ज्‍योति बाबू की ‘साइन बोर्ड पार्टी’ श्‍यामा प्रसाद के सपने के इतना करीब कैसे पहुंची



 

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का मौजूदा दौर अपने चरम पर पहुंच चुका है. यह कहां जाकर थमेगा इसका अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है. कोलकाता में 12 जून को भारतीय जनता पार्टी के ‘लाल बाज़ार घेराव अभियान’ की तस्वीरों को देख कर इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

बुधवार को भाजपा की बंगाल इकाई ने राज्य में हिंसा और अपने कार्यकर्ताओं की हत्या के विरोध में लाल बाज़ार (कोलकाता पुलिस मुख्यालय) घेराव के लिए विशाल रैली निकाली. इस रैली को ‘लाल बाज़ार अभियान’ नाम दिया गया था. बीजेपी का आरोप है कि राज्य में तृणमूल के लोग उनके कार्यकर्ताओं की हत्या कर रहे हैं और पुलिस प्रशासन सत्ता के साथ मिला हुआ है.

बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष दिलीप घोष, सांसद एस.एस. अहलूवालिया और मुकुल रॉय की अगुवाई में लाल बाजार तक मार्च शुरू किया. रैली जैसे ही सेन्ट्रल एवेन्यु पहुंची पुलिस ने पहले चेतावनी दी, फिर भीड़ को रोकने के लिए आंसू गैस और पानी की बौछार की जिसमें कई लोग घायल हो गये. फिर पुलिस ने लाठीचार्ज किया.

दरअसल, बुधवार को तनाव उस समय और बढ़ गया जब मालदा में दो दिन से लापता बीजेपी कार्यकर्ता का शव मिला. पिछले कुछ दिनों से लगातार बीजेपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या से नाराज बीजेपी कार्यकर्ताओं का गुस्सा इससे और भड़क गया. इससे पहले मंगलवार को पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के कांकीनारा में बम धमाके में 2 लोगों की मौत हो गई जबकि 4 लोग घायल हो गए.

लोकसभा चुनाव के बाद से ही टीएमसी और बीजेपी के कार्यकर्ताओं में हिंसक झड़प जारी है। उत्तर 24 परगना में हिंसा के मामले ने इस विवाद को मंगलवार को और बढ़ा दिया.

किन्तु यह मात्र एक बहाना था. रैली में जो भीड़ जुटी थी उसे देखकर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसकी तैयारी बहुत पहले से की जा रही थी. हाल ही में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब कहीं जा रही थी तो उनके रास्ते में कुछ लोगों ने जय श्रीराम के नारे लगा कर उनका रास्ता रोका और ममता ने गाड़ी से उतर कर उन लोगों को बाहरी कह कर कार्रवाई करने की बात कही थी.

उसके बाद पोस्ट कार्ड भेजने का खेल शुरू हुआ था दोनों तरफ से.

दब गई ख़बर

इन सबके बीच एक ख़बर जो दब कर रह गई वह है भाटापाड़ा में दो मुसलमानों की हत्या, जिसके आरोप में तीन बीजेपी कार्यकर्त्ता गिरफ्तार हुए, वहीं वर्धमान और हावड़ा में हिंसा हुई. भाटापाड़ा के बरुई पाड़ा में 13 मुस्लिम परिवार रहते थे. भाजपा के डर से 12 परिवार वहां से चले गये थे. एक परिवार जो बचा था उस पर कहर टूटा भाजपा कार्यकर्ताओं का.

इस बीच कोलकाता के एनआरएस मेडिकल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल में एक मुस्लिम तृणमूल नेता की भाई की मौत के बाद उनके समर्थकों ने डाक्टरों के साथ मारपीट की. फिर गाड़ी भर कर और लोगों को लाकर फिर से अस्पताल पर हमला बोल दिया, जिसमें एक डॉक्टर की कंधे की हड्डी टूट गई. डॉक्टरों ने आरोप लगाते हुए कहा कि ममता सरकार अपने नेता और मुसलमानों को बचाने के लिए उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है.

पहले एनआरएस के डॉक्टरों ने हड़ताल किया, फिर राज्य भर के डॉक्टर हड़ताल पर चले गये. ध्यान देने वाली बात यह है कि इस हड़ताल का आह्वान तृणमूल समर्थक डॉक्टर ने किया था और बाद में भाजपा के बंगाल अध्यक्ष दिलीप घोष ने जाकर उन डॉक्टरों को संबोधित किया. इतना ही नहीं, ममता  ने डॉक्टरों को चेतावनी देते हुए एस्मा लगाने की बात कही तो कल एम्स ने भी हड़ताल का समर्थन करने का एलान कर दिया.

पंचायत चुनाव में तैयार हुई पृष्‍ठभूमि

लोकसभा चुनाव में भाजपा ने तृणमूल के गढ़ में सेंध लगाते हुए राज्य की 42 में से 18 सीटों पर कब्ज़ा कर लिया और इसके बाद 3 विधायक और 70 से अधिक निगम पार्षद भाजपा में जा चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने कोलकाता की एक रैली में कहा था- ममता दीदी आपके 40 विधायक हमारे संपर्क में हैं. बीते वर्ष राज्य में पंचायत चुनाव के वक्त बीजेपी के बंगाल प्रभारी ने कहा था हम अपनी ताकत लोकसभा चुनाव में दिखाएंगे जब केंदीय सुरक्षा बलों की निगरानी में चुनाव होगा.

लोकसभा चुनावों के दौरान तृणमूल और भाजपा में हिंसा में अभूतपूर्व तरीके से तेजी आई. भाजपा का कहना है कि राज्य में उसके 80 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है और राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ चुकी है और ममता बनर्जी के इशारे पर तृणमूल के गुंडे भाजपा के लोगों की हत्या कर रहे हैं. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अब देश के गृहमंत्री अमित शाह की कोलकाता रैली के दौरान भी भयंकर हिंसा हुई थी. विद्यासागर कॉलेज में रखी विद्यासागर की प्रतिमा भी टूटी थी.

Kolkata: West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee garlands the reinstalled bust of the noted Bengali reformer Ishwar Chandra Vidyasagar after it was unveiled by her at Vidyasagar College in Kolkata, Tuesday, June 11, 2019. This bust has been reinstalled after the older one was vandalised and smashed in clashes at the college on May 14. (PTI Photo/Ashok Bhaumik) (PTI6_11_2019_000089B)

बाद में ममता बनर्जी ने आनन-फानन में विद्यासागर की नई प्रतिमा का अनावरण भी कर दिया. ममता का कहना है कि राज्य में कानून व्यवस्था में कोई कमी नहीं है और बंगाल में जो कुछ हो रहा है उसके पीछे बीजेपी का हाथ है. बीजेपी बाहर से गुंडे लाकर बंगाल में हंगामा कर कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.

बीते वर्ष हुए पंचायत चुनावों के दौरान पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच हिंसक संघर्ष शुरू हुआ था। बीते साल पंचायत चुनाव के दौरान सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगा था कि उसने विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को मैदान में नामांकन परचा तक भरने नहीं दिया था. उस चुनाव के दौरान भयंकर हिंसा में राज्य में 22 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. यहां तक कि पंचायत चुनाव से पहले भाजपा और टीएमसी दोनों को अदालत जाना पड़ा था.

तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की सभी ज़िला परिषदों पर अपना कब्जा जमाया था और उसके खाते में कुल सीटों में से 544 सीटें आई थी जबकि बीजेपी को ज़िला परिषद की केवल 22 सीटें मिली हैं. कांग्रेस के खाते में मात्र दो सीटें आई थीं. सबसे आश्चर्यजनक बात यह रही कि सात साल पहले तक सत्ता पर तीन दशक से काबिज सीपीएम को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी.

कुल मिलकर उस पंचायत चुनाव में जिस संख्या में बूथ पर कब्जा, खून-खराबा, हिंसा की घटनाएं हुई थीं आज बंगाल राजनीतिक हिंसा के जिस मुहाने पर खड़ा है इसकी शुरुआत वहीं से हुई थी. हालांकि 1978 में बंगाल में प्रथम पंचायत चुनाव के आरंभ के बाद से ही लगभग हर पंचायत चुनाव में हिंसा हुई है और कई बार इससे भी ज्यादा संख्या में लोगों की मृत्यु चुनावी हिंसा में हो चुकी है. कह सकते हैं कि मौजूदा हिंसा वाम विरासत की देन है.

दोनों ओर की हिंसा में वाम कहां?

जनसंघ के संस्थापकों में शामिल रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी के हयात में रहते हुए बंगाल के रंग में भगवा कभी मिल नहीं पाया। उसी सूबे में भाजपा ने इस चुनाव में कामयाबी हासिल की है। मौजूदा हालात को देखते हुए यकीन मानें कि दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और थके-मुरझाए विपक्ष के लिए उसे रोक पाना मुश्किल होगा। पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु कभी भाजपा को साईन बोर्ड पार्टी कहकर तंज कसते थे। आज वही पार्टी बंगाल की चुनावी राजनीति में मुख्य मुकाबले में खड़ी है और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को कड़ी चुनौती दे रही है। बंगाल की जमीन पर भाजपा की जड़ें मजबूत होने की तो कई वजहें हैं। लेकिन वामदलों की निष्क्रियता, जमीनी संघर्षों से उनका मोहभंग और कार्यकर्ताओं का एनजीओ से अतिशय लगाव एक बड़ा कारण है।

मार्क्सवादी बुद्धिजीवी गीतेश शर्मा के अनुसार, बंगाल में वामदलों के कमजोर होने के लिए स्वयं वामपंथी जिम्मेदार हैं। उनके मुताबिक खुद को अंतराष्ट्रीय सोच पर आधारित कहने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां एक संकीर्णता के दायरे में सिमट गई। ये समग्र रूप से भारतीय भी नहीं बल्कि बंगाली कम्युनिस्ट बनकर रह गए।

वरिष्ठ पत्रकार-लेखक प्रभात पाण्डेय से जब हमने बंगाल के हालात पर बात की तो उन्होंने बताया- “सब ठीक है, हम मान लें कि यहां हिंसा हुई है. किन्तु हिंसा कभी एकतरफ़ा नहीं हुई है. दोनों ओर से हुई है और दोनों दल के कार्यकर्त्ता मारे गये हैं, यहां तक कि वाम दल के कार्यकर्त्ता भी मारे गए हैं. किन्तु इसको साम्प्रदायिक रंग किसने दिया? क्या हम यह नहीं समझ रहे हैं!”

सिंगुर-नंदीग्राम की घटनाओं से बंगाल में कम्युनिस्टों को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। मां-माटी-मानुष का नारा देकर किसानों की रहबर बनी तृणमूल सरकार हालिया कुछ वर्षों में कई किसान विरोधी काम किए,जिसका प्रतिकार वामदलों को करना चाहिए था। लेकिन वे नाकाम रहे और भांगड़ आंदोलन उनकी असफलता की एक मिसाल है। मुख्यमंत्री बनने पर ममता बनर्जी ने कहा था- उनकी सरकार में किसानों की एक इंच भूमि का अधिग्रहण नहीं होगा। जबकि तृणमूल सरकार के पहले कार्यकाल के आखिरी साल में चौबीस परगना जिले में किसानों की बहुफसली जमीनें अधिग्रहीत हुईं। भांगड़ में अपनी जमीन बचाने की खातिर कई काश्तकार पुलिस की गोलियों के शिकार हुए। नंदीग्राम-सिंगुर से कम बर्बरता भांगड़ में नहीं हुई, लेकिन ममता हुकूमत के खिलाफ सूबे की जनता को गोलबंद करने में वाममोर्चा नाकाम रहा।

कम्युनिस्ट पार्टियों की ऐसी हालत क्यों बनी, इस बारे में समाजवादी विचारक नंदलाल साहू कहते हैं, “वक्त के साथ खुद को नहीं बदलने की वजह से न सिर्फ बंगाल बल्कि पूरी दुनिया से वामपंथ का सफाया हो गया। जड़ता पतन का कारण है, दुर्भाग्यवश भारतीय साम्यवादी इसी जड़ता के शिकार रहे। एक समय चीन ने भी अपनी साम्यवादी नीतियों में परिवर्तन किया लेकिन भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों ने इस बदलाव को स्वीकार नहीं किया। जिस बंगाल में लोगों को रोजगार मिलता था उस राज्य में सारे कल-कारखाने बंद हो गए। इसके लिए कोई और नहीं बल्कि बंगाल की लेफ्ट पार्टियां जिम्मेदार थी।”

वाम विचारक रामगोपाल पारीख का कमोबेश यही मानना है। उनके मुताबिक साम्यवादियों ने समय के साथ खुद को अपडेट नहीं किया। इसके अलावा कई सामाजिक पहलू भी हैं जिसने बंगाल में वामपंथ की जड़ें कमजोर कीं।

विकल्‍पहीनता का जवाब बीजेपी?

बंगाल के लोगों (विशेष रूप से ग्रामीण हिन्दू आबादी) का कहना है कि राज्य की वर्तमान हालत के लिए ममता की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति और उनकी सत्ता की लालसा जिम्मेदार है. यह बात बीते वर्ष पंचायत चुनाव के पहले और परिणाम आने के बाद भी लोगों ने कही थी. लोगों का आरोप है कि तृणमूल के कार्यकर्त्ता उन लोगों को पीटते हैं जो तृणमूल या ममता दीदी की आलोचना करता हैं.

दक्षिण 24 परगना के मथुरापुर क्षेत्र के गांवों में जो पारम्परिक वाम समर्थक थे, उनका कहना है कि तृणमूल की दादागिरी और आतंक इतना बढ़ गया है कि अब कोई भी वाम दल या कांग्रेस से मैदान पर उतरने से डरने लगा है. पुलिस युवकों पर फर्जी मामला दायर कर थाने में बंद कर देती है. वहीं दीदी ने एक वर्ग विशेष को विशेष छूट दे रखी है. उनकी योजनाओं का फायदा हमें नहीं मिलता बल्कि केवल उनके पार्टी के लोगों और समर्थकों को मिलता है.

वाम बुद्धिजीवी हरेराम कात्यायन का मानना है कि वामपंथियों की एक बड़ी पहचान ट्रेड यूनियन की राजनीति रही है,जो सत्ता की राजनीति से भी बड़ी है। लेकिन उदारीकरण के बाद श्रमिक राजनीति धीरे-धीरे कमजोर होने लगी।

बारुईपुर के एक निवासी ने बताया, “हम जानते हैं कि बीजेपी एक सांप्रदायिक पार्टी है किन्तु हमारे पास अब कोई विकल्प नहीं है. वाम दल का रज्जाक मोल्ला आज किस पार्टी में है ? क्यों सुजन चक्रवर्ती हार गये इतने ईमानदार होने के बाद भी”?

आम लोग बीजेपी में ही उम्मीद देख रहे हैं. जो हिंसा वाम शासन के समय होती थी अब ममता राज में वह कई गुना बढ़ गई है. न ममता ने रोजगार के लिए कुछ किया न ही बंद पड़े कल-कारखानों को चालू करने की दिशा में कोई कदम उठाया. हां, उन्होंने कन्याश्री नाम से एक सुंदर योजना जरूर शुरू की किन्तु उस एक सफल योजना से मुश्किलें हल नहीं हुईं.

नाम उजागर न करने की शर्त पर एक व्यक्ति ने बताया कि आज जो भाजपा के कार्यकर्त्ता मारे जा रहे हैं वे दरअसल तृणमूल के लिए काम करने वाले बदमाश थे. भाजपा के पास पैसे हैं और उसी पैसे का सारा खेला हो रहा है. किसी भी दल में जो उगाही करने वाले होते हैं वे समय और पैसे के हिसाब से दल बदल लेते हैं. उन्होंने पूछा, “सारदा चिट फंड का पैसा खाने वाला मुकुल राय आज किसी पार्टी में है”?

बंगाल के लोग वैचारिक रूप से कभी बहुत प्रगतिशील माने जाते थे किन्तु वे अपने धार्मिक कर्मकांड हमेशा पालते रहे. ममता शासन ने उस सेंटिमेंट को ठेस पहुँचाया है और बीजेपी ने उसे भुनाया है. इसलिए राज्य में आज साम्प्रदायिक माहौल बन गया है. यदि इसी तरह सब चलता रहा तो अगले चुनाव में ममता की हार होगी और हिंदुत्व की राजनीति करने वाली पार्टी की जीत होगी.

फिलहाल, बंगाल में भाजपा इस कोशिश में है कि वहां राष्ट्रपति शासन लगा कर अगले छह महीने में चुनाव करवा दिए जाये क्योंकि वर्तमान माहौल भाजपा के अनुकूल है. बंगाल में अगले साल शहरी निकाय के चुनाव हैं और 2021 में विधानसभा चुनाव होना है.


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