दैनिक जागरण में कठुआ की फर्जी खबर छपने से पहले और उसके बाद क्या हुआ था?



जागरण में कठुआ पर छपी कल की रिपोर्ट आपने पढ़ी, फिर कल दिन में एक अफवाह सी उड़ी कि जागरण ने वो खबर वेब से हटवा दी है| अब जानिये खबर छपने के पहले और बाद में क्या हुआ था-

1- जागरण प्रबंधन ने उक्त खबर को पूरी तरह सोच समझकर जम्मू से प्लांट कराया था. इस खबर को लिखवाने की जिम्मेदारी जागरण के मालिक संजय गुप्ता और सम्पादक प्रशांत मिश्र जी ने जम्मू यूनिट को सौंपी थी. साथ में स्थानीय सम्पादक को कहा गया था कि यह खबर बाईलाइन ही छापी जाए क्योंकि यदि कोई कानूनी मामला बने तो रिपोर्टर प्रथम दोषी माना जाए.

2- सिलसिला यहीं नहीं रुका. कल के विरोध के बाद एक स्टोरी दोबारा प्लांट कराई गई. आज फिर उसी रिपोर्टर की बाईलाइन खबर मुख्य पृष्ठ पर छापी गई जिसमें पूरी तरह से जांच टीम को धर्म के आधार पर विभाजित करने और उसे नाकारा बताने की कोशिश की गई. कहा गया कि जो जांच टीम बनाई गई उसमें एक अधिकारी दागी रहा है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जांच में तीन अधिकारी कश्मीरी हैं. केवल एक जम्मू से है.

3- जागरण लगातार कोशिश कर रहा है कि आसिफा के मामले में मौजूदा जांच टीम को कैसे भी करके बदल दिया जाए.

4- जागरण में रसाना मामले की रिपोर्टिंग कर रहा अवधेश चौहान एक ईमानदार रिपोर्टर रहा है. उससे कैसे फर्जी रिपोर्टिंग कराई गई वो आपने कल देखी होगी, लेकिन इस मामले में पांच दिन पहले तक स्थानीय संस्करण में अवधेश की रिपोर्टिंग का ट्रैक पूरी तरह से अलग था.

5- आसिफा मामले में दैनिक जागरण के उसी रिपोर्टर के द्वारा पांच दिन पहले लिखी गई रिपोर्ट का यह हिस्सा ज़रूर देखा जाना चाहिए. यह रिपोर्ट केवल भीतर के पन्नों में जम्मू में ही रह गई –

आरोपितों के खिलाफ क्राइम ब्रांच ने कई अहम सुबूत जुटाए हैं

मुख्य आरोपित सांझी राम ने बेटे को बचाने के मकसद से अहम सुबूत मिटाने के लिए लिए मेरठ विश्वविद्यालय प्रबंधन को तो मैनेज किया ही, हीरानगर पुलिस स्टेशन में तैनात कुछ पुलिसकर्मियों को भी विश्वास में लिया। इनमें हेड कांस्टेबल तिलक राज, विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) दीपक खजूरिया, एसपीओ सुरेन्द्र कुमार शामिल थे।

क्राइम ब्रांच ने चार्जशीट में कहा है कि जब लड़की का शव 17 जनवरी को हीरानगर पुलिस स्टेशन लाया गया तो उसके कपड़े कीचड़ से सने हुए थे। कपड़ों पर खून के निशान भी थे। इस बात की तस्दीक मौका-ए-वारदात से लिए गए फोटोग्राफ से भी होती है।

• ऐसे नष्ट किए गए सुबूत : नाबालिग के कपड़ों पर कीचड़ और खून के धब्बों से हत्या और दुष्कर्म का भंडाफोड़ न हो, इसलिए उन्हें जम्मू फोरेंसिक लैब और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले थाने में धोया गया। बाद में यह कपड़े शव को पहनाए गए।

• हीरानगर थाने में तैनात हेड कांस्टेबल तिलक राज को नाबालिग के कपड़ों को धोते विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) दीपक खजूरिया ने देखा और क्राइम ब्रांच के सामने कुबूला भी। चूंकि कपड़े धो दिए गए थे इसलिए जम्मू फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) को कपड़ों पर कीचड़ और खून नहीं मिला। एफएसएल ने पहली फरवरी की अपनी रिपोर्ट में यही कहा है। अगर कपड़ों पर लगे कीचड़ की जांच होती तो यह पता लगाया जा सकता था कि यह मिट्टी किस इलाके की है।

•डीएनए जांच से मिले अहम सुबूत, लड़की से सामूहिक दुष्कर्म की पुष्टि के लिए नाबालिग का वेजेनाइल स्वैब और देवस्थान से मिले बालों को दिल्ली की एफएसएल भेजा गया और दोनों के डीएनए टेस्ट को क्रॉस मैच कराया गया तो पता चला कि बाल दुष्कर्म और हत्या की शिकार नाबालिग के ही हैं। डीएनए प्रोफाइल से क्राइम ब्रांच को दुष्कर्म के साक्ष्य भी मिले हैं।

• आरोपित दुष्कर्म करता रहा, परीक्षा कोई और देता रहा- मुख्य आरोपित सांझी राम ने बेटे विशाल को दुष्कर्म और हत्या में फंसते देख मेरठ में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय प्रबंधन को भी मैनेज कर लिया। बेटा कठुआ के रसाना में मासूम की आबरू लूटता रहा और उसके बदले मेरठ में बीएससी एग्रीकल्चर की परीक्षा दूसरा युवक दे रहा था। विशाल अपना मोबाइल मेरठ छोड़ आया था ताकि कॉल डिटेल में उसकी लोकेशन मेरठ में दिखे। मेरठ में मोबाइल पर फोन भी रिसीव किए गए ताकि जांच को गुमराह किया जा सके। दूसरे आरोपित शुभम (सांझी राम का भतीजा) को बचाने के लिए उसके स्कूल रिकॉर्ड में उसकी उम्र भी कम लिखाई गई, लेकिन डॉक्टरों के बोर्ड की जांच से पता चला कि वह नाबालिग नहीं है। शुभम दसवीं का छात्र है, लेकिन खराब आदतों के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया था।


वरिष्ठ पत्रकार आवेश तिवारी की फेसबुक दीवार से साभार