काँग्रेस ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ नहीं, अपने पुराने रास्ते पर जा रही है !



चंद्रभूषण

बीत रहे साल में हमने राजनीतिक स्तर पर काफी उथल-पुथल देखी है, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा चर्चा धर्म को लेकर कांग्रेस के बदलते रुख पर हुई है। कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी का पहले उत्तर प्रदेश, फिर गुजरात विधानसभा चुनाव में देवी-देवताओं के दर्शन के लिए जाने को एक चौंकाने वाली बात माना गया। यह सिलसिला संसद में तीन तलाक बिल पर कांग्रेस के बदले हुए रुख में भी जाहिर हुआ, जहां पार्टी ने तीस साल पहले शाह बानो मामले में अपनाए गए नजरिये को छोड़कर इस बिल को बिना किसी विरोध के पास हो जाने दिया।

कुछ विशेषज्ञों की राय है कि अपने इन कदमों के जरिये कांग्रेस ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की तरफ पलटी मार रही है। संभव है कि वह हिंदू धर्म का समूचा दायरा सत्तारूढ़ बीजेपी के कब्जे में चले जाने को लेकर चिंतित हो और एक टैक्टिकल रिट्रीट के तौर पर उसने अपने हाल तक के सेक्युलर, प्रो-माइनॉरिटी रुख में बदलाव लाने का फैसला किया हो। लेकिन कांग्रेस के 132 साल पुराने इतिहास से वाकिफ लोग यह जानते हैं कि भारत के स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व करने वाली इस पार्टी के लिए एक साथ धार्मिक और सेक्युलर होना, हिंदू धर्म में रची-बसी रहकर भी अन्य धर्मों के हितों की वकालत करना एक सामान्य बात रही है। उसकी यह सोच गांधीजी की प्रिय प्रार्थना ‘रघुपति राघव राजा राम…ईश्वर अल्ला तेरो नाम…’ में जाहिर होती थी, लेकिन इसे दार्शनिक अभिव्यक्ति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की रचना ‘हिंदू व्यू ऑफ लाइफ’ में मिली थी। यह किताब डॉ. राधाकृष्णन द्वारा 1926 में मैंचेस्टर कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दिए गए वक्तव्यों का संकलन है और इसे निर्विवाद रूप से हिंदू धर्म की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या के रूप में स्वीकार किया जाता है।

इस किताब में एक जगह वे कहते हैं, ‘हिंदू धर्म ईश्वर को लेकर किसी एक खास विचार को संपूर्ण मानव जाति के लिए मानक नहीं मानता। यह इस तथ्य को सहज भाव से अंगीकार करता है कि मानव जाति अपने ईश्वरीय लक्ष्य को कई स्तरों पर, कई दिशाओं से प्राप्त करने का प्रयास करती है। हिंदू धर्म इस खोज की हर अवस्था से लगाव महसूस करता है।’

आगे वे बताते हैं, ‘हिंदू धर्म किसी विशिष्ट कर्मकांड का नाम नहीं है। यह आध्यात्मिक चिंतन और बोध का एक व्यापक, जटिल समुच्चय है।’ रही बात अन्य धर्मों से रिश्ते की, तो हिंदू दर्शन का यह आधुनिक आचार्य स्पष्ट कहता है कि ‘जब तक हम अपने पास ज्योतिपुंज होने और बाकियों के अंधरे में भटकते फिरने के दावे करते रहेंगे, तब तक धार्मिक एकता और शांति हमारी पहुंच से बाहर ही रहेगी। ऐसा दावा हमारे संघर्ष को चुनौती देता है।’
हिंदुत्व की इस विराट सोच में तेरा-मेरा की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है। लिहाजा आने वाले समय में कांग्रेस खुले मन से इस रास्ते पर चलती है तो इसे उसका पलटी मारना नहीं, अपने पुराने रास्ते पर लौट आना कहा जाना चाहिए।

 
 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। नवभारत टाइम्स से जुड़े हैं।)