर, संघी कुलपति आते ही हो गया मौत का इंतज़ाम!



बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्‍पताल में जून में ज़हरीली नाइट्रस ऑक्‍साइड गैस से हुई मौतों पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने भले ही जांच बैठाने का आदेश दे दिया हो और कुलपति से हलफ़नामा भी मांगा हो, लेकिन इन मौतों के पीछे का सियासी गठजोड़ इतना खतरनाक है कि इंसाफ़ को लेकर संदेह पैदा होता है। कोई चाहे तो इसे संयोग मान सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ लेते ही बीएचयू में गैस सप्‍लाइ का टेंडर क्‍यों जारी किया गया। कोई चाहे तो इसे भी संयोग मान सकता है कि छात्र आंदोलन के बहाने से बीएचयू में कुलपति इलाहाबाद से क्‍यों लाया गया। संयोग ही मानना हो तो यह तथ्‍य भी बुरा नहीं है कि पांच महीने से लटके पड़े टेंडर को कुलपति ने अपनी नियुक्ति के अठारहवें दिन कैसे पास कर दिया। क्‍या यह भी संयोग हो सकता है कि जिसे टेंडर दिया गया, वह भारतीय जनता पार्टी का विधायक था और इलाहाबाद से ही था ? 
मीडियाविजिल की खास श्रृंखला में बनारस से शिव दास की अगली रिपोर्ट

– संपादक

 


वाराणसी से शिव दास की रिपोर्ट
”यूपी के गैस चैम्‍बर” नामक इस श्रृंखला में अब तक हम जान चुके हैं कि जून में बीएचयू में हुई मौतों के पीछे भाजपा विधायक हर्ष वर्धन वाजपेयी की कंपनी से आपूर्ति की गई ज़हरीली गैस का हाथ था। इन्‍हें गलत तरीके से बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने ठेका दिया। सरकारी जांच कहती है कि वाजपेयी की कंपनी के पास गैस आपूर्ति का लाइसेंस नहीं था। जो गैस दी गई, वह मेडिकल ग्रेड की नहीं थी। इस मामले में पीआइएल लगी। कोर्ट का आदेश आया। अब जांच होगी। वनांचल एक्‍सप्रेस और मीडियाविजिल इस मामले की जांच बीते दो महीनों से कर रहे हैं। जांच की ताज़ा कड़ी सीधे दिल्‍ली और प्रधानमंत्री से जाकर जुड़ती है, चुनाव से पहले जिनका मशहूर नारा था, ”न खाऊंगा न खाने दूंगा”। उन्‍हीं नरेंद्र मोदी की नाक के नीचे उनकी संसदीय सीट पर उनके शपथ लेने के चौबीस घंटे के भीतर एक घपला शुरू हुआ था जिसकी परतें आज न्‍याययिक जांच में खुलने के कगार पर आ चुकी हैं।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की अधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेज की मानें तो सर सुंदरलाल चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक ने वर्ष 2014 में मई के आखिरी सप्ताह में मेडिकल ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों की आपूर्ति के लिए निविदा (टेंडर) आमंत्रित की थी। वित्तीय वर्ष 2014-15 के लिए आमंत्रित इस निविदा को जमा करने की आखिरी तारीख 26 जून 2014 निर्धारित थी और इसका हर साल टर्न ओवर डेढ़ करोड़ रुपये था। चिकित्सा अधीक्षक कार्यालय के दस्तावेजों पर गौर करें तो भाजपा विधायक हर्ष वर्धन बाजपेयी की कंपनी ‘पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड, 42, इंडस्ट्रियल कॉलोनी, चक दाउद नगर, नैनी, इलाहाबाद’ ने 25 जून 2014 की तिथि में अपना कोटेशन जमा किया था। कंपनी की ओर से डाले गए कोटेशन में आवश्यक प्रमाण-पत्रों और दस्तावेजों की कमी की वजह से निविदा की मंजूरी की प्रक्रिया लटक गई थी।

उस वक्‍त बीएचयू के कुलपति प्रो. लालजी सिंह हुआ करते थे। वे भाजपा नेता हर्ष वर्धन बाजपेयी की कंपनी को ठेका देने के पक्ष में नहीं थे। एक तो वे पहले से ही कुछ विवादों में घिरे थे और 21 अगस्त को उनका कार्यकाल भी खत्म हो रहा था, लिहाजा वे किसी नए विवाद में पड़ना नहीं चाह रहे थे। इसके पीछे ठोस तकनीकी कारण भी थे। भाजपा नेता की कंपनी के पास मेडिकल गैसों के उत्पादन और वितरण का कोई अनुभव नहीं था और न ही उसके पास इसका व्यापार करने का लाइसेंस। इस तरह मेडिकल गैसों की आपूर्ति का ठेका आबंटन लंबित रहा।

लाली सिंह के जाने के बाद उसी साल 22 अगस्त को आईआईटी, बीएचयू के निदेशक प्रो. राजीव संगल ने विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति का कार्यभार संभाला लेकिन वे भी इस ठेके के आवंटन पर कोई निर्णय नहीं ले सके, हालांकि चिकित्सा अधीक्षक के पत्र की एक नोटिंग बताती है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने कंपनी का कोटेशन मंजूर कर लिया था। प्रो. संगल 27 नवंबर तक विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति का दायित्व निभाते रहे। कंपनी ने 3 नवंबर को अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को पत्र लिखकर ऑक्सीजन गैस की आपूर्ति के लिए रेट कॉन्ट्रैक्ट पर गैसों की आपूर्ति की स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध किया था, लेकिन संगल के राज में भी मामला लंबित रहा।

इसी बीच विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति करवट ले रही थी। मई, 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के साथ ही विश्वविद्यालय में छात्रसंघ का चुनाव कराने की मांग जोर पकड़ने लगी थी। छात्र संगठन छात्र संघ की बहाली को लेकर आंदोलन छेड़ चुके थे। 20 नवंबर को छात्र संगठनों के आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया जिसमें कई छात्रों को गंभीर चोटें आईं और आगजनी की घटना हुई। आनन-फानन में 24 नवंबर को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कोर्ट की बैठक हुई। इसमें इलाहाबाद के अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी को विश्वविद्यालय का नया कुलपति नियुक्त करने का फैसला लिया गया। प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सक्रिय सदस्य हैं और उन्हें इस पर गर्व है, हालांकि वे संगठन के पदाधिकारी कभी नहीं रहे।

नवनियुक्त कुलपति ने 27 नवंबर 2014 को अपना कार्यभार संभाल लिया और केवल बीस दिनों के भीतर वो काम कर दिखाया जो प्रधानमंत्री  के शपथ ग्रहण के बाद से लटका पड़ा था। उन्‍होंने सर सुंदरलाल चिकित्सालय में मेडिकल ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों की आपूर्ति का ठेका भाजपा विधायक हर्ष वर्धन बाजपेयी की कंपनी को आबंटित कर दिया। कुलपति के कार्यभार संभालने के बीसवें दिन चिकित्सा अधीक्षक कार्यालय ने 15 दिसंबर 2014 को उक्त कंपनी के नाम एक पत्र लिखा जिसमें सर सुंदरलाल चिकित्सालय में मेडिकल ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों की आपूर्ति की दर का उल्लेख करते हुए उक्त गैसों की आपूर्ति का निर्देश दिया गया, हालांकि इस पत्र पर चिकित्सा अधीक्षक का हस्ताक्षर 19 दिसंबर 2014 को हुआ।

इस कंपनी के पास इन गैसों के उत्पादन और वितरण का ना कोई अनुभव था और ना ही लाइसेंस। इलाहाबाद मंडल के सहायक आयुक्त (औषधि) केजी गुप्ता ने यह स्वीकार किया है। उन्होंने गत 6 जुलाई को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दी गई जानकारी में स्पष्ट लिखा है कि “मेसर्स पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड” कंपनी को औषधि विभाग द्वारा किसी भी प्रकार के मेडिकल गैस उत्पादन का लाइसेंस जारी नहीं किया गया है।

विश्वविद्यालय की आमंत्रित निविदा के महत्वपूर्ण निर्देशों के बिन्दु13 (iv) में स्पष्ट लिखा हुआ है कि मेडिकल गैसों के उत्पादन और वितरण से संबंधित सरकारी संगठनों अथवा संस्थाओं की जांच रिपोर्टों और प्रमाण-पत्रों की अनुपस्थिति में कोटेशन निरस्त करने का अधिकार विश्वविद्यालय प्रशासन के पास सुरक्षित है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने भाजपा विधायक की कंपनी के कोटेशन को ना केवल मंजूर किया बल्कि उसे उक्त मेडिकल गैसों की आपूर्ति का ठेका दे भी दिया, जबकि यह कंपनी मशीनों और उनके कलपुर्जों का उत्पादन करती थी। यह बात हम पिछले अंक में बता चुके हैं।

इस संबंध में जब सर सुंदरलाल चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. ओपी उपाध्याय से उनके मोबाइल नंबर 8004929846 पर बात करने की कोशिश की गई तो वह स्वीच ऑफ मिला। उनके व्हाट्सअप नंबर 9415336707 पर जब काल किया गया तो उनके कार्यालय में कार्यरत अन्य व्यक्ति ने काल रिसीव किया और बताया कि वे राउंड पर गए हैं।


जारी

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