नेपाली परिवार के आत्मदाह मामले में विजय रुपानी के खिलाफ़ SC में PIL



गुजरात विधानसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान से महज हफ्ते भर पहले मुख्‍यमंत्री विजय रुपानी चार साल पुराने एक संगीन मामले में फंस सकते हैं। शुक्रवार 1 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई होनी है जिसमें मुख्‍य आरोपी भाजपा नेता विजय रुपानी हैं। मामला चार साल पहले राजकोट निवासी एक नेपाली परिवार के पांच सदस्‍यों की मौत से जुड़ा है जिसमें एक सदस्‍य ने मरते वक्‍त अपने बयान में मुख्‍य आरोपी रुपानी को ठहराया था। याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड पियोली इस मामले की पैरवी कर रही हैं।

राजकोट के कौशिक चंद्रकांतभाई व्‍यास की लगाई अनुच्‍छेद 32 के तहत यह याचिका गुजरात के गृह सचिव के माध्‍यम से स्‍टेट ऑफ गुजरात, राजकोट के पुलिस आयुक्‍त और विजयभाई आर. रुपानी के खिलाफ़ है। याचिका के पहले ही पैरा में कहा गया है कि ”मौजूदा रिट याचिका संविधान के अनुच्‍छेद 32 के तहत दायर की जा रही है जिसका उद्देश्‍य प्रतिवादियों, खासकर प्रतिवादी संख्‍या 3 (विजय रुपानी) की अवैध गतिविधियों के खिलाफ सुरक्षा प्राप्‍त करना है, जो अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग कर के याचिकाकर्ता को धमका रहा है और जिसने श्री भरत मानसिंहभाई नेपाली और उसके परिवार के चार अन्‍य सदस्‍यों की दुर्भाग्‍यपूर्ण आत्‍महत्‍या के मामले में पुलिस द्वारा शुरू की गई जांच को प्रभावित किया है।”

याचिका के मुताबिक मामला राजकोट की एक सहकारी आवास समिति में 850 वर्ग गज के एक भूखंड से जुड़ा है जिसे 1978 के आसपास सोसायटी के नेपाली चौकीदार मानसिंहभाई को दे दिया गया था जिस पर उसने एक अस्‍थायी मकान बनवा लिया और रहने लगा। समय के साथ ज़मीन का दाम बढ़ा तो सोसायटी के पदाधिकारियों ने मानसिंहभाई के बेटों भरतभाई, गिरीशभाई और महेंद्रभाई से ज़मीन खाली करने को कहा जिससे उन्‍होंने इनकार कर दिया। इसके बाद भाजपा के कुछ नेताओं की मदद से एक सौदा हुआ कि विजय रुपानी इस ज़मीन को खाली करवाएंगे और उसके बदले में यह ज़मीन उनके द्वारा चलाए जा रहे पुजित रुपानी मेमोरियल ट्रस्‍ट को हस्‍तांतरित कर दी जाएगी। रुपानी ने अपने राजनीतिक रसूख का इस्‍तेमाल कर के पहले इस प्‍लॉट से बिजली पानी का कनेक्‍शन कटवाया, उसके बाद इसे नगर निगम का कचरा निस्‍तारण स्‍थल बनवा दिया।

राजकोट नगर निगम ने 6 अगस्‍त 2012 को आदेश जारी किया कि सात दिनों के भीतर इस प्‍लॉट पर बना मकान ढहा दिया जाएगा। इसके बाद 31 मार्च 2013 को बसमतीबेन मानसिंह नेपाली ने पुलिस को एक पत्र लिखा कि नेताओं और सोसायटी के पदाधिकारियों द्वारा डाले जा रहे दबाव के चलते उनके मन में खुदकुशी का विचार आ रहा है। आखिर में 3 अप्रैल 2013 को दिन में करीब 12 बजे राजकोट नगर निगम के परिसर में भरतभाई, आशाबेन, गिरीशभाई, रेखाबेन, बासमतीबेन, गौरीबेन और मधुरा ने खुद को आग लगा ली। इन सात में से केवल मधुरा और गौरीबेन की ही जान बच सकी। सभी पांच मृतकों के मरते वक्‍त पुलिस ने बयान दर्ज किए जिनमें गिरीशभाई ने अपने बयान में दो लोकल कॉरपोरेटरों का नाम लिया।

याचिका कहती है कि कुछ स्‍थानीय लोगों ने गिरीशभाई का आखिरी बयान कैमरे पर रिकॉर्ड किया था जिसमें उन्‍होंने विजय रुपानी सहित कुछ और बीजेपी नेताओं का नाम लिया था और कहा था इनके दबाव के चलते वे खुदकुशी कर रहे हैं। बयान का youtube वीडियो नीचे है:

https://youtu.be/uIgaKZsOunw

इस मामले को चार साल हो गए लेकिन आज तक जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है और विजय रुपानी को इस मामले से बचा लिया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि वह संविधान के अनुच्‍छेद 226 के अंतर्गत माननीय उच्‍च न्‍यायालय के स्‍थान पर अनुच्‍छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में इसलिए याचिका कर रहा है क्‍योंकि रिट याचिका में जो कथित धमकियों का वर्णन है वे याचिकाकर्ता तक आ रही हैं क्‍योंकि वह प्रतिवादी संख्‍या 3 के खिलाफ केस को देख रहा है जो कि फिलहाल गुजरात का मुख्‍यमंत्री है। याचिकाकर्ता का कहना है कि केस फाइल करने के लिए उसने अमदाबाद में उच्‍च न्‍यायालय के कुछ वकीलों से संपर्क किया था जिन्‍होंने इसे स्‍वीकार करने से इनकार कर दिया और याचिककर्ता को मामला निपटा देने की सलाह दी।

याचिका के पैरा संख्‍या 2.22 में कहा गया है कि आज भी याचिकाकर्ता और उनके परिजनों को विजय रुपानी के गुंडे धमकी दे रहे हैं। याचिकाकर्ता से कहा गया है कि एक बार चुनाव खत्‍म हो जाएं उसके बाद याचिकाकर्ता और उसके परिवार को खत्‍म कर दिया जाएगा। याचिका में मांग की गई है कि 3.4.2013 को हुई पांच नेपाली व्‍यक्तियों की खुदकुशी की एक स्‍वतंत्र एजेंसी से जांच करवाने का आदेश दिया जाए, याचिकाकर्ता और उसके परिवार की स्‍वतंत्रता व उसके जीवन की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का आदेश दिया जाए, उसे और उसके परिवार को मिली धमकियों की जांच का आदेश दिया जाए और महेंद्रभाई मानसिंह विश्‍वकर्मा (नेपाली) की मौत की जांच का भी आदेश जारी किया जाए।