मीडिया क्यों चुप है पंजाब में आप की 20 सीटों पर ?



आम आदमी पार्टी ने पंजाब की 117 में से 20 सीटों पर जीत हासिल करके शानदार प्रवेश किया है। लेकिन मीडिया के बड़े हिस्से ने इस सफलता का महत्त्व सीमित करने के लिए अघोषित चुप्पी दिखाई है। जबकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी को मिली 20 सीटों की शानदार सफलता ने इसे राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी दस्तक की हैसियत दी है।

11 मार्च को घोषित नतीजों में भाजपा ने UP में भले ही बड़ी जीत पाई हो, पंजाब में आम आदमी पार्टी से बुरी तरह हार ने भाजपा नेताओं को भयभीत किया है। जहाँ कल तक भाजपा अकाली सरकार थी, वहां आम आदमी को पहली बार में 20 सीटें मिल जाना बड़ी सफलता है। अब भाजपा को यह भय है कि आम आदमी पार्टी तेजी से देश में भरोसेमंद विकल्प बनकर उभर सकती है।

यही कारण है कि एक तरफ मीडिया का बड़ा हिस्सा इस पर चुप है तो वहीँ भक्तों के सोशल मीडिया में प्रचार करके पंजाब में आम आदमी की 20 सीटों का महत्व कम दिखाने का हास्यास्पद प्रयास किया जा रहा है।

लेकिन इस संदर्भ में खुद भाजपा का ही एक दिलचस्प उदाहरण देखना महत्वपूर्ण होगा।

1980 में UP विधानसभा की कुल 425 सीटों में से बीजेपी को मात्र 11 सीटें नसीब हुई थीं। 1985 में भी 425 में मात्र 16 सीटें मिलीं। यानि 1980 में मात्र तीन प्रतिशत और 1985 में मात्र 4 प्रतिशत। जबकि पहली बार चुनाव लड़कर आम आदमी पार्टी ने 117 में से 20 सीटें हासिल कर लीं। यानी लगभग 18 प्रतिशत सीट आप को मिली। लिहाजा, अभी UP की विजय पर इठलाने वाले भक्त 1980 और 1985 भी याद कर लें और 2019 की चिंता करें जब जनता उनसे पांच साल का हिसाब मांगेगी।

सच तो यह है कि आम आदमी पार्टी ने पंजाब में 20 सीटें जीतकर जबरदस्त छलांग लगाई है। अब यह पंजाब की मुख्य विपक्षी पार्टी है।

दिल्ली के बाद पंजाब में प्रमुख राजनीतिक हैसियत लेकर आम आदमी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रमुख विकल्पी ताकत के तौर पर उभरने का संकेत दिया है। 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव लड़ने की भी घोषणा आप कर चुकी है।

कुछ भक्त जानबूझकर यह फैला रहे हैं कि पंजाब में आप को सफलता नहीं मिली। जबकि सच तो यह है कि आप के लिए यह बड़ी सफलता है। पहली बार किसी राज्य में चुनाव लड़कर 20 सीटें हासिल कर लेना बड़ी उपलब्धि है। जिस तरह भाजपा ने बड़े कारपोरेट घरानों और मीडिया के एक बड़े हिस्से को साथ लेकर देश में सांप्रदायिक विभाजन और कुप्रचार का दौर चला रखा है, उसमें सीमित साधनों और ईमानदार कोशिशों के जरिये आम आदमी पार्टी ने 20 सीटें हासिल करके देश में एक नई राजनीति की बुनियाद रख दी है।

ध्यान रहे कि कम्युनिस्ट पार्टियों ने 70 बरस तक इतनी कठिन तपस्या की है और उन पर कोई आरोप भी नहीँ। इसके बावजूद उन्हें दो-चार सीट जीतना भी कितना मुश्किल होता है। जबकि आप ने पहली बार पंजाब में चुनाव लड़कर 20 सीटें पाई और देश की प्रभावी विपक्षी पार्टी के तौर पर देश में उभरकर यह स्पष्ट कर दिया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव की लड़ाई भाजपा और आप के बीच ही होगी।

आम आदमी पार्टी ने गुजरात में 2017 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पूरी टीम झोंक दी है। साथ ही, अगले साल मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी है। ऐसे वक्त में, जब कांग्रेस की बुनियाद ध्वस्त हो चुकी हो और परम्परागत विपक्ष में कोई धार नहीं रह गई हो, आम आदमी पार्टी का यह उभार एक नई उम्मीद जगाता है। भाजपा परस्त मीडिया द्वारा पंजाब की नतीजों में आप की विजय को नजरअंदाज करने के पीछे यही भय काम कर रहा है, जबकि मीडिया को महज किसी एक दल की जयजयकार करने के बजाय अन्य दलों की।उपलब्धियां भी देखनी चाहिए।

डॉ.विष्णु राजगढ़िया
(लेखक वरिष्ठ पत्रकारऔर सामाजिक कार्यकर्ता हैं। राँची में रहते हैं।)