जानिए, ‘अंतरात्मा कुमार’ पर कौन सी चोरी सिद्ध होने पर लगा 20 हज़ार जुर्माना !



नीतीश को भारी पड़ा बीस हजार का जुर्माना

 

विष्णु राजगढ़िया

 

नैतिकता के नए पैमाने तय करने के चक्कर में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बेहद अप्रिय स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। फिलहाल एक कॉपीराइट मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उन पर बीस हजार का जुर्माना लगा है। इससे विरोधियों को उन पर व्यंग्य का अवसर मिल गया है। लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार पर नकलची छात्रों जैसी कार्रवाई करने की मांग की है।

यह मामला बिहार को विशेष राज्य का दरजा देने की मांग पर नीतीश कुमार के अभियान से जुड़ा है। मई 2009 में पटना की चर्चित संस्था आद्री (एशियन डवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट) ने एक पुस्तक का प्रकाशन किया था। आद्री के सदस्य सचिव शैवाल गुप्ता द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक की प्रस्तावना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लिखी थी। जेएनयू के पूर्व छात्र अतुल कुमार सिंह के अनुसार यह किताब उनकी थीसिस की नकल करके प्रकाशित कराई गई है।

इस मामले का क्रमिक विकास इस प्रकार है :-

वादी अतुल कुमार सिंह ने जेएनयू में शोध के उपरांत वर्ष 2006 में अपनी थीसिस जमा की थी। उसका शीर्षक था- ‘रोल ऑफ स्टेट इन इकोनोमिक ट्रांस्फॉरमेशन : ए केस स्टडी ऑफ कन्टेम्परेरी बिहार।’

आद्री ने मई 2009 में ‘स्पेशल कैटेगरी स्टेटस : ए केस फॉर बिहार‘ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया था। इस पुस्तक की प्रस्तावना के रूप में नीतीश कुमार ने इसका अनुमोदन किया था।

पुस्तक प्रकाशन के बाद जेएनयू के पूर्व छात्र अतुल कुमार सिंह ने वर्ष 2010 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। अतुल का आरोप था कि यह पुस्तक में उनकी थीसिस की सामग्री चुराकर प्रकाशित की गई है। अतुल ने अन्य लोगों के साथ नीतीश कुमार को भी प्रतिवादी बनाते हुए उन पर कॉपीराइट का मामला दर्ज कराया था।

यही मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रहा है। नीतीश कुमार ने इस मामले में प्रतिवादी बनाने जाने को चुनौती देते हुए अपना नाम हटाने का अनुरोध किया था। उनका तर्क था कि उन्होंने पुस्तक का लेखक होने संबंधी दावा नहीं किया है बल्कि उन्होंने मात्र उस पुस्तक का अनुमोदन किया है।

लेकिन अदालत ने उनकी इस मांग को कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग बताते हुए बीस हजार रूपये का जुर्माना लगाया है। अदालत के अनुसार वादी अतुल कुमार सिंह के पास नीतीश कुमार को प्रतिवादी बनाने के लिए पर्याप्त आधार है। संयुक्त रजिस्ट्रार संजीव अग्रवाल ने नीतीश कुमार की यायिका को कानून की प्रक्रिया का दुरूपयोग करार दिया। अदालत ने कहा कि वादी यानी जेएनयू के छात्र को प्रतिवादी चुनने का अधिकार है।

अपनी याचिका में अतुल कुमार सिंह ने आरोप लगाया है कि उनकी शोध-सामग्री पर आधारित पुस्तक का प्रकाशन करते हुए प्रारंभ में नीतिश कुमार को ही लेखक बताया गया था। लेकिन याचिका दायर होने पर उन्हें सिर्फ प्रस्तावना या अनुमोदन तक सीमित कर दिया गया। अतुल कुमार सिंह ने इस मामले में प्रतिवादियों से पच्चीस लाख रूपये का मुआवजा दिलाने की मांग की है।

अतुल कुमार सिंह बिहार के सारण जिला के निवासी हैं। उन्होंने वर्ष 2004 में छपरा लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़ा था।

दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा राहत देने से इंकार करके बीस हजार रूपये का जुर्माना लगाए जाने से नीतीश कुमार की काफी किरकिरी हो रही है। सोशल मीडिया में उनकी खिल्ली उड़ रही है। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया-

‘अगर कोर्ट बीस हजार का जुर्माना तेजस्वी पर लगाता, तो नीतीश जी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांग लेते। है ना नीतीश जी?‘

तेजस्वी यादव के ही एक अन्य ट्वीट को लालू प्रसाद यादव ने री-ट्वीट किया-‘मुख्यमंत्री जी बताएं, किसी छात्र का शोध पेपर अपने नाम से छापना कौन-सी नैतिकता है? नैतिकता का निर्धारण सहूलियत से करने पर अंतरात्मा क्या बोलती है?‘

सोशल मीडिया में आ रहे संदेशों में नीतीश जी से नैतिकता और अंतरात्मा पर सवाल पूछे जा रहे हैं। किसी ने पूछा- ‘रूबी राय को जेल, और नीतीश कुमार को सिर्फ बीस हजार जुरमाना?‘

उल्लेखनीय है कि रूबी राय नामक छात्रा को गत दिनों बिहार टॉपर घोटाले में गिरफ्तार किया गया था।

इस बीच नीतीश कुमार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उक्त फैसले को चुनौती देने का संकेत दिया है। अदालत का फैसला चाहे जो आए, जब आए, फिलहाल तो तेजस्वी यादव पर आरोप लगने के कारण महागंठबंधन तोड़कर नीतीश कुमार ने जिस नैतिकता का प्रतिमान स्थापित करने की कोशिश की थी, उस पर गहरा प्रश्नचिह्न लग गया है। इस लिहाज से यह मात्र बीस हजार का जुर्माना भी नीतीश कुमार के लिए भारी पड़ा है।

विष्णु राजगढ़िया मशहूर आरटीआई और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। राँची में रहते हैं।