56% ने लगा दिया रॉंग नंबर, बाकी सब ग्लैमर का चक्कर! फिर कैसी पत्रकारिता, कौन पत्रकार?



पत्रकारिता में आने वाले छात्र-छात्राओं में से 55.76 फीसदी छात्र अपने स्कूल के समय में डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, प्रबंधक, राजनीतिज्ञ, वकील, शिक्षक या उद्योगपति बनना चाहते थे लेकिन उनकी आकांक्षाएं पूरी नहीं हो सकीं तो उन्होंने पत्रकारिता को कैरियर विकल्प के रूप में चुना। सिर्फ 44.20 फीसदी छात्रों ने ही पत्रकार बनने का लक्ष्य रखा था, उसमें भी पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले ज्यादातर छात्र टीवी एंकर और रिपोर्टर बनना चाहते हैं। अखबार में महज 12.83 फीसदी छात्र की काम करना चाहते हैं। यह बात विश्वविद्यालयों, संस्थानों और निजी संस्थानों में मीडिया प्रशिक्षण की बदलती प्रवृत्तियों के विश्लेषण के उद्देश्य से किए गए एक शोध में सामने आई है।

मीडिया स्टडीज ग्रुप द्वारा कराए गए इस सर्वेक्षण में सरकारी और निजी संस्थानों के छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया है। इस सर्वेक्षण में एक दिलचस्प बात सामने आई है कि ज्यादातर छात्र टीवी की दुनिया से जुड़ना चाहते हैं और एंकर या टीवी में रिपोर्टर बनना चाहते हैं जबकि महज 12.83 फीसदी छात्र अखबार के रिपोर्टर के रूप में काम करना चाहते हैं। सर्वेक्षण में खास बात यह है कि छात्र-छात्राओं का रूझान मीडिया संस्थान शुरू करने या चलाने के बजाए नौकरी करने में ज्यादा दिखता है। पत्रकारिता में आने वाले ज्यादातर छात्र-छात्रा ऐसी पृष्ठभूमि से हैं जिनके माता-पिता निजी और सरकारी नौकरी करते हैं। व्यवसाय करने वाले परिवारों से पत्रकारिता में आने वाले छात्र-छात्राओं का फीसद कम है।

इस सर्वेक्षण में दिल्ली विश्वविद्यालय के 209 छात्र, जामिया मिलिया इस्लामिया के 40 और शारदा विश्वविद्यालय के 54 छात्र-छात्राएं शामिल हुए हैं। मीडिया स्टडीज ग्रुप के अध्यक्ष अनिल चमड़िया के निर्देशन में यह सर्वेक्षण कराया गया है। जब छात्रों से पूछा गया कि पत्रकारिता की ओर उनका झुकाव कैरियर के रूप में कब उभर कर सामने आया तो 39.91 फीसदी छात्रों ने कहा कि उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए टीवी एंकर और रिपोर्टरों ने प्रेरित किया जबकि 20.30 फीसदी छात्रों ने नाम कमाने के लिए इस पेशे को चुना। 4.92 फीसदी छात्रों ने नौकरी मिलने की उम्मीद में इस क्षेत्र का चुनाव किया और 7.38 फीसदी छात्रों ने पत्रकारिता को इसलिए चुना क्योंकि उनके परिवार के सदस्यों या जान-पहचान के लोगों ने उन्हें इसके लिए प्रेरित किया।

शोध में गौरतलब बात यह उभर कर सामने आई कि मीडिया प्रशिक्षण देने वाले संस्थानों में से सरकारी संस्थानों के मुकाबले निजी संस्थानों की फीस ज्यादा है। 17.82 फीसदी छात्रों ने एक लाख 25 हजार से लेकर एक लाख 75 हजार रुपए तक का भुगतान किया। ये छात्र निजी संस्थानों के थे जबकि सरकारी संस्थानों के 39.27 फीसदी छात्रों ने फीस के तौर पर पांच हजार से लेकर 15 हजार रुपए तक का भुगतान किया।