दीवाली पर मंदिर उबाल, यानी ‘सत्ताहरण’ को ‘मोदी मॉडल’ के साथ ‘योगी मॉडल’ पर भी दाँव !



सिर्फ उबाल पैदा करने के लिये संघ की बिसात पर दीपावली के दिन योगी कहेगें, ” गैरविवादित जमीन पर राम मंदिर निर्माण शुरु होगा “

पुण्य प्रसून वाजपेयी


योगी आदित्यनाथ दीपावली के दिन राम मंदिर को लेकर कौन सा एलान करने वाले हैं? दिल्ली में दो दिन तक अखिल भारतीय संत समिति को बैठक करने की जरुरत क्यों पड़ी? और दशहरा के दिन अचानक नागपुर में सरसंघचालक मोहन भागवत की जुबान पर राम मंदिर निर्माण कैसे आ गया?  इस बीच  सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई जनवरी तक टाली तो आखिर क्यों संघ से लेकर संत और बीजेपी सांसदो से लेकर विहिप तक सुप्रीम कोर्ट को ही देरी के लिये कठघरे में खडा क्यों करने लगा?  जाहिर है ये ऐसे सवाल हैं जिनके तार राजनीति से जोड़िएगा तो एक ही जवाब आयेगा-‘ कुछ होगा नहीं सिर्फ समाज और देश में राम मंदिर के नाम पर उबाल पैदा करने की कोशिश की जा रही है।’

तो अगला सवाल ये भी हो सकता है कि क्या इस राजनीतिक उबाल से 2019 में मोदी सत्ता बरकरार रह जायेगी । असल उलझन यही है कि निशाने पर हर किसी के 2019 है लेकिन अलग अलग खेमो के लिये रास्ते इतने अलग हो चुके हैं कि राममंदिर का जाप करने वाले और राममंदिर के निर्माण में फैसला लेने में अहम भूमिका निभाने वाले ही आपस में लड़ रहे हैं । और यही से नया सवाल निकल रहा है कि जब राहुल गांधी की काँग्रेस मंदिरमय हो चुकी है। मुसलमान खामोशी से 2019 की तरफ देख रहा है । बीजेपी की सोशल इंजिनियरिंग खुल्मखुल्ला जातीय राजनीति को उभार चुकी है । विकास का नारा पंचर हो रहा है। इकोनॉमिक माडल सत्ता और सत्ता से सटे दायरो को भ्रष्ट्र कर चुका है। तो फिर वह कौन सा रास्ता है जो 2019 में जीत दिला दें । जाहिर है लोकतंत्र कभी फैसला नहीं चाहता वह सिर्फ फैसले से पहले सियासी उबाल चाहता है जिससे वोटर इस भ्रम में फंसा रह जाये कि सत्ता बदलती है तो क्या होगा । या सत्ता बरकरार रहेगी तो ये ये हो जायेगा । तो फिर लौटिये राम मंदिर के उबाल पर ।

माना जा रहा है कि संघ परिवार ही अब अपने सियासी डिजाइन को लागू कराने में लग गया है। इसीलिये दिल्ली में जब अखिल भारतीय संत समीति मे राम मंदिर निर्माण के लिये धर्मसभा शुरू की तो उसके पीछे संघ खडा हो गया। यानी जिस संत समीति के रिश्ते संघ या विहिप से अच्छे नहीं है, उस संत समिति की दो दिनो की धर्म सभा में संघ के बेहद करीबी दो शख्स पहुंचे । पहले, प्रयाग के वासुदेवानंद सरस्वती और दूसरे पुणे के गोविंददेव गिरी । दोनो ही इस आशय से आये कि धर्म सभा अखिर में ये मान जाये कि बीजेपी की सत्ता 2019 में बनी रहनी चाहिये । और ध्यान दीजिये तो दूसरे दिन धर्म सभा ये कहने से नहीं हिचकी कि , “अगर जीवित रहना है, मठ-मंदिर बचाना है, बहन-बेटी बचानी है, संस्कृति और संस्कार बचाने है तो इस सरकार को दुबारा ले आना है।” तो कहीं नरेन्द्र मोदी का नाम नहीं लिया गया लेकिन बीजेपी सरकार बनी रहनी चाहिये तो दो सवाल उठ सकते है । पहला, बिना मोदी इस सरकार की बात हो नहीं सकती और दूसरा बीजेपी की सत्ता बरकरार रहे चाहे माइनस मोदी सोचना पड़े। तो अगला सवाल होगा क्या वाकई संघ 2019 की राजनीति को डिजाइन इस रुप में कर रही है? इसका जवाब संघ की नई रणनीति से समझा जा सकता है कि 1984 से 2014 तक कभी संघ ने राम मंदिर निर्माण के लिये अदालत के फैसले का जिक्र नहीं किया । यानी अदालत फैसला देगी तो ही राम मंदिर की तरफ बढ़ेंगे, ऐसा ना तो 1984 में विहिप के आंदोलन शुरु करने के समय कहा गया, ना ही 1990 में लालकृष्ण आडवाणी जब सोमनाथ से अयोध्या के लिये रथयात्रा लेकर निकले तब सोचा या कहा गया । बात तो यही होती रही कि राम मंदिर हिन्दुओ की भावनाओ से जुडा है और सरकार को आर्डिनेंस लाना चाहिये । लेकिन 2014 में नरेन्द्र मोदी ने विकास शब्द सियासी तौर पर इस तरह क्वाइन किया कि राम मंदिर शब्द ही लापता हो गया। मोदी सत्ता के साढे चार बरस बीतने के बाद झटके में उसे उभारा गया है तो सवाल फिर दो हैं – संघ साढे़ चार बरस खामोश क्यो रहा? और साढे चार बरस बाद भी मोदी खामोश क्यो हैं और योगी राम मंदिर पर किसी बड़े एलान की बात क्यो करने लगे हैं?

तो यहाँ भी दो तथ्यो पर गौर करना जरुरी है।। पहला, योगी आदित्यनाथ संघ परिवार के सदस्य नहीं रहे हैं बल्कि सावरकर की हिन्दु महासभा से जुड़े रहे हैं और दूसरा संघ ने हमेशा खुद के विस्तार को ही लक्ष्य माना है, जिससे भारत में घटने वाली हर घटना के साथ वह जुड़े या बिना उसके कोई घटना परिणाम तक पहुंचे ही नहीं । कह सकते हैं कि राम मंदिर भी संघ परिवार के लिये एक औजार की तरह रहा है और सत्ता भी संघ के लिये एक हथियार भर है। पर दूसरी तरफ, हिन्दू महासभा पूरी तरह हिन्दुत्व का नगाड़ा पीटते हुये उग्र हिन्दुत्व की सोच को हमेशा ही पाले रहा है और 2013 में जब गोरखपुर में गोरक्षा पीठ में संघ की बैठक हुई तो योगी आदित्यनाथ के तेवर राम मंदिर को लेकर तब भी उग्र थे। संघ के लिये ये बेहतरीन मॉडल था कि दिल्ली में मोदी मॉडल काम करे और अयोध्या की जमीन यानी यूपी में योगी माडल काम करें । लेकिन अब जब 2019 धीरे धीरे नजदीक आ रहा है और जोड़-धटाव मोदी सरकार को लेकर संघ भी करने लगा है तो उसकी सबसे बडी चिंता यही है कि सत्ता अगर गंवा दी तो संघ ने बीते साढे़ चार बरस के दौर में सत्ता से सटकर जो जो किया उसका कच्चा- चिट्टा भी खुलेगा। और अगर सत्ता गंवाने के बदले बीजेपी माइनस मोदी की सोच के सामानातंर योगी मॉडल उभरा जाये तो फिर 2019 में हार बीजेपी या संघ परिवार या साधु संतो की नहीं होगी बल्कि ठीकरा नरेन्द्र मोदी पर फोड़ा जा सकता है।

जाहिर है आज की तारीख में संघ के भीतर इतनी हिम्मत किसी की नहीं है कि वह नरेन्द्र मोदी से टकराना तो दूर जवाब देने की भी स्थिति में हो । तो संघ की बिसात पर योगी मॉडल दो दृष्टि से रखा जा सकता है। पहला यह कि मोदी मॉडल के सामने हिन्दुत्व का चोगा पहने राहुल गांधी खड़े नजर न आयें। दूसरा, योगी मॉडल समाज में उबाल पैदा कर सकता है क्योकि वह कल्याण सिंह की तरह देश के सबसे बडे सूबे के सीएम ह जहा भगवा बिग्रेड के इशारे तले कानून का राज रेंग सकता है। और उबाल का मतलब यही होगा कि योगी आदित्यनाथ झटके में दीपावली के दिन एलान कर दें कि वह अयोध्या की गैर विवादास्पद जमीन पर मंदिर निर्माण शुरु कर देंगें। यानी देश में मैसेज यही जाये कि सुप्रीम कोर्ट को तो फैसला विवादास्पद जमीन पर देना है। पर गैर विवादास्पद जमीन पर मंदिर निर्माण का एलान करने में कोई परेशानी नहीं है। इसके बाद अयोध्या से दूर मोदी मॉडल और अयोध्या को दिल में बसाये योगी मॉडल बराबर काम करने लगेगें। योगी के माडल के पीछे हंगामा करते स्वयंसेवको की टोली भी नजर आने लगेगी। और तब ये सवाल कोई पूछेगा नहीं कि विवादास्पद जमीन पर जब तक फैसला नहीं आता है, तब तक 67 एकड़ जमीन, जो विवादित जमीन से सटी हुई है और पीवी नरसिंह राव के दौर में इसपर कब्जा किया गया था, उस पर भी मंदिर निर्माण तब तक किया नहीं जा सकता है जब तक विवादित जमीन पर फैसला ना आ जाये।

यानी शोर-हंगामा तत्काल की जरुरत है क्यकि आर्डिनेंस लाने के पक्ष में मोदी सरकार नहीं है। और इसके पीछे का वह सच है जो 1992 में बाबारी विध्वंस के बाद 1996 के चुनाव में उभर कर आ गया था। यानी तब हिन्दुत्व का उबाल पूरे यौवन पर था लेकिन तब भी बीजेपी की सरकार बन कर चल नहीं पायी। यानी जोड़-तोड़ कर वाजपेयी ने सरकार तो बनायी लेकिन बहुमत फिर भी कम पड़ा। 13 दिनो में सरकार गिर गई। मौजूदा वक्त में बहुमत से ज्यादा आँकड़ा मोदी सत्ता के पास है, लेकिन वह मंदिर के हवन में हाथ जलाने को तैयार नहीं है। यानी संघ की जरुरत है राम मंदिर के नाम पर समाज में उबाल कुछ ऐसा पैदा हो जिससे मोदी-योगी माडल दोनो ही चले। और ना चले तो फिर हेडगेवार को पूर्व काँग्रेसी और स्वतंत्रता सेनानी बताते हुये प्रणव मुखर्जी तक को नागपुर आमंत्रित किया ही जा चुका है। यानी सत्ता पर काबिज रहने की जोड-तोड 2019 तक चलती रहेगी यह मान कर चलिये ।

लेखक मशहूर टीवी पत्रकार हैं।