प्रेम विवाहों के पक्ष में खड़ा होकर दें अंकित की हत्या का जवाब !



शीबा असलम फ़हमी 

अंकित सक्सेना को मुहब्बत करने के जुर्म में मारा गया. अंकित सक्सेना ज़िंदा होता तो जो मांबाप आज उसके लिए रो रहे हैं वो भी इस प्रेम से खुश हो कर ‘हां’ नहीं कर देते. हो सकता है वो भी कोई गंभीर क़दम उठाते इस मुहब्बत को ख़त्म करने के लिए. अंकित के माँबाप अगर ‘हाँ’ भी कर देते तो रिश्तेदार-समाज-पुलिस-कोर्ट-जज-मीडिया सब उसके विरोध में ही आ कर खड़े हो जाते। इस समाज की ख़ासियत यही है की जाति, दहेज़, बेमेल शादी, बे-मन की शादी, बाल विवाह, बेटियों की आर्थिक ग़रीबी, कन्या भ्रूण-हत्या जैसे सामाजिक अपराधों के लिए हमारे बुज़ुर्ग ही ज़िम्मेदार हैं. हमारे माँबाप, दादा-दादी, नाना-नानी सब अपने युवाओं से प्यार तो बहुत करते हैं लेकिन तभी तक जब तक बच्चे एक रोबोट की तरह उनकी हर बात मानें। अपने जो सपने ये बुज़ुर्ग नहीं जी सके उन्हें ये युवा जियें. माँबाप-ख़ानदान के लिए इंजीनियर, ऑफ़िसर , डॉक्टर बनें लेकिन अपने लिए न प्रेम करें न शादी.

दहेज़ लेने से अगर घरवाले इंकार कर दें, तो दो दिन में ये समस्या ख़त्म हो जाये। लड़कीवाले अगर दहेज़ जमा करने के भार से मुक्त हो जाएँ तो कितने ही लोग एक तनाव-मुक्त जीवन जी सकें. कितने ही नौकरीपेशा रिश्वत लेना बंद कर दें. इस मामले में एक परिवार को जानती हूँ जिसमे तीन बेटियां पैदा की गयीं एक बेटे की चाह में. अब दहेज़ की मार झेल-झेल के हालत ख़स्ता है. तीनो बेटियों की शादियां हो जाने के बाद भी जान नहीं छुटी है. साल भर तीज त्यौहार रहते हैं, देना ही देना बना रहता है. फिर सबके यहाँ दो-दो-तीन-तीन औलादें हैं, भात-शगन का अंतहीन सिलसिला है. एक अजब मकड़जाल है जिसमे ये रिटायर्ड बाप और नया नया नौकरी में आया बेटा फंसा हुआ है. यही नहीं खुद बाप की भी तीन बहनें हैं. ज़िंदगी भर वो उनका दहेज़-भात-शगुन देते रहे हैं. दांत से पकड़ के पैसा ख़र्च करते हैं, सारे शौक़ मार के जो भी जमा करते हैं बहनो-बेटियों को निभाने में ही ख़र्च कर देते हैं. दिल रोता है उनकी हालत देख कर. बेटे ने कई बार कहा की ‘मैं ही जनता हूँ की ऊपर की कमाई के लिए कितना दबाव और उम्मीद रहती है घर से, लेकिन एक पैसा रिश्वत नहीं लेता’. ये अंतहीन तीज-त्यौहार-परम्पराएं कैसे टूटेंगी? ये बेटियों वाले हलाल की कमाई पर संतुष्ट रह सकेंगे कभी? ये समाज अपने ही धर्म-गोत्र-सजातीय लोगों पर ये अत्याचार कब बंद करेगा?
इन समस्याओं का एक हल प्रेम विवाह हैं. प्रेम विवाह भारतीय समाज में फैली हिंसक समस्याओं की एक रामबाण दवाई है। जाती-धर्म-वर्ग की नफ़रतों को ख़त्म करने के सबसे सटीक उपाय है.

युवाओं को अंकित सक्सेना की हत्या का बदला लेना होगा, उन्हें प्रेम के पक्ष में खड़े होना होगा, प्रेम विवाह करवाने के लिए आगे आना होगा. बिगड़े हुए, दक़ियानूसी, लालची और जहालत से भरे हुए बुज़ुर्गों को अपनी जवानी, हिम्मत, सच्चाई और आधुनिकता को मनवाना होगा. अब ये हो की बुज़ुर्ग भी युवाओं की मर्ज़ी, चाहत और फ़ैसले की इज़्ज़त करें. संविधान की इज़्ज़त करें, क़ानून की इज़्ज़त करें. ये इज़्ज़त के नाम पर युवाओं का मरना-कटना बंद हो. सिर्फ एक ही ज़िंदगी मिली है, अपनी जवानी अपने लिए भी जी लो.



शीबा असलम फ़हमी महिला विषयक टिप्‍पणियों के लिए चर्चित लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय से शोध।