टीना डाबी के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया में दुष्प्रचार तेज़, निशाने पर आरक्षण .!



रिफ़त जावेद तेज़तर्रार पत्रकार हैं। बीबीसे से लेकर आजतक के अहम पदों पर काम करने के बाद उन्होंने “जनता का रिपोर्टर” नाम की एक ख़बरी वेबसाइट शुरू की है। हाल ही में इस वेबसाइट में किन्हीं अंकित श्रीवास्तव की पोस्ट जस की तस शेयर की है जो बता रही है कि इस साल की आईएस टॉपर टीना डाबी की क़ामयाबी के पीछे “आरक्षण की महिमा”‘ है और इस परीक्षा में  ”सर्वश्रेष्ठ” लोग नहीं चुने जा रहे हैं और यह भी कि जातिगत आरक्षण की व्यवस्था के ”पुनरावलोकन” का वक्त नहीं आ गया है।

अंकित श्रीवास्तव ने इसे साबित करने के लिए सीएसपी -2015 की अपनी और टीना डाबी की मार्कशीट लगाई है। जिसमें उन्हें टीना से 35 नंबर ज़्यादा मिले हैं। यानी अगर आरक्षण नहीं होता तो टीना को मुख्य परीक्षा देने का मौका नहीं मिलता। इसके बाद तो सोशल मीडिया में अंकित के साथ हुए “अन्याय” की कहानी की बाढ़ आ गई। कोई इसे आरक्षण का ”काला सच” बता रहा है तो कोई आरक्षण विरोध में क्रांति का बिगुल फूँक रहा है। एक बड़ी तादादा तो ऐसे लोगों की है जो इस बात को गोल कर गये कि यह किस्सा प्रिलिमनरी यानी प्रारंभिक परीक्षा का है और मुख्य परीक्षा में टीना ने मेरिट लिस्ट में पहला स्थान पाया है जो आरक्षित श्रेणी की गणना नहीं करती। हैरत की बात तो यह है कि ऐसी पोस्टों को बड़ी तादाद में पत्रकार (ज़ाहिर है सवर्ण ) लाइक भी कर रहे हैं जिनकी हालत यह है कि वे सामान्य श्रेणी का अर्थ सवर्ण से लगाती हैं।

देखा जाये तो यह किस्सा दुष्प्रचार से उलट आरक्षण के महत्व को स्थापित करता है। एक लड़की को प्रारंभिक परीक्षा में कोटे से चुना गया लेकिन मुख्य परीक्षा में आकर उसने अपनी प्रतिभा और मेहनत से खुद को सामान्य श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ साबित किया। इस कहानी का असल मर्म है कि एक दलित लड़की ने पहले ही प्रयास में सबको पीछे छोड़ दिया।

2015 की यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा में 9,45,9089 लोगों ने आवेदन किया था, जिनमें से 4.63 लाख लोग परीक्षा में शामिल हुए। इनमें से 15,008 को मुख्य परीक्षा के लिए बुलाय गया। सच्चाई यह है कि अनारक्षित वर्ग में अंकित इतने नंबर नहीं ला पाये कि वह चुने जा सकते। अगर उन्हें तुलना करनी ही थी तो अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के नंबर से करते। अगर टीना आरक्षित वर्ग से थीं, तो इस तुलना का क्या अर्थ ! लेकिन ब्राह्मणवादी संस्कार शायद एक दलित का सर्वश्रेष्ठ होना बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं और साबित करने में जुटे हैं कि टीना को अंकित से कम नंबर होने के बावजूद चुना गया !

वैसे, अंकित जैसे नौजवानों के साथ सहानुभूति होनी चाहिए जो असफल होकर देश की तमाम संवैधानिक व्यवस्थाओं को कोसने लगते हैं। असल संकट है रोज़गार, लेकिन उसका निदान जातिगत आरक्षण की जगह आर्थिक आरक्षण लागू करना नहीं है, क्योंकि  सरकारी नौकरियां इतनी कम हैं और होती जा रही हैं कि अगर किसी एक जाति के लिए सारी नौकरियाँ आरक्षित कर दी जाएँ तो भी अगल सौ साल तक उस एक जाति के नौजवानों की बेरोज़गारी दूर नहीं होगी। इसके लिए जिन क्रांतिकारी उपायों की ज़रूरत है, उसके बारे में अंकित जैसे नौजवान कभी सोचना भी नहीं चाहते।

पर सवाल यह है कि “जनता का रिपोर्टर” ने अंकित की पोस्ट को बिना संदर्भ स्पष्ट किये क्यों आगे बढ़ाया। क्या सिर्फ सोशल मीडिया में हज़ारों लाइक मिल जाने से कोई चीज़ सही हो जाती है। यूँ तो ऐसा तमाम न्यूज़ वेबसाइट कर रही हैं लेकिन जनता का रिपोर्टर कुछ ज़्यादा सजग होने का दावा करता है, तो सवाल पहले उससे ही। कहीं न कहीं यह पत्रकारिता के अंदर जमी मनुवादी दृष्टि का ही कमाल है…नहीं ?

पढ़िये, क्या है अंकित श्रीवास्तव की पोस्ट–

http://www.jantakareporter.com/blog/tina-dabis-success-is-a-miracle/45924