ख़बर के नाम पर DD NEWS में PAYTM का विज्ञापन ! डील क्या है ?



क्या किसी ख़बर को किसी कंपनी के प्रचार का ज़रिया बनाया जा सकता है ? और अगर ऐसा हो तो इसे पेड न्यू़ज़ नहीं कहा जाना चाहिए ? और अगर एवज़ में कुछ मिले भी न तो क्या कहेंगे ? भाँड़गीरी ? या कुछ और..?

जी हाँ, कुछ ऐसा ही कर रहा है सरकारी प्रसार माध्यम दूरदर्शन। डीडी न्यूज़ ने हाल ही में एक ख़बर दिखाई कि कैसे छोटे दुकानदार भी पीएम मोदी से प्रभावित होकर पीटीएम कर रहे हैं और नोटबंदी से उन्हें कोई परेशानी नहीं है।

ऊपर सामान्य सा लगने वाले वाक्य में एक बहुत बड़ा खेल छिपा है। क्योंकि इस ख़बर में बार बार सिर्फ पेटीएम का ही नाम लिया गया गोया इलेक्ट्रानिक लेन-देन को संभव बनाने वाला कोई और ब्रांड बाज़ार में है ही नहीं। यह वैसे ही है जैसे दोपहिया वाहनों में आये बदलवाों पर कोई ख़बर बनाते वक़्त सिर्फ बजाज का नाम लिया जाए, उसके मॉडल दिखाये जाएँ।

ऐसा करवाने के लिए कंपनियाँ काफ़ी पैसा ख़र्च करके कार्यक्रम या आयोजन प्रायोजित करती हैं। लेकिन डीडी न्यूज़ यह काम मुफ़्त कर रहा है। क्या इसके पीछे बीजेपी और पेटीएम के बीच हुई कोई डील है और उसका रिश्ता उस पूरे पन्ने के विज्ञापन से भी है जिसमें इस कंपनी ने मोदी जी का नाम और चेहरा इस्तेमाल किया था। आख़िर सरकारी माध्यम की इस मेहरबानी का राज़ क्या है ?

वैसे भी PAYTM को समाजसेवा करने नहीं आई है। वह लोगों का पैसा उनके ही बैंक से अपने वॉलेट में डलवाती है और यह सारा पैसा अपने बैंक अकाउंट में रखती है। इस पर वह ब्याज़ खाती है, जबकि वॉालेट में पैसा रखने वालों को कोई ब्याज़ नहीं मिलता। इसके अलावा वह अपनी सेवा के लिए सरचार्ज भी लेती है, जिसकी दर KYC वाले बैंक ग्राहकों से फ़िलहाल 1 फ़ीसदी है और बाक़ी लोगों से कहीं ज़्यादा। 3-4 फ़ीसदी तक। कैश बैक जैसे वक़्ती लॉलीपॉप दरअसल, मार्केटिंग के दाँव हैं जो ज़्यादा से ज़्यादा ग्राहकों को फँसाने के लिए खेले जाते हैं। वैसे यह मौजूदा दरें 31 दिसंबर के बाद बदली जाएँगी।

ख़ैर, पीटीएम के अलावा भी इस धंधे मं कई कंपनियाँ मौजूद हैं जिनका ज़िक्र ग़ायब है।  आख़िर डीडी न्यूज़ का इस क़दर पेटीएममय होना क्या कहता है ! यह राजनीति और ‘धंधे” के रिश्ते की ही बानगी है ।

वैसे यह ख़बर अहमदाबाद, गुजरात से आई है। 29 नवंबर को शाम 4.20 मिनट पर प्रसारित  2 मिनट 35 सेकेंड की यह ख़बर पूरी तरह एक कंपनी का प्रचार है। जनता से वसूले गए टैक्स के पैसे से चलने वाले दूरदर्शन को जिसके विज्ञापन से लाखों रुपये का राजस्व मिल सकता था  वह ख़बर बनाकर उसने गँवा दिया। या क्या पता …?

फ़िलहाल देखिये यह ख़बर देखिये और फ़ैसला कीजिए–