ईवीएम में कैद लोकतंत्र और मीडिया की चुप्पी !



विष्णु राजगढ़िया

सनसनी मीडिया के जमाने में हर मुद्दे पर भ्रम ज्यादा बनता है, सच का पता कम चल पाता है। ईवीएम का मामला भी कुछ ऐसा ही है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अरविंद केजरीवाल ने ईवीएम पर गंभीर सवाल उठाए थे। लेकिन उन्होंने फिर से चुनाव की बात नहीं की। बेहद तर्कसंगत और ठोस मांग थी- “जिन EVM मशीनों के साथ VVPAT पर्ची लगी है, उन परिणामों की पर्चियों के साथ जांच करा ली जाए। यह बेहद आसान था और जरूरी भी। इसे क्यों नहीं माना गया, यह बात समझ से परे है। मीडिया ने भी इस बारीकी को स्पष्ट करने के बदले यही प्रचार जारी रखा कि अपनी हार छुपाने के लिए केजरीवाल यह मांग कर रहे हैं।

दिल्ली विधानसभा में ईवीएम की हैकिंग का प्रदर्शन भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रकरण है। इस प्रदर्शन को देखने प्रमुख विपक्षी दलों के महत्वपूर्ण नेता भी सदन में मौजूद थे। देश के जागरुक नागरिकों की भी गहरी दिलचस्पी थी। लेकिन अधिकांश टीवी चैनलों ने इस कार्यक्रम की उपेक्षा की। प्रारंभ में कुछ चैनलों ने दिल्ली विधानसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण प्रारंभ किया। लेकिन ज्योंहि यह बात सामने आई कि EVM मशीनों की हैकिंग का मामला प्रभावी तरीके से स्थापित हो सकता है, फौरन ज्यादातर समाचार चैनलों ने विधानसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण बंद कर दिया। यहां तक कि न्यूज़ बुलेटिन में भी विधानसभा की कार्यवाही दिखाने के बजाय कपिल मिश्रा या विजेंद्र गुप्ता के आरोपों को बार-बार दिखाया गया।

मीडिया ने यह स्पष्ट करना जरूरी नहीं समझा कि जब ईवीएम मशीन के साथ VVPAT की व्यवस्था है, तो चुनाव नतीजों से उसका मिलान नतीजे से क्यों नहीं किया जाता है? जबकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि सभी मशीनों में VVPAT की व्यवस्था की जाए ।

निर्वाचन आयोग यह मानने को तैयार नहीं कि ईवीएम में छेड़छाड़ संभव है। जबकि।आयोग के सामने अपनी विश्वसनीयता साबित करने की चुनौती है।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में 18 विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मिलकर ईवीएम सरकारी सवाल उठाए। कुछ समय पूर्व भिंड जिले में एक ईवीएम मशीन की जांच के दौरान मीडिया के सामने यह बात आई कि जितने भी बटन दबाए जा रहे हैं, सारे वोट भाजपा को जा रहे हैं। इसी तरह दो हाईकोर्ट द्वारा ईवीएम मशीनों को जब्त कर के उनकी जांच के आदेश दिए जा चुके हैं। दिल्ली के छतरपुर के एक बूथ में नगर निगम चुनाव के दौरान वास्तविक मतों तथा ईवीएम मतों के बीच 400 से भी ज्यादा वोट का फर्क आया। जबकि आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी की हार मात्र 2 वोट से हुई है।

लिहाजा ईवीएम में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ को खारिज कर देना जल्दबाजी होगी

9 मई को दिल्ली विधानसभा में सौरभ भारद्वाज ने ईवीएम में हैकिंग की पुष्टि की तकनीक के बारे में विस्तार से तकनीकी प्रदर्शन किया। इसके बाद उन्होंने मांग की कि चुनाव ईवीएम मशीन से ही कराए जाते रहें। उन्होंने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग नहीं की बल्कि कहा कि हर EVM में VVPAT की व्यवस्था हो। इससे हर मतदाता को मालूम होगा कि उसने किसे वोट दिया है। चुनाव के बाद कम से कम 25 फ़ीसदी ईवीएम मशीनों के परिणामों की VVPAT पर्चियों से जांच कराने का सुझाव आम आदमी पार्टी ने दिया है। यह बेहद तर्कसंगत और न्याय पूर्ण मांग है। इन 25 फ़ीसदी मशीनों का चयन रेंडम आधार पर करने की मांग की गई है। इसलिए अगर ईवीएम मशीनों में किसी भी प्रकार की टैंपरिंग की जाती है तो इसका इसके पकड़ में आने की काफी गुंजाइश रहेगी।

चुनावों में ईवीएम के उपयोग पर सवाल तो शुरू से लगते रहे हैं लेकिन पहली बार यह देश की राजनीति का एक बड़ा मुद्दा बन गया है दिल्ली विधानसभा ने 9 मई को विशेष सत्र बुलाकर ईवीएम में हैकिंग की संभावनाओं का एक डेमो दिखाया। इसके जरिए यह साबित करने की कोशिश की गई कि ईवीएम में छेड़छाड़ संभव है। इसे आम आदमी पार्टी ने भारत में लोकतंत्र पर एक बड़े खतरे के रुप में दिखाते हुए दिखाया। जाहिर है कि ईवीएम का मामला देश की राजनीति में लंबे समय तक छाया रहेगा।

ईवीएम का ताजा विवाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद से चर्चा में है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव रद्द करके बैलेट पेपर आधारित चुनाव कराने की मांग कर डाली। बाद में केजरीवाल ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया।

इवीएम के दुरूपयोग के आरोप पहली बार नहीं लगे हैं। खुद भाजपा के प्रमुख नेताओं से लेकर लगभग सभी दलों ने समय-समय पर इवीएम के खिलाफ मोरचा खोला है। भाजपा के बौद्धिक-कानूनी सेनापति डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने तो इवीएम के खिलाफ अनवरत अभियान चलाया और अदालतों में भी चुनौती दी। इवीएम के दुरूपयोग पर एक पुस्तक की भूमिका भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी। पंजाब के कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह भी एक समय इवीएम के खिलाफ जोरदार अभियान चला चुके हैं। रामविलास पासवान, ममता बनर्जी, लालू यादव से लेकर सीपीआइ-सीपीएम नेताओं द्वारा भी इवीएम के दुरूपयोग के आरोप लगाए जा चुके हैं।

हमारे देश में इवीएम का उपयोग सबसे पहले वर्ष 1982 में केरल में एक विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में प्रयोग के तौर पर कुछ बूथों पर हुआ था। इवीएम का सीमित उपयोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वर्ष 1999 से होना शुरू हुआ। 2004 में लोकसभा चुनाव पूरी तरह इवीएम से हुआ था। उसके बाद सारे चुनाव इवीएम द्वारा कराए जा रहे हैं। इवीएम के दुरूपयोग के आरोप के आलोक में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पालयट प्रोजेक्ट के तौर पर एक ट्रेकिंग सिस्टम का प्रयोग भी किया गया है।

किसी इलेक्ट्रोनिक प्रणाली में ऐसी छेड़छाड़ करना बेहद आसान है। फिर, हमारे देश में विभिन्न संवैधानिक या स्वायत्त संस्थाओं के बेरीढ़ लोगों द्वारा कठपुलती की तरह काम करने का इतिहास सत्तर साल पुराना है। इसलिए ऐसे आरोपों पर सहज ही भरोसा किया जा सकता है। लिहाजा, तकनीकी और संस्थागत तौर पर इवीएम का दुरूपयोग बेहद आसान और संभव है।

बेहतर होगा कि निर्वाचन आयोग इस मामले पर अपनी निष्पक्षता साबित करने की गंभीर कोशिश करे। 12 मई को सर्वदलीय बैठक में आयोग को यह अवसर मिल सकता है। मीडिया को भी अपनी वर्ल्ड रैंकिंग 136 से बेहतर करनी हो, तो इन चीजों में थोड़ी गम्भीरता दिखाए।



(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)