बीजेपी की ‘राजनीति’ की भेंट चढ़ गई मुद्रा लोन योजना, एनपीए 14 हज़ार करोड़ के पार



आज और कल बैंक कर्मचारियों की हड़ताल है। इसमें करीब 10 लाख कर्मचारी हिस्सा ले रहे हैं। उनकी शिकायत है कि सरकार की नीतियों ने बैंकिंग सिस्टम को बर्बाद करने के साथ-साथ कर्मचारियों को भारी तनाव में ला दिया। इसका एक उदाहरण है मुद्रा लोन। प्रधानमंत्री, मंत्री से लेकर बीजेपी का हर नेता रोज़गार के सवाल का जवाब मुद्रा लोन के आँकड़ों से देता है। लेकिन हक़ीकत है कि इस योजना में एनपीए 14 हज़ार करोड़ के पार चला गया है। यानी जो पैसा बँटा उससे बहुत कम रोज़गार खड़ा हुआ। बीजेपी नेताओं की सिफ़ारिश पर दिया गया ज़्यादातर पैसा डूब गया। इस मसले पर पढ़िए, मीडिया विजिल के स्तंभकार गिरीश मालवीय की टिप्पणी- संपादक

 

पीएम मोदी ने बहुत लंबी लंबी छोड़ी है, उन्होंने अपनी बहुचर्चित मुद्रा योजना के जो आँकड़े पेश किये है वह बेहद चौकाने वाले है उन्होंने कहा कि मुद्रा योजना के तहत 3 मई, 2018 तक 12.61 करोड़ लोगों को कर्ज दिया जा चुका है इस प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत मोदी ने आठ अप्रैल 2015 को की थी यानी सिर्फ 3 वर्षो में 12.61 करोड़ लोगों को कर्ज दे दिया गया

चलिए एक बार मोटे अनुमान के तहत मान लेते है कि भारत की आबादी सवा अरब है इसमें से 18 वर्ष से कम लोगो ओर 60 साल से अधिक की आबादी लगभग 50 प्रतिशत कम कर दी जाए तो लगभग साढ़े 62 करोड़ लोगों में से 12.61 लोगो को मोदी जी ने लोन बाटा है यानी हर पांचवे आदमी ने चाहे वह महिला हो या पुरूष, इन तीन सालों में उसे लोन दिया गया है आप मन ही मन अपने आसपास के 25 लोगों के नाम रेंडमली सोच लीजिए ओर उनसे पूछ लीजिए क्योकि मोदी जी कह रहे हैं कि उनमें से 5 लोगों को लोन दिया गया है वो भी इन तीन सालों में

चलिए सिक्के के दूसरे पहलू की चर्चा कर लेते हैं जो सच हमे आरटीआई से पता चला हैं उन आंकड़ों के अनुसार, इन 12 करोड़ से अधिक लोगो मे से सिर्फ 17.57 लाख लोगों (1.3 फीसद) को 5 लाख रुपये उससे ज्‍यादा का लोन दिया गया।

दिल्‍ली के आरटीआई कार्यकर्ता चंदन काम्‍हे के आवेदन पर वित्‍तीय सेवा विभाग ने मुद्रा योजना से जुड़े कई महत्‍वपूर्ण आंकड़े मुहैया कराए हैं। इसके अनुसार, वर्ष 2017-18 के दौरान इस योजना के तहत 4.81 करोड़ लोगों को कुल 2,53,677.10 करोड़ रुपये का लोन दिया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि एक लाभार्थी को अपना व्‍यवसाय शुरू करने के लिए औसतन 52,700 रुपये का लोन मिला।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 5 लाख रुपये से कम में औरों को रोजगार देने लायक व्‍यवसाय करना बेहद मुश्किल हैं ये तो हुई इस योजना की ऊपरी बाते अब हकीकत के धरातल पर आ जाए कि लोन कैसे बांटे गए।

कहा जाता है कि बैंको में ब्रांच स्तर पर बांटे गए सभी लोन्स में 95% सही होते है तथा 5% ही खराब हो जाते है या एनपीए हो जाते है परंतु मुद्रा योजना में यह फिगर उल्टी हो जाती है यानी 5% लोन ठीक तो 95% खराब यानी 95% एनपीए हो जाता है तो यह होता क्यो है ?

इसका जवाब दोते हुए दस लाख बैंकर्स की नुमाइंदगी करने वाले यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (UFBU) के प्रतिनिधि बताते हैं कि योजना के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बैंक अधिकारियों पर भारी राजनीतिक दबाव डाला जा रहा है इस योजना को स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक भाई-भतीजावाद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

ब्रांच मैनेजरों बताते हैं कि सांसद, विधायक और स्थानीय राजनेता बैंक अधिकारियों के लिए धमकी, अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं. तुरंत लोन देने के लिए दबाव डाला जाता है. राजनीतिक रसूख वाले आवेदकों को लोन देने में देरी पर बैंक अधिकारियों को जिला प्रशासन अधिकारियों की ओर से धमकाया जाता हैं

आल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडेरेशन के महासचिव डी टी फ्रैंको का कहना है, ‘मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद बैंकिंग सेक्टर पर भारी दबाव है. वो जहां भी जाते हैं लोन मेले लॉन्च करना चाहते हैं. एक ऐसा कार्यक्रम हुआ जहां बैंकर्स को बुलाया गया जिससे कि लोग ऋण के बारे में समझ सकें. लोन मेले के आयोजन में जब बैंकर्स गए तो देखा कि वो पूरी तरह बीजेपी के कार्यक्रम में तब्दील था. मंच पर मौजूद नेता और बाकी सारे नेता भी बीजेपी के ही थे.

फ्रैंको ने आरोप लगाया कि अनेक बीजेपी नेताओं की ओर से अपने लैटर पैड पर आवेदकों की सूची भेजी गई कि इन्हें इन्हें लोन दिया जाए.

बैंक अधिकारी बताते है कि इन्ही कारणों से हर शहर और गांव में उंगलियों पर गिने जाने वाले लोगों ने इसे लेकर बिजनेस खड़ा किया है, अधिकांश पैसा चपत कर गए हैं। मीडिया में छपी कुछ खबरों में दावा किया जा रहा है कि मुद्रा योजना के तहत दिए गए इन कर्जों में एनपीए तेजी से बढ़ते हुए 14 हजार करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर चुका है

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का घाटा (पीएसबी) जनवरी-मार्च 2018 तिमाही में 50,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा छूने जा रहा है जिन 15 सरकारी बैंकों ने पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के परिणाम घोषित कर दिए हैं, उनमें इंडियन बैंक एवं विजया बैंक को छोड़कर सभी 13 नुकसान में रहे हैं। इन सभी 15 बैंकों की कंसॉलिडेटिड अर्निंग्स (समेकित आमदनी) में 44,241 करोड़ रुपये का घाटा सामने आया है। बाकी 6 बैंकों के रिजल्ट आने पर घाटे का यह आंकड़ा बढ़कर 50,000 करोड़ रुपये से पार करने की आशंका हैं इस घाटे में बड़े उद्योगपतियो के ऋण NPA होने के साथ मुद्रा योजना लोन NPA होने का भी बड़ा हिस्सा है बैंक कर्मी बहुत ही ज्यादा दबाव में काम कर रहे हैं

वैसे यदि आपको इस योजना की ओर भी ज्यादा सही तस्वीर जानना हो तो उच्च स्तर पर काम कर रहे बैंककर्मी से पूछ लीजिए इतने भारी भरकम आंकड़ो की हकीकत एक मिनट में सामने आ जाएगी।