मोदी सरकार ने ‘इतिहास समिति’ को दिया हिंदुओं को ‘मूल-निवासी’ साबित करने का लक्ष्य !



 

मोदी सरकार, इतिहास को हिंदू रंग में रँगने की बरसों पुरानी आरएसएस की साध पूरा करने में जुट गई है। इतिहास के पुनर्लेखन के लिए बाक़ायदा एक समिति गठित की गई है जिसने अपना काम शुरू कर दिया है। यह काम काफ़ी चुपचाप हुआ है और भारतीय मीडिया भी इस पर लगभग चुप्पी साधे हुए है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। एजेंसी के मुताबिक समिति को दो लक्ष्य दिए गए हैं- पहला, पुरातात्विक खोजों और डीएनए का उपयोग करके यह साबित करना कि हिंदू भारत के मूल निवासी हैं और दूसरा यह कि हिंदू शास्त्र मिथक नहीं इतिहास हैं।

करीब छह महीने पहले गठित हुई इस ‘इतिहास समिति’ की बैठक जनवरी के पहले हफ्ते में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक कार्यालय में हुई। इस 14 सदस्यीय समिति के सदस्यों का चुनाव नौकरशाही और अकादमिक क्षेत्र से किया गया है।

समिति के अध्यक्ष के.एन दीक्षित ने रायटर्स को बताया, “मुझे एक रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है जो सरकार को प्राचीन इतिहास के कुछ पहलुओं को फिर से लिखने में मदद करे।” समिति के गठन का आदेश संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने जारी किया है। उन्होने भी एजेंसी से बातचीत में पुष्टि की कि ‘समिति का काम भारत के इतिहास को संशोधित करने के लिए बड़ी योजनाओं का हिस्सा है।’

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य ने भी रॉयटर्स से कहा- “भारतीय इतिहास का असली रंग भगवा है, देश में सांस्कृतिक परिवर्तन लाने के लिए हमें इतिहास को दोबारा लिखना होगा।” वहीं, आरएसएस के ऐतिहासिक अनुसंधान शाखा के प्रमुख बालमुकुंद पांडे ने कहा कि वह संस्कृति मंत्री शर्मा के साथ नियमित रूप से मिलते हैं। पांडे के मुताबिक, “अब समय आ गया है, कि प्राचीन हिंदू ग्रंथों की पुरानी गरिमा को पुनर्स्थापित किया जाए, प्राचीन भारतीय ग्रंथ तथ्य हैं, कोई कल्पना नहीं.”

संस्कृति मंत्री ने रॉयटर्स को बताया कि उन्हें अपने इतिहास को खोजने के लिए समिति से निष्कर्षों की उम्मीद है। पैनल को “12,000 साल पहले की भारतीय संस्कृति की उत्पत्ति का समग्र अध्ययन और दुनिया के अन्य संस्कृतियों के साथ संबंधों” का पता लगाना है।

एजेंसी के मुताबिक महेश शर्मा पाठ्यक्रमों में “हिंदू पहले” का अध्याय जोड़ना चाहते हैं। मौजूदा इतिहास के मुताबिक मध्य एशिया के लोग भारत में लगभग 3,000 से 4,000 साल पहले आए, और आबादी को बदल दिया।

रायटर्रस के मुताबिक हिंदू राष्ट्रवादी और प्रधान मंत्री मोदी की पार्टी के वरिष्ठ नेता इस “मास-माइग्रेशन” को अस्वीकार करते हैं। उनका मानना है कि आज की हिंदू आबादी यहीं पर अवतरित हुई, और यहां रहने वालों से ही हिन्दू धर्म का उद्भव हुआ है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कई दशकों तक प्राचीन इतिहास पढ़ा चुकीं प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर का कहना है कि राष्ट्रवादियों के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वे यहां के मूल निवासियों से ही हिन्दू धर्म की उत्पत्ति दिखाएँ, क्योंकि “यदि हिंदू को हिंदू राष्ट्र (राज्य) में नागरिकों के रूप में प्राथमिकता दी जानी है, तो उनका आधारभूत धर्म आयातित नहीं हो सकता। राष्ट्रवादियों के लिए पूर्वजों और स्वदेशीय धर्म का सम्बन्ध दिखाना ज़रूरी है।” रोमिला थापर ने प्राचीन भारतीय इतिहास पर कई महत्वपूर्ण किताबें लिखी हैं।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने एजेंसी से कहा कि दक्षिणपंथी ताकतें, भारतीय इतिहास को लेकर एक राजनीतिक अभियान चला रही हैं जो ‘आयडिया ऑफ इंडिया’ को ही बदलने की कोशिश है। आजादी के सात दशकों बाद तक भारतीयता का आधार देश की विविधता रही है, लेकिन हिंदू राष्ट्रवाद इसमें ‘सांस्कृतिक श्रेष्ठता’ का भाव डाल रहा है।

संस्कृति मंत्री शर्मा ने रॉयटर्स को बताया कि वे संसद में समिति की अंतिम रिपोर्ट पेश करेंगे, और स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में इसे शामिल कराने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सहमत करने के प्रयास करेंगे।

उधर, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा है कि उनका मंत्रालय “संस्कृति मंत्रालय द्वारा की गई प्रत्येक सिफारिश को गंभीरता से लेगा।” जावडेकर ने कहा कि “हमारी सरकार पहली सरकार है, जो कि स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाये जा रहे इतिहास के मौजूदा स्वरूप पर सवाल उठाने का साहस रखती है.”

इतिहास समिति की पहली बैठक के मिनट्स के अनुसार, अध्यक्ष के.एन. दीक्षित ने कहा कि प्राचीन हिंदू शास्त्रों और भारतीय में सभ्यता के हज़ारों साल पुराने उपलब्ध प्रमाणों के बीचे रिश्ता साबित करना जरूरी है। ऐसा करने से समिति को निष्कर्षों तक पहुँचने में मदद मिलेगी यानी हिंदू ग्रंथों में वर्णित घटनाएँ वास्तविक हैं,औरआज के हिंदू उस समय के लोगों के ही वंशज हैं।

संस्कृति मंत्री शर्मा ने रॉयटर्स को बताया कि वे यह स्थापित करना चाहते हैं कि हिन्दू शास्त्र तथ्यात्मक हैं। उन्होंने कहा: “मैं रामायण की पूजा करता हूं और मुझे लगता है कि यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। जो लोग सोचते हैं कि ये कल्पना है, वे लोग बिल्कुल गलत हैं।”

श्री शर्मा ने कहा उनकी प्राथमिकता, पुरातात्विक अनुसंधान के माध्यम से वेदों में वर्णित सरस्वती नदी के अस्तित्व को प्रमाणित करना है। अन्य परियोजनाओं में ग्रंथों में वर्णित स्थानों का आज के वास्तविक स्थान से मिलान करना, ज्योतिषीय घटनाओं की तारीखों का मिलान करना और महाभारत में वर्णित लड़ाइयों के स्थान की खुदाई करना शामिल है।

शर्मा ने कहा कि जब कुरान और बाइबिल को इतिहास का हिस्सा माना जा सकता है तो हिन्दू ग्रंथों को इतिहास मानने में क्या समस्या है?

2014 में मुंबई के एक अस्पताल का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में वर्णित ‘वैज्ञानिक उपलब्धियों’ की ओर इशारा करते हुए कहा था : “हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, और शायद उस समय एक प्लास्टिक सर्जन था जिसने हाथी के सिर को मानव के धड़ पर जोड़ा था। कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां हमारे पूर्वजों ने बड़े योगदान दिए।”

रायटर्स ने इतिहास समिति के 12 सदस्यों से मुलाकात की जिसमें  9 ने बताया कि प्राचीन भारतीय शास्त्रों के साथ पुरातात्विक और अन्य साक्ष्यों के मिलान में उन्हें कामयाबी मिली है और भारतीय सभ्यता ज्ञात समय से ज्यादा पुरानी है। बाकी ने यह तो माना कि वि इतिहास पुनर्लेखन समूह के सदस्य हैं, लेकिन उसकी गतिविधियों पर चर्चा करने से इनकार कर दिया। समिति में भूविज्ञानी, पुरातत्वविद, प्राचीन संस्कृत भाषा के विद्वान और दो नौकरशाह शामिल हैं।

संस्कृत विद्वानों में से एक, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संतोष कुमार शुक्ला ने रायटर्स को बताया कि भारत की हिंदू संस्कृति लाखों साल पुरानी है। समिति के एक अन्य सदस्य, दिल्ली विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख रमेश चंद शर्मा ने कहा कि वे पूर्णरूप से वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएँगे। उन्होंने कहा, “मैं किसी भी विचारधारा का पक्षधर नहीं हूं।”

महेश शर्मा कहते हैं कि “गौरवशाली अतीत की सर्वोच्चता साबित करने के लिए” पिछले तीन सालों में उनके मंत्रालय ने देश भर में सैकड़ों कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित किए हैं. उनका उद्देश्य, भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्वीकार किए गए उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष दर्शन को ‘संतुलित’ करना है जो बाद की सरकारों द्वारा भी जारी रखा गया।

रायटर्स के मुताबिक 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हिंसा और भेदभााव की घटनाओं के निशाने पर रहे मुसलमानों के लिए यह ‘विकास’ अशुभ है। मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि उनके लोगों ने “स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी इतना हाशिये पर महसूस नहीं किया। सरकार चाहती है कि मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक की तरह रहें।

(तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस से साभार)