श्मशान से लेकर बिजली तक, मोदीवाणी केवल झूठ !



प्रधानमंत्री मोदी चुनाव में जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह उनकी शख्सियत का पता देती है, लेकिन श्मशान से लेकर बिजली तक में भेदभाव का जो आरोप वह अखिलेश सरकार पर लगा रहे हैं, वह या तो उनके अज्ञान का एक और नमूना है या फिर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की हताश कोशिश ।

पहले बात बिजली की। मोदी जी ने कहा है कि अगर रमज़ान में बिजली दी जाती है तो दीवाली में भी मिले। इस वाक्य में एक स्थिति का बयान है। यानी यूपी की सरकार हिंदू त्योहारों पर बिजली नहीं देती। जबकि तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए मुसलमानों के त्योहारों पर भरपूर बिजली देती है। पर क्या सचमुच ?

तथ्य बिलकुल उलट हैं। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड के आँकड़ों के मुताबिक पिछले साल ईद (6 जुलाई 2016) पर पूरे राज्य को 13,500 मेगावॉट बिजली दी गई। रमज़ान के महीने में इस दिन सबसे ज़्यादा बिजली सप्लाई हुई। मौसम गरमी का था लिहाज़ा बिजली की ज़रूरत भी ज़्यादा थी। लेकिन अपेक्षाकृत ठंडे मौसम में दीवाली (धनतेरस से लेकर भैयादूज के पाँच दिनों के बीच)बिजली सप्लाई हुई 15400 मेगावॉट। यानी रमज़ान की तुलना में 1900 मेगावॉट ज़्यादा। बिजली आपूर्ति 24 घंटे हुई।

यही बात कब्रिस्तान और श्मशान के मामले में भी है। यूपी सरकार ने कब्रिस्तान नहीं बनवाए, बल्कि उनकी चहारदीवारी बनवाने के लिए करीब 400 करोड़ रुपये का बजट दिया। यह ज़रूरी था ताकि भूमाफ़िया कब्रिस्तान की ज़मीन कब्ज़ा ना कर लें। वहीँ श्मशानों के भी जीर्णोद्धार करने के लिए सरकार ने 200 करोड़ से ज़्यादा का बजट दिया।

हास्यास्पद तो यह है कि मोदी जी गाँव में श्मशान की बात कर रहे हैं, जबकि हिंदुओं का अंतिम संस्कार आमतौर पर गंगा या किसी पवित्र नदी किनारे ही होता है। बड़ी मजबूरी हो तो ही लोग गाँव के बाहर कहीं शवदाह करते हैं। लेकिन मोदी जी ने गाँव-गाँव श्मशान की बात को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की जिसकी ना कोई माँग है और ना तुक।

सरकार इलाहाबाद कुंभ के आयोजन पर भी अरबों ख़र्च करती है। पिछले इलाहाबाद अर्धकुंभ के आयोजन की ज़िम्मेदारी नगर विकास मंत्री ‘आज़म खाँ’ के हाथ थी, जिन्हें बेहतर इंतज़ाम के लिए साधुओं ने सम्मानित भी किया था।

आख़िर मोदी जी ऐसा क्यों कर रहे हैं ? इसका जवाब वरिष्ठ पत्रकार प्रशांट टंडन ने अपनी फ़ेसबुक वॉल पर लिखा है। प्रशांत लिखते हैं-

“क्यों श्मशान याद आया मोदी को:

ज्यादा मेहनत नही करनी है बस इन दो नक्शो को देखना है.

बाईं तरफ उत्तर प्रदेश के सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित इलाके हैं (ये 2015 तक के आंकड़ो के आधार पर है). आप देख सकते हैं जहॉ ज्यादा घटनाये हुई हैं वो गाढ़े रंग से दिखाये गये हैं. वारदातो में कमी के हिसाब से इलाको का रंग हल्का दिखाया गया है.

दाहिनी तरफ मतदान के चरणो का नक्शा है. इसमे पहले तीन चरण निबट चुके हैं और ये वो इलाके हैं जहॉ सांप्रदायिक तनाव अपेक्षाकृत ज्यादा रहा है.

अब इन दोनो नक्शो को एक साथ देखिये – बात बिलकुल समझ में आ जायेगी कि बीजेपी की सांस क्यों फूल रही है और क्यो मोदी सांप्रदायिक हवा देने की कोशिश कर रहे हैं.

इनके लिये बुरी खबर ये है जो सांप्रदायिक हिंसा से सबसे प्रभावित इलाके थे वहॉ इस बार ध्रुवीकरण हो नही पाया.”

.बर्बरीक