‘मोदी राज’ में पत्रकारों की जान आफ़त में, वाशिंगटन पोस्ट ने दुनिया को बताया..!



( द वाशिंगटन पोस्ट में यह लेख 16 मार्च को प्रकाशित हुआ था। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पत्रकारों पर हो रहे अभूतपूर्व हमलों की पड़ताल करते इस लेख का अनुवाद युवा पत्रकार शाहनवाज़ मलिक ने ख़ास मीडिया विजिल के पाठकों के लिए किया है। )  

क्या भारत असहमतियों के प्रति असहनशील हो गया है !  एक न्यूज़ चैनल पर चल रही इस बहस ने उस वक्त बुरा रूप ले लिया जब वहां आए मेहमान ने एक पैम्फ़लेट का हवाला दिया। पैम्फ़लेट में हिंदू देवी दुर्गा को सेक्स वर्कर बताया गया था। ये टिप्पणी प्रोग्राम की एंकर सिंधु सूर्यकुमार की तरफ से नहीं आई थी, बावजूद इसके उनपर देवी दुर्गा को अपमानित करने का आरोप लगा दिया गया। इसकी वजह से उन्हें धमकी भरे 25 सौ से ज़्यादा फोन कॉल आए।

केरल की पत्रकार सिंधु सूर्यकुमार ने बताया, ‘कुछ ने फोन करके कहा कि वे एसिड डालकर मुझे जला देंगे।’ पुलिस ने इस मामले में हिंदू अतिवादी संगठन आरएसएस के छह सदस्यों को गिरफ्तार किया जिसका सीधा संबंध शासन कर रही मौजूदा राष्ट्रवादी पार्टी से है। सूर्यकुमार समेत देश के कई पत्रकार कहते हैं कि मोदी सरकार और बीजेपी पर सवाल उठाने वाले प्रोग्राम बनाने के कारण उनपर हमला किया जा रहा है। देश में राष्ट्रभक्ति पर बहस चल रही है।

सूर्यकुमार जैसे पत्रकार जब कुछ सवालों के साथ इस विवाद पर बहस करना चाहते हैं तो हमले का शिकार होते हैं। इनके सवाल अमूमन यही होते हैं कि देशभक्ति की परिभाषा क्या होनी चाहिए… हिंदू या बहुसांस्कृतिक, धार्मिक या धर्मनिरपेक्ष और क्या असहमति को बर्दाश्त किया जाना चाहिए?

मोदी सरकार के सहयोगियों ने इस मुद्दे पर बेहद कड़ा रुख अपनाया है। वे सरकार की आलोचना को देश की आलोचना के तराज़ू में तौलने लगते हैं। पिछले महीने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, ‘भारत माता का अपमान करने वालों को देश कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता।’ वहीं गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट किया कि भारत विरोधी नारेबाज़ी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

पिछले हफ्ते देश की मशहूर टीवी एंकर बरखा दत्त ने पुलिस से शिकायत की कि उन्हें अज्ञात लोग गालियां और जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। वजह ये थी कि अन्य पत्रकारों की तरह बरखा दत्त भी जेएनयू में ‘भारत विरोधी नारेबाज़ी’ के बाद पैदा हुए विवाद को कवर कर रही थीं। यहां के स्टूडेंट्स 2013 में अफज़ल गुरु को चुपके से दी गई फांसी की आलोचना कर रहे थे। कश्मीरी अलगाववादी अफज़ल गुरू को फांसी पिछली सरकार के कार्यकाल में दी गई थी जिनपर संसद हमले का दोष सिद्ध हुआ था।

महिलाओं की तरफ से आयोजित एक कांफ्रेंस में बरखा दत्त ने बताया कि इस विषय पर रिपोर्टिंग के बाद से उन्हें रेप, यौन हिंसा और जान से मारने तक की धमकी दी जा रही है।

पिछले महीने देशद्रोह के आरोपी स्टूडेंट्स पर जब कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, तब उसी जगह पत्रकारों के साथ मारपीट की गई। उनके कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण तोड़ दिए गए। हमलावर पूछ रहे रहे थे कि छात्रों की गिरफ्तारी पर कवरेज हो रही है लेकिन इनकी भारत विरोधी नारेबाज़ी के ख़िलाफ़ उतरी जनता और उसके गुस्से को कवरेज नहीं मिल रही है।

इस हमले का शिकार प्रिंट, टीवी और एजेंसी के कई पत्रकार हुए। एसोसिएट प्रेस के फोटोग्राफर के हाथ में चोट आई और उनके कैमरे का लेंस टूट गया। पत्रकारों के बचाव में इंटरनेशनल कमिटी ने बयान जारी कर कहा, ‘इन हमलों ने भारत में प्रेस की आज़ादी की चिंता को और बढ़ाया है।’

इस मामले में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार की तरफ से पहला बयान दिया। सुनवाई के दौरान हुए हमले की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, ‘जो भी हुआ, वह भयावह लेकिन अपवाद था। अमूमन मीडिया को जनता अपना स्वभाविक सहयोगी मानती है। इस विवाद में मीडिया को खींचना और फिर उसपर हमला करना पूरी तरह अस्वीकार्य है।

भारत में पत्रकार पूरी तरह सुरक्षित कभी नहीं रहे हैं। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के मुताबिक 2010 से अभी तक 11 पत्रकारों की मौत हो चुकी है। इनमें से ज़्यादातर छोटे शहरों में काम कर रहे थे। स्थानीय स्तर के फैले भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग करते वक्त इन पत्रकारों की हत्या हुई।

प्रिंट और टीवी की अनुभवी पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी कहती हैं, ‘आप ख़ुद कभी एक पत्रकार के तौर पर कहानी नहीं बनना चाहते।’ स्वाति ने पिछले साल पुलिस से शिकायत की कि उन्हें हर दिन 300-400 धमकी भरे मैसेज आ रहे थे। स्वाति कहती हैं, ‘उन दिनों मैं बहुत डर गई थी, ऐसी हरकतों की वजह से सचमुच कभी भी दंगा भड़क सकता है।

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(स्वाति चतुर्वेदी)

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट राहुल जलाली कहते हैं, ‘कुछ सालों में धीरे-धीरे आए बदलाव को मैंने महसूस किया है। ये चिंताजनक है कि पत्रकारों पर इस तरह बढ़ते दबाव से आख़िर में उनकी विश्वसनीयता का नुकसान होगा।’ उन्होंने आगे कहा, ‘अब पत्रकारों तक के लिए भी संयमित स्पेस घटता जा रहा है। उन्हें पक्ष लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। बहुत बड़े पैमाने पर सेल्फ-सेन्सरशिप चल रही है। हम अपनी निष्पक्षता खोते जा रहे हैं, ये विनाशपूर्ण है।’

हालांकि राहुल जलाली को उम्मीद है कि मौजूदा संकट अस्थायी है। भारतीय मीडिया इससे पहले भी हुई कार्रवाई पर मज़बूती से डटा रहा है। 1974-77 में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाकर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था, तब भी मीडिया ने घुटने नहीं टेके थे। एंकर सूर्यकुमार के केस में पुलिस ने जिन छह लोगों को गिरफ्तार किया है, वे अतिवादी हिंदू संगठन आरएसएस के सदस्य हैं। इन्होंने सूर्यकुमार का मोबाइल नंबर भी सोशल मीडिया पर डाल दिया था। सत्ता पर काबिज़ मौजूदा पार्टी बीजेपी इसी संगठन का अनुसरण करती है।

सू्र्यकुमार ने कहा, ‘उग्र समर्थकों ने फोन पर मुझसे कहा कि मैं वेश्या का काम कर रही हूं।’

इस महीने की शुरुआत में आरएसएस के सभी छह आरोपी सदस्यों को ज़मानत मिल गई। बाहर आने के बाद संगठन ने इनका स्वागत किया है।

वहीं केरल बीजेपी के अध्यक्ष और आरएसएस के सदस्य कुम्मनम राजशेखरन ने इस विवाद में आरएसएस की भूमिका से साफ मना किया है। उन्होंने कहा कि सूर्यकुमार को जिसने भी फोन किया, अपनी इच्छा से किया। इसमें संगठन की कोई भूमिका नहीं है।

केरल स्थित पत्रकारों के संगठन के मुखिया सी. रहीम ने कहा, ‘ये समस्या इतनी बढ़ती जा रही है कि फ्री स्पीच को बचाए रखने के लिए अब पत्रकारों को समाज से मदद लेनी पड़ सकती है।’

रहीम के मुताबिक सूर्यकुमार के साथ हुआ हादसा एकमात्र या इस तरह का पहला मामला नहीं है। इससे पहले सभी पार्टियां ऐसी हरकत करने वालों की एक स्वर में निंदा करती थीं लेकिन अब ऐसे दोषियों को सांगठनिक समर्थन मिल रहा है।

न्यूज़ चैनल मनोरमा की संवाददाता आशा जावेद ने कहा, ‘मैंने महसूस किया है कि अब माहौल कम सुरक्षित होता जा रहा है। पहले हमने असहिष्णुता पर रिपोर्टिंग लेकिन अब ख़ुद उसका शिकार हो रहे हैं।’

ऐसे माहौल में पत्रकारों के लिए बेहद मुश्किल होता जा रहा है कि वे देश में उठ रहे तीखे मुद्दों को कैसे कवर करें। मिसाल के लिए क्या पब्लिक को सरकार की आलोचना की इजाज़त होनी चाहिए, दोषी आतंकियों के प्रति सहानुभूति दिखानी चाहिए, बीफ़ खाना चाहिए या फिर हिंदू देवी देवताओं का उपहास उड़ाना चाहिए।

भारतीय कानून के मुताबिक सांप्रदायिक तनाव और हिंसा को भड़काना गैरकानूनी है। बावजूद इसके, ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो हर उस चीज पर पाबंदी की मांग कर रहे हैं जो उन्हें भारत विरोधी दिख या महसूस हो रहा है। हालांकि अभी तक इन्होंने सीधे तौर पर पत्रकारों को निशाना नहीं बनाया है।

मुमकिन है कि भारत में बढ़ता यह संकट मौजूदा समय की मजबूरी हो। भारत की आबादी एक अरब 25 करोड़ है। इंटरनेट और स्मार्टफोन के लिए यह दुनिया के उभरते हुए बाज़ारों में से एक है। लंबे समय तक इतनी बड़ी आबादी जो एक दूसरे से कटी हुई थी, इंटरनेट आने के बाद ऑनलाइन चैटिंग इनके लिए नया और रोमांचकारी हो सकता है।

पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने कहा कि फिलहाल हालात ऐसे हैं कि आप मोदी के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं बोल सकते। अगर आपकी स्टोरी उन्हें पसंद नहीं आई तो वे आप पर हमला कर सकते हैं। ये उत्पीड़न की एक सुनियोजित व्यवस्था है जिसकी वजह से अंतत: ऐसे बहुत सारे लोग ख़ामोश कर दिए जाएंगे जिनमें लड़ने और डटे रहने वाला आत्मविश्वास नहीं है।

राहुल जलाली को भी इसी बात का सर्वाधिक डर है। जलाली कहते हैं, ‘भारत में बड़े पैमाने पर अख़बार गांवों में पढ़ा जाता है। इन्हें पढ़ने-सुनने के लिए लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं। इनमें से ज़्यादातर अभी भी मानते हैं कि अखबार में छपी रिपोर्ट पूरी तरह सच होती है। लेकिन जब उन्हें एक बार इसका एहसास हो जाएगा कि ख़बरे पूर्वाग्रह और झूठ का बंडल होती हैं, तो इसका सीधा असर हमारे लोकतंत्र पर पड़ेगा। हम फ्री स्पीच की गारंटी देने वाले लोग हैं। ऐसे में अगर हमारी ही फ्री स्पीच नहीं रहेगी, तो हम दूसरों की गारंटी कैसे सुनिश्चित कर पाएंगे।