Gujarat Files-3: ”मैंने लिखित में आदेश मांगा तो वे मुझे घूरनेे लगे”!



राणा अयूब 

Gujarat Files-1

Gujarat Files-2

गुजरात दंगे के दौरान अहम लोगों में एक अशोक नारायण थे जो उस वक्‍त गृह सचिव थे। उनसे मेरी मुलाकात दिसंबर 2010 में हुई। वे एक आध्‍यात्मिक शख्‍स हैं जो ‘जियो और जीने दो’ में विश्‍वास करते हैं। वे दो किताबों के लेखक थे और उर्दू शायरी के मुरीद भी थे। मैंने उनसे चार दिन तक बात की, एक बार लंच पर भी।  


 

मुख्‍यमंत्री ने आपको जब संयम बरतने को कहा होगा (दंगा नियंत्रित करने के दौरान) तब तो आपको काफी गुस्‍सा आया होगा?

उन्‍होंने ऐसा नहीं किया। वे कभी काग़ज़ पर भी कुछ नहीं लिखते हैं। उनके पास अपने लोग हैं और उन लोगों व विश्‍व हिंदू परिषद के माध्‍यम से ही उनके संदेश निचले दरजे के पुलिस अफसरों तक पहुंचते रहे थ।

 

ऐसे में आप तो असहाय महसूस कर रहे होंगे?

बिलकुल। फिर हम कहते, ”ओह, ऐसा कैसे हो गया” लेकिन तब तो सब कुछ घट चुका था।

 

और जांच आयोगों के लिए कोई सबूत नहीं है?

कई बार तो खुद मंत्री सड़क पर खड़े होकर दंगा भड़काते थे। एक घटना ऐसी तब हुई जब मैं उनके कमरे में बैठा हुआ था और मेरे पास फोन आया। मैंने उन्‍हें बताया कि एक मंत्री ऐसा कर रहा है। उन्‍होंने पलट कर एक फोन किया। कम से कम उस बार तो उन्‍होंने (मोदी) फोन किया ही (किसी को)।

 

क्‍या वह बीजेपी का मंत्री था?

हां, उनका अपना मंत्री।

 

मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई कौन करेगा?

एक बात बताता हूं। गृह सचिव के बाद मैं सतर्कता विभाग का सचिव बना। आप जानती हैं कि हर राज्‍य में एक लोकयुक्‍त होता है जो मंत्रियों पर निगरानी रखता है। एक दिन मैं उनके पास गया… ईमानदारी से कहूं तो एसी वाले कमरों में मक्खियां नहीं होती हैं वरना मैं उसके बारे में यही कहता कि वो मक्खियां मार रहा था। मैंने पूछा ये क्‍या हो रहा है। वे बोले, सर क्‍या करें। मंत्रियों के खिलाफ कोई शिकायत ही नहीं करता। जब भ्रष्‍टाचार और रिश्‍वतखोरी के मामलों में लोग मंत्रियों को चुनौती देने के लिए तैयार ही नहीं हैं, तो दंगों में लिप्‍त मंत्रियों के खिलाफ जाने का वे साहस कैसे जुटा पाएंगे। किसकी शामत आई है।

 

वैसे भी वे सामने नहीं आते। वे इतने चतुर हैं और फोन पर इतनी चतुराई से बात करते हैं- वे अफसरों को फोन कर के कहते हैं, ”अच्‍छा, उस इलाके का ध्‍यान रखना।” एक आम आदमी के लिए इसका मतलब यह बनता है कि ”ध्‍यान रखना उस इलाके में दंगा न होने पाए” लेकिन हकीकत में इसका मतलब है कि ”ध्‍यान रखना उस इलाके में दंगा करवाना है।” वे खुद कोई काम नहीं करते, इसके लिए उनके एजेंटों की एक श्रृंखला है। फिर आप देखेंगे कि एफआइआर भीड़ के खिलाफ़ दर्ज किए जाते हैं। अब आप भीड़ को कैसे गिरफ्तार करेंगे?

 

तो क्‍या दंगों की जांच के लिए बने आयोग किसी काम के साबित नहीं हुए?

एक नानावती आयोग था जिससे आज तक कुछ भी नहीं निकला। वह अब तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप सका है।

 

मैं जब तक गृह सचिव रहा, मैंने निर्देश जारी किए थे कि बिना लिखित आदेश के कोई भी काम नहीं करना है। जंब बंद का आह्वान किया गया, तो मुख्‍य सचिव सुब्‍बाराव ने मुझे बुलाया और कहा कि वीएचपी के एक नेता प्रवीण तोगडि़या रैली करना चाहते हैं, इस पर मेरा क्‍या विचार है। मैंने कहा कि ऐसी कोई भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए वरना स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जा सकती है। मुख्‍यमंत्री को इस बारे में पता लग गया। वे बोले, आप ऐसा कैसे कह सकते हैं। हमें अनुमति देनी ही होगी। मैंने कहा ठीक है फिर, मुझे लिखकर दे दीजिए। वे (मोदी) मुझे घूरने लगे।

 

मुठभेड़ में हुई हत्‍याओं का मामला क्‍या है?

मुठभेड़ में हुई हत्‍याओं के पीछे धार्मिक कम, सियासी कारण ज्‍यादा हैं। सोहराबुद्दीन  का मामला देखिए। उसे नेताओं की शह पर मारा गया। अमित शाह इसी के चलते जेल में है। ऐसा हर जगह हो रहा है, यहां भी यही हो रहा है। फर्जी मुठभेड़ें या तो राजनीति प्रेरित होती हैं या फिर पुलिसवालों के अतिउत्‍साह का परिणाम।

 

गृह सचिव के बतौर आपके कार्यकाल में ऐसा नहीं हुआ होगा?

सोहराबुद्दीन (की मुठभेड़ में हत्‍या) नहीं… केवल एक। मैंने अफसरों से पूछा कि वे कर क्‍या रहे हैं… पक्‍का यह राजनीति प्रेरित होगा। मैंने डीजीपी से कहा, ”आप क्‍या कर रहे हैं?

 

दंगों की हकीकत पर आपको एक किताब लिखनी चाहिए।

मेरे ऊपर कौन भरोसा करेगा?

 

आप गृह सचिव थे?

कांग्रेस वाले कहेंगे कि तुम सरकार का हिस्‍सा थे इसलिए ‘उसने सरकार का पक्ष लिखा है।” बीजेपी भी मेरे लिखे से सहमत नहीं होगी। राजनीतिक दल वही मानेंगे जो वे मानना चाहते हैं।


(पत्रकार राणा अयूब ने मैथिली त्‍यागी के नाम से अंडरकवर रह कर गुजरात के कई आला अफसरों का स्टिंग किया था, जिसके आधार पर उन्‍होंने ”गुजरात फाइल्‍स” नाम की पुस्‍तक प्रकाशित की है। उसी पुस्‍तक के कुछ चुनिंदा संवाद मीडियाविजिल अपने हिंदी के पाठकों के लिए कड़ी में पेश कर रहा है। इस पुस्‍तक को अब तक मुख्‍यधारा के मीडिया में कहीं भी जगह नहीं मिली है। लेखिका का दावा है कि पुस्‍तक में शामिल सारे संवादों के वीडियो टेप उनके पास सुरक्षित हैं। इस सामग्री का कॉपीराइट राणा अयूब के पास है और मीडियाविजिल इसे उनकी पुस्‍तक से साभाार प्रस्‍तुत कर रहा है।)