अंधेरी सुरंग में फंसी बिहार की राजनीति के बीच RLSP की नीतीश हटाओ पदयात्रा


FILE- In this June 5, 2013 file photo, Bihar state Chief Minister Nitish Kumar, listens to a speaker during a conference of the chief ministers of various Indian states on Internal Security in New Delhi, India. Kumar resigned from his post of Bihar Chief Minister on Wednesday. (AP Photo/Saurabh Das, file)


आज बिहार में मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के इस्‍तीफे की मांग को लेकर राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्‍यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पदयात्रा निकाल रहे हैं। दो दिन पहले उन्‍होंने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर के कहा था कि चमकी बुखार को लेकर बरती गई सरकारी लापरवाही और बिहार सरकार की विफलता की पूरी जिम्मेवारी लेते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तत्काल इस्तीफा देना चाहिए। इस संदर्भ में उन्‍होंने घोषणा की थी कि रालोसपा 2 जुलाई को उनके नेतृत्व में हजारों कार्यकर्ताओं के साथ मुजफ्फरपुर से पटना तक पदयात्रा निकालेगी। बिहार की राजनीति में लंबे समय से उपजे गतिरोध के बीच इस पदयात्रा के कई मायने निकाले जा रहे हैं। इस मौके पर रालोसपा के बिहार प्रदेश उपाध्‍यक्ष जीतेंद्र नाथ ने मीडियाविजिल को एक लेख लिखकर भेजा है जिसे नीचे अविकल पढ़ा जा सकता है (संपादक)


बिहार की राजनीति और उसके तात्कालिक प्रभाव से बिहार की सरकार एक अंधेरी और बंद गली में जाकर फंस गई है। बड़ी-बड़ी घटनाओं पर सरकार निष्प्रभावी होती दिख जा रही है। सरकार के कुल निर्गत नतीजे प्रभावहीन और डरावने हैं।

याद आता है जब वर्तमान सरकार 2005 में सत्ता में आई थी तो इसके प्रभामंडल ने बिहार के अपराधियों और प्रशासनिक मशीनरी पर सकारात्मक और नतीजोन्मुख प्रहार किया था। सारी बेपटरी व्यवस्था नतीजा देने लगी थी। विकास दर से मानव विकास सूचकांक की विकासोन्मुख गतिशीलता, प्रशासनिक सक्रियता से लेकर सुशासन की चमक, ने पूरे देश-दुनिया की आकर्षित किया था। आज सृजन घोटाले में अरबों रुपया तो गया ही, कोई किंगपिन नहीं पकड़ा गया। लूट और भ्रष्टाचार ने संस्थागत स्वरूप ग्रहण कर लिया है। घूस की जगह कमीशन की दर निर्धारित कर दी गई। हर काम की फीस तय है। बड़े सुनियोजित तरीके से दलीय कार्यकर्ता विकास और शासन के प्रक्रिया से बाहर कर दिए गए, क्योंकि यह समझ थी कि ये राजनीतिक कार्यकर्त्ता जनता की आकांक्षा और दबाव के कारण प्रशासनिक तरीके से लूट में रुकावट डालेंगे या फिर हिस्सेदार बनना चाहेंगे। इसलिए उन्हें सिर्फ झंडा ढोने वाले बना दिया गया।

सड़ती शिक्षा व्यवस्था में रोज नए-नए रहस्योद्घाटन होते हैं। सरकार मूक दर्शक है। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की घटना सरकारी ऐश-मौज के जुगाड़ का एक नमूना है। सुप्रीम कोर्ट इस घटना को सरकार प्रायोजित और संरक्षण में होने जैसी टिप्‍पणी कर चुका है। अपराध फिर नए आयाम और ऊंचाई ग्रहण करने लगा है। सरकार के हाथ-पैर फूल गए हैं। कृषि विभाग किसानों की जगह अधिकारियों और नेताओं की चरागाह बन गया है। अभी चमकी बुखार ने मुजफ्फरपुर समेत पूरे बिहार में सैकड़ों बच्चों को मौत के मुंह में धकेल दिया और सरकार पंगु हो गयी। कोर्ट इनकी नहीं सुन रहा। बच्चे मर रहे हैं, सरकार सो रही है। बच्चों में कुपोषण की दर्दनाक स्थिति है। दास्तान लंबी है, लेकिन मुख्य सवाल यह है कि इतनी दर्दनाक मौतें हो क्यों रही हैं?

नीतीश कुमार की सरकार का उदय किसी राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति या नए राजनैतिक सामाजिक विकास की आकांक्षाओं के गर्भ से नहीं हुआ था, बल्कि एक प्रतिक्रिया में और बिहार में निराशा से निर्मित माहौल में हुआ था। अपराध चरम पर था। संरक्षण की आशंका निर्मूल नहीं थी। विकास बेपटरी था। सामाजिक जागरूकता और पिछड़ों-दलितों के जागरण के दौर में स्वाभाविक अवरोध के लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व ने जंगलराज का मुहावरा गढ़ा। बहुमत बिहार के मन में सामाजिक जागरण के वाद विवाद की आकांक्षा ने आकार लिया और इस तरह नई सरकार बनी। अपराध पर लगाम, सड़क-बिजली में सुधार ने इनके नेतृत्व को ताकत दी। देश में एक नए चेहरे की चमक थी। इनकी आकांक्षाएं हिलोरें मारने लगीं। यूपीए-2 की विसंगतियों ने उसे बढ़ाया और अंततः ये सुशासन की जगह सिर्फ सत्‍ता के आकांक्षी हो गए।

एनडीए में यहीं से हितों का टकराव शुरू हुआ। 2014 के आसपास नरेंद्र मोदी के हो रहे उदय के दौर में इनका स्वहित में मोदी से अलग अपनी छवि गढ़ने की कोशिश ने अविश्वास का बीज बो दिया। अब वह बीज अंकुरित हो गया है। बड़ा सहयोगी इन्हें सीमा में बांधना चाहता है। इनकी आकांक्षा इन्हें विवश कर रही है। इसी बीच बिहार में विकास के मॉडल से उत्पन्न दौलत ने समाज के एक हिस्से को मालामाल कर दिया है जबकि दूसरे तबके यानी दलित, अतिपिछड़ों और पिछड़ों, अल्पसंख्यक को निराश किया है।

ये टकराव एक समय तक निकायों में आरक्षण देकर रोका गया, लेकिन अब बात आगे बढ़ चुकी है। इसने सामाजिक विसंगतियों की खाई को चौड़ा किया है। एनडीए में उपेक्षित और दरकिनार करने की योजना और बिहार में वंचित तबके के हितों के बीच में नीतीश कुमार की सारी कारीगरी (सत्ता के लिए किसी को सटा लेना, किसी को धोखा दे देना) और हिकमत का दम घुट रहा है। अब राजनीति का कोई भी अन्य खिलाड़ी इन्हें आसरा देने में घबराता है क्योंकि उसके खुद के जनाधार में ही उसकी विश्वसनीयता घट जाएगी।

बिहार कहां जाएगा, यह सवाल मुंह बाए खड़ा है। दलितों और पिछड़ों के जागरण के बाद मनुवादी व्यवहार वाली राजनीति के साथ जाना आसान नहीं है। विपक्ष की अन्य पार्टियों को सम्पूर्ण उपेक्षित तबकों को साथ लेकर चलने का विश्वासी माहौल बनाना होगा।

मुज्जफरपुर में चमकी बुखार से सैकड़ों की मौत पर सरकार जहां मुंह चुरा रही है, वहीं विपक्ष भी चुनावी हार के बाद शून्य की स्थिति में हैं। ऐसे में उपेन्द्र कुशवाहा के मुजफ्फरपुर से पटना तक पदयात्रा के फैसले और कार्यक्रम पर पूरे बिहार की नजर है।


जीतेंद्र नाथ रालोसपा के बिहार प्रदेश उपाध्‍यक्ष हैं


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