नव-नारद पुराण: संघप्रिय पत्रकारों को समझने के नौ आदि सूत्र

अभिषेक श्रीवास्तव
आयोजन Published On :


राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ द्वारा देश भर में पत्रकारों को बांटे जा रहे नारद पुरस्‍कारों की आखिर क्‍या मंशा है? इन पत्रकारों से संघ  भविष्‍य में क्‍या उम्‍मीद रखता है? 

 

बचपन से हम लोग सुनते आए हैं कि कोई व्‍यक्ति अगर यहां की बात वहां करता है, कानाफूसी करता है, चुगलखोरी करता है, झगड़ा लगाता है, तो उसे समाज-समुदाय में नारद मुनि कह दिया जाता है। परंपरागत रूप से श्रुति-स्‍मृति की ज्ञान धारा पर आधारित हमारे समाज में यह प्रयोग शायद उतना ही साधारण था जितना किसी नेत्रहीन को सूरदास कह देना या अपने को नुकसान पहुंचाने वाले किसी शख्‍स को कालिदास कह देना। कोई व्‍यक्ति अगर किसी कार्य विशेष में सक्षम हो लेकिन उसे करने से इनकार कर रहा हो, तो उसे प्रोत्‍साहित करने के लिए जामवन्‍त कह देने का एक चलन हुआ करता था। इस किस्‍म के संबोधन दरअसल समाज के विकास क्रम में पैदा हुई सामूहिक चेतना की ओर इशारा करते थे और बताते थे कि हमारे समाज ने अपने पौराणिक व ऐतिहासिक पात्रों को किस रूप में ग्रहण किया है। हाल फिलहाल तक ऐसा नहीं हुआ था कि सामाजिक चेतना में पैबस्‍त ऐसे पात्रों के साथ राज्‍यसत्‍ता या शासन की विचारधारा ने कोई छेड़छाड़ की हो। किसी आदमी का अगर रह-रह कर गुस्‍सा भड़कता हो, तो आज भी उसे परशुराम कह दिया जाता है।

 

हमारा समाज ऐसे ही आगे बढ़ा है। उसने पात्रों से जुड़े आख्‍यानों को रटने के बजाय उनकी मूल भावना को आत्‍मसात किया है, उसी हिसाब से पात्रों के चरित्र को अपनी सामूहिक स्‍मृति में बसाया है और अपने समाज में उन पात्रों की निशानदेही के बहाने अच्‍छे और बुरे गुणों की पहचान की है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि सत्‍ता की ओर से संगठित व सुनियोजित रूप से कुछ चुनिंदा पौराणिक व ऐतिहासिक पात्रों की खाल में भूसा भरा जा रहा है। यह पीछे देखने वाली सत्‍ताओं की, दिमागी रूप से पिछड़ी व समाजविरोधी सत्‍ताओं की खासियत होती है। समाज जब अतीत के पात्रों के इर्द-गिर्द लदे-फदे आख्‍यानों से खुद को मुक्‍त करने की प्रक्रिया में होता है, तब अचानक उसे ऐसी सत्‍ताएं याद दिलाती हैं कि ये पात्र कितने महत्‍वपूर्ण थे। सामाजिक चेतना में इनका महत्‍व स्‍थापित करने के लिए इनकी केंचुल में नए अर्थ भरे जाते हैं। कभी-कभार पुराने अर्थ भी नए तरीके से समझाए जाते हैं। इस तरह आगे बढ़ते हुए एक समाज को पिछड़ी हुई मानसिकता और सोच पर गर्व करने के लिए उकसाया जाता है। समाज के सबसे पिछड़े तत्‍व सत्‍ता के प्रायोजित आख्‍यानों को ले उड़ते हैं।

 

13346754_1263278000367427_9134163676416035893_n (2)

 

यह प्रक्रिया तब और सघन व तेज़ होती है जब सत्‍ता का डर व्‍यापक होता है। समाज के सबसे उन्‍नत तत्‍व जब सत्‍ता से डरने लग जाते हैं, तो उनके डर को इन पात्रों और आख्‍यानों के माध्‍यम से भुनाया जाता है और नए आदर्श गढ़े जाते हैं। कभी-कभार कुछ तटस्‍थ तत्‍वों को अपने पाले में मिलाने के लिए अतीत के गौरव का आवाहन करते हुए उन्‍हें सम्‍मानित किया जाता है, प्रलोभन दिया जाता है और इस प्रक्रिया में सत्‍ता के विचार को स्‍वीकार्यता दिलवा दी जाती है। भारत की पत्रकारिता में पिछले दो साल से आई नई सत्‍ता के दखल से यही सब कुछ हो रहा है, जिसमें तथाकथित ‘आदि संवाददाता’ नारद एक केंद्रीय पात्र बनकर उभरा है और उसके नाम पर दिए जाने वाले सम्‍मान-प्रलोभनों के ज़रिये आज मीडिया में उसके क्‍लोन गढ़े जा रहे हैं। यह बात सतह पर चाहे कितनी ही हास्‍यास्‍पद क्‍यों न लगती हो, लेकिन नारद के नाम पर पत्रकारों को अपने पाले में करने की केंद्रीय सत्‍ता की कवायद एक ऐसी व्‍यापक परियोजना का हिस्‍सा है जिसके समाजशास्‍त्र को समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे नारद से जुड़े आख्‍यानों तक जाना ही होगा। यह इसलिए ज़रूरी है क्‍योंकि मामला केवल नामी पत्रकारों के दांत निपोरते हुए नारद पुरस्‍कार ग्रहण करने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि आतंक के मामले में अदालतों द्वारा संदेह की श्रेणी में डाले गए कुछ रसूखदार व्‍यक्तियों के साथ पत्रकारों के सेल्‍फी खींचने तक जा चुका है। ज़ाहिर है, न हरिश्‍चंद्र बर्णवाल मूर्ख हैं और न ही इंद्रेश कुमार। नारद और इंद्र के इस नए समीकरण को समझना होगा।

 

hb

 


1. नारद- आदि संवाददाता

 

देव ऋषि नारद या नारद मुनि ब्रह्मा के पुत्र हैं और विष्‍णु के भक्‍त। उन्‍हें सकल ब्रह्माण्‍ड की सूचना रहती है। वे तथ्‍यों को तोड़-मरोड़ कर, आपस में घालमेल कर, अतिरंजित कर के सामने रखने और लोगों को उकसाने के लिए जाने जाते हैं। उन्‍हें सृष्टि का पहला पत्रकार माना जाता है। सृष्टि के पहले पत्रकार में ये गुण होना वाकई सावधान करने वाली बात होनी चाहिए। इसका मतलब यह है कि जो लोग ऐसा मानते हैं, उनके लिए पत्रकारिता की मूल परिभाषा में ही तथ्‍यों के साथ खिलवाड़ करना जुड़ा है। वे यह भी मानते हैं कि पहला पत्रकार तो जन्‍मना ब्राह्मण ही हो सकता है और उसका ब्रह्मा के मुख से पैदा होना तय है। इसका मतलब यह हुआ कि पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत वही होंगे जो पहले पत्रकार यानी नारद ने गढ़े थे। चूंकि नारद ब्राह्मण थे, इसलिए उनके द्वारा प्रतिपादित किया गया सिद्धांत भी ब्राह्मणों का हितैशी होगा और ज़ाहिर है कि वे अपनी जाति के खिलाफ़ ख़बरों को प्रसारित नहीं करेंगे। आज के संदर्भ में इसका मतलब यह बनेगा कि असल पत्रकार यानी नारद का पोता वही होगा जो सत्‍ताधारी तबकों के खिलाफ़ खबरें न चलाए, खुद उसी तबके का नुमाइंदा हो और ज़रूरत पड़ने पर अपनी कौम की रक्षा के लिए तथ्‍यों का घालमेल करने से न हिचके, जैसा कि नारद राक्षसों के मामले में इंद्र के साथ किया करते थे। आज का नारद अपनी इस भूमिका में उस हद तक जा सकता है जहां दो गुटों के बीच टकराव हो जाए, लड़ाई-झगड़ा हो जाए, बलवा हो जाए, लेकिन उसे इसका कोई गिला नहीं होगा क्‍योंकि उसने यह सब सत्‍ता समर्थित समुदाय, सत्‍ता की जाति, सत्‍ता के धर्म और सत्‍ता की अवधारणा वाले राष्‍ट्र के हित में किया था। इससे यह निष्‍कर्ष निकलता है कि आइबीएन-7 के सुमित अवस्‍थी लगायत तमाम नारदावतार पत्रकार अब से केवल हिंदू राष्‍ट्र के निर्माण के लिए, हिंदुओं के हित में और आरएसएस के निर्देश पर काम करेंगे तथा संघ/भाजपा के व्‍यापक परिवार के कुकृत्‍यों की ओर से आंखें मूंदे रहेंगे। आइबीएन-7 की इंद्रेश कुमार के साथ ली सेल्‍फी को देखकर हम एक कदम आगे जाकर कह सकते हैं कि आज से नारदावतार पत्रकार कट्टर हिंदुत्‍व और उसके आतंक को ग्‍लैमराइज़ करने का काम करेंगे। यह दो साल पहले प्रधानमंत्री के दिवाली मिलन समारोह में पत्रकारों द्वारा उनके साथ सेल्‍फी लेने की शुरू की गई परंपरा का स्‍वाभाविक विस्‍तार है।


2. नारद- गपबाज़

 

विष्‍णुपुराण में नारद का वर्णन कुछ इस प्रकार से किया गया है, ”नरम् नर समूहम् कलहेन ध्‍याति खंडायतिति”। इसका अर्थ हुआ कि लोगों के बीच जो झगड़े सुलगाता है उसका नाम नारद है। इसके आगे एक बात और है कि उसके मन में कोई मैल नहीं है और वह प्रतिशोध या प्रच्‍छन्‍न हित के चलते ऐसा नहीं करता। वह दरअसल सबके कल्‍याण के लिए काम करता है। लोगों में झगड़ा लगवाने वाला व्‍यक्ति सबके कल्‍याण के लिए कैसे काम कर सकता है? इसका एक ही मतलब बन सकता है। वो यह, कि कल्‍याण की परिभाषा उन दो गुटों से तय नहीं होती जिनके बीच में झगड़ा लगाया गया है बल्कि उसे कोई तीसरा तय कर रहा है। यानी नारद किसी तीसरे पक्ष के लिए दो पक्षों में विवाद पैदा करवाता है। वह तीसरा पक्ष कौन है? यह सवाल बहुत पहले धूमिल ने पूछा था। जो न रोटी खाता है, न बेलता है बल्कि रोटी से खेलता है, वह तीसरा आदमी कौन है? इसका जवाब संसद में अब भी नहीं मिलेगा क्‍योंकि संसद से लेकर सड़क तक सब जगह उसी का राज है। सारे नवनारद उसी के लिए काम करते हैं। ज़ाहिर है, जिसने पत्रकारों को नारद बनाकर सुशोभित किया है, तीसरा शख्‍स वही है। यानी नारद पुरस्‍कार पाने वालों का मैनडेट है कि वे आरएसएस के लिए ही काम करेंगे, और किसी के लिए। इससे यह भी साबित हो जाएगा आरएसएस सबका कल्‍याण चाहता है औश्र अगर कहीं कोई झगड़ा होता है तो उसे नारद यानी पत्रकार लगवाता है, आरएसएस नहीं।


3. नारद मुनि का व्‍यक्तित्‍व

 

वैसे तो नारद मुनि हमेश ही खिलंदड़े और उत्‍सा‍ही नजर आते हैं, लेकिन उनकी शख्सियत बहुत जटिल है। कई बार वे गंभीर और समझदार भी दिखते हैं। मिथकों की मानें तो उन्‍होंने विष्‍णु के कहने पर कई चमत्‍कारिक काम किए हैं। इसका मतलब यह है कि नारद बने पत्रकारों से आप हमेशा मूर्खताएं और छिछलेपन की उम्‍मीद नहीं कर सकते। वे आपको एकाध बार चौंका भी सकते हैं अपने काम से, लेकिन सनद रहे कि वह काम उनके आका आरएसएस  की शह पर ही किया गया होगा।


4. दैवीय संदेशवाहक

 

नारद को शब्‍दकल्‍पद्रुम भी कहते हैं यानी वह व्‍यक्ति जो भगवान का ज्ञान देता है। ”नरम् परमात्‍मा विषयकम् ज्ञानम् ददाति इति नारद:।” वह लगातार तीनों लोक में विचरण करता है और देव, दानव व मनुष्‍य तीनों को सूचनाएं देता है। इस मामले में नारद समाजवादी है। हमारा आज का नारद भी मास मीडिया में काम कर रहा है। ज़ाहिर है, वह क्‍लास को खबर नहीं दे सकता। उसकी खबरें सबके लिए हैं। वह सरकारी गोपनीय सूचनाएं प्रसारित कर के आज के दानवों को अलर्ट कर सकता है। वह आइएसआइएस की खबर चलाकर सरकार को अलर्ट कर सकता है। दोनों तरह की खबरों से जनता अलर्ट होती है। और जब अलर्ट करने को कुछ नहीं होता, तो वह भगवान का ज्ञान देता है। अश्‍वत्‍थामा, सीता, द्रौपदी, युधिष्ठिर, पांडव, आदि पात्रों की कहानियां चलाता है, स्‍वर्ग की सीढ़ी खोजता है और निर्मल बाबा जैसे आधुनिक भगवानों के प्रवचन सुनवाता है।


5. नारद ओर त्रिदेवी

 

एक बार त्रिदेवियों के बीच अहं का झगड़ा चल रहा था। शत युद्ध जारी था। नारद ने इसमें दखल दिया। वे हरेक के पास गए और बाकी दोनों की प्रशंसा कर डाली। बाकी दो पर अपना वर्चस्‍व प्रदर्शित करने के लिए प्रत्‍येक देवी ने चमत्‍कार करने का निर्णय लिया। ज्ञान की देवी सरस्‍वती ने एक गूंगे-बहरे व्‍यक्ति को रातोरात विद्वान बना डाला। धन की देवी लक्ष्‍मी ने एक गरीब महिला को महारानी बना दिया। पार्वती ने एक कायर को सेनापति बना डाला। जल्‍द ही एक बड़ा बवाल खड़ा हो गया जब इस रियासत के लोगों ने सेनापति के खिलाफ़ बग़ावत कर दी जिसने महारानी का तख्‍तापलट करने का प्रयास किया था क्‍योंकि महारानी उस विद्वान को इंडित करना चाह रही थीं जिसने उनके चारण में गाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद तीनों देवियों को अहसास हुआ कि यह सारी खुराफ़ात दरअसल नारद की थी। आज का नारद अपने आदिपुरुष के नक्‍शे कदमों पर चलते हुए किसी के भी मामले में  अनधिकृत दखल दे सकता है और इस तरीके से प्रतिक्रियाएं पैदा कर सकता है कि उसके लिए एक सनसनीखेज स्‍टोरी पैदा हो जाए। इसके लिए किसी को मूर्ख बनाना भी उसे स्‍वीकार है। यह मिथकीय घटना महिलाओं के प्रति नारद के व्‍यवहार की ओर भी इशारा करती है कि महिला चाहे कितनी ही शक्तिशाली क्‍यों न हो, नया नारद उसे दूसरी महिलाओं के खिलाफ खड़ा कर के अपना हित साध सकता है। यह महिलाओं के प्रति नारद बने पत्रकारों की उपयोगितावादी और पुरुषवादी द़ष्टि को दिखाता है। उनका आदि पुरुष भी चूंकि ऐसा ही था और पत्रकारों को नारद बनाने वाला संगठन आरएसएस भी महिलाओं के बारे में ऐसे ही सोचता है, इसलिए यह आदर्श स्थिति है।    


6. नारद और कंस

 

नारद को कंस के साथ गठजोड़ में कोई परहेज़ नहीं है। कंस की बहन देवकी की शादी वासुदेव के साथ होने पर दैवीय भविष्‍यवाणी हुई कि कंस की हत्‍या देवकी का आठवां पुत्र करेगा। कंस को यह ख़बर लगते ही उसने वासुदेव को कैद में डाल दिया लेकिन देवकी को छोड़े रखा। बाद में नारद ने कंस से गोपनीय मुलाकात कर के उसे बताया कि देवताओं ने उसे मारने की साजिश की है और उसके पिता उग्रसेन, देवकी और वासुदेव सब जाकर देवताओं से मिल गए हैं। ऐसा सुनते ही कंस ने अपने पिता और बहन को कैद कर लिया। इससे यह समझ में आता है कि किसी घटना की स्‍वाभाविकता और प्राकृतिक गति को आज का पत्रकार अपनी स्‍टोरी के लिए बाधित कर सकता है। सोचा जा सकता है कि यदि नारद ने कंस को खबर नहीं दी होती तो यह आख्‍यान किसी और रूप में हमारे सामने आता, लेकिन ऐसा कर के नारद ने स्‍वाभाविक घटनाक्रम को बीच में ही बदल डाला। नारद बना पत्रकार अपनी स्‍टोरी में सनसनी के तत्‍व को डालने के लिए खलनायक के साथ हाथ मिला सकता है, भले ही उससे किसी महिला और बच्‍चे की जान तक चली जाए। यह उसके आदि पुरुष का दिया आदर्श है।


7. नारद और कृष्‍ण

 

कंस तो दूसरे कारणों से कृष्‍ण पर हमला कर रहा था लेकिन नारद ने उसे बलराम और कृष्‍ण की असली पहचान बताई थी कि वे देवकी के सातवें और आठवें पुत्र हैं। ज़ाहिर है, इसके बाद भी कंस मारा गया। इससे यह समझ में आता है कि हमारा नारद बना आधुनिक पत्रकार दरअसल काम तो दैवीय सत्‍ता के लिए ही करेगा, भले ही सतही रूप से यह दिखता हो कि वह कंस यानी खलनायक के लिए काम कर रहा है। इसका आधुनिक संदर्भ में एक मतलब यह भी बनता है कि सत्‍ता जिस किसी को खलनायक, दुष्‍ट, दानव, राष्‍ट्रद्रोही आदि मानती है, नवनारद उसका संहार करने में सत्‍ता की मदद करता है। इस तरह से वह तटस्‍थ नहीं है बलिक उसका स्‍पष्‍ट पक्ष है। वह सत्‍ता का एजेंट है। नारद पुरस्‍कार से नवाज़ा गया हर पत्रकार अनिवार्यत: आरएसएस का एजेंट है।


8. पुस्‍तक विरोधी नारद

 

नारद एक बार कैलास पर्वत पर शंकर के दरबार में बैठे हुए थे। तभी अचानक ऋषि दुर्वासा किताबों का एक बंडल लेकर वहां पहुंचे और शिव के बगल में जाकर बैठ गए। शिव मुस्‍कराए और उनसे उनके अध्‍ययन के बारे में पूछने लगे। दुर्वासा ने बताया कि उन्‍होंने सारे ग्रंथ पढ़ लिए हैं। इस पर नारद खड़े हो गए और उन्‍होंने दुर्वासा को गधा कह दिया जो इतनी सारी किताबें ढोकर वहां ले आए हैं। दुर्वासा गुस्‍से से कांपने लगे। आज का नारद यानी संघप्रिय पत्रकार अपने आदि पुरुष की ही तरह किताब विरोधी हैं। उन्‍हें किताब पढ़ने वाला कोई आदमी गधा जान पड़ता है। जाहिर है, जब सत्‍ता का हाथ अपनी पीठ पर हो तो किसी पुस्‍तक की क्‍या ज़रूरत। किस्‍सा भी कुछ यों है कि एक बार एक नया संघी रंगरूट बड़े मन से किताब पढ़ रहा था कि अचानक गुरु गोलवलकर कमरे में प्रविष्‍ट हुए। उसे लगा कि गुरु खुश होंगे, शाबाशी देंगे। गुरु पठन-पाठन का दृश्‍य देखकर भड़क उठे और उन्‍होंने उसके हाथ से किताब छीन ली और निर्देश दिया कि वह जाकर शाखा लगाए, पढ़ने-लिखने से कुछ नहीं होगा। संघी जमातों में अपढ़ होना कोई दोष या अवगुण नहीं है। यह दैवीय संदेश है। फर्ज़ ये कि आज के नारदीय पत्रकार को पढ़ने-लिखने से सख्‍त बचना चाहिए।


9. नारद- ग्‍लोबल मुनि

 

नारद सही मायने में एक ग्‍लोबल देवता थे जिन्‍हें तीनों लोकों में विचरण करने के लिए किसी पासपोर्ट या वीज़ा की जरूरत नहीं होती थी। कहते हैं कि नारद को 64 विधाएं आती थीं। उन्‍हें ईश्‍वर का ‘मस्तिष्‍क’ भी कहा जाता है- यानी ऐसा शख्‍स जो जानता है कि भगवान क्‍या चाह रहा है। आज का संघप्रिय पत्रकार कहीं भी बिना रोकटोक के आ जा सकता है। इस सरकार के आने के बाद हम यह करामात हाफिज़ सईद के साथ वेदप्रताप वैदिक की मुलाकात में देख चुके हैं। चूंकि सत्‍ता का हाथ सिर पर है, तो उस पर कोई बंदिश नहीं है। वह अपने आका के ‘मन की बात’ जानता है। इसीलिए हम देखते हैं कि हर सप्‍ताह प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ के विषय पर ज़ी न्‍यूज़ ने एक हफ्ता अग्रिम में ही स्‍टोरी चलाई है और बाद में उसका जिक्र प्रधानमंत्री ने अपने शो में किया है। जो पत्रकार अपने संघी आकाओं के मन की बात जानेगा, वही सच्‍चे मायनों में ग्‍लोबल होगा। बाकी सारे पत्रकार लोकल हैं या फिर प(त्रकार ही नहीं हैं। छत्‍तीसगढ़ में एक पत्रकार को पत्रकार मानने से मना कर दिया गया और जेल में डाल दिया गया क्‍योंकि उसका नाम सूचना निदेशालय की सूची में दर्ज नहीं था। ज़ाहिर है, सरकारी सूची में होने से ही ईश्‍वर के निट जाने और उसका मन जानने का मौका मिलता है। जो इस सूची में नहीं है, वह नारद नहीं है।


नए युग के नारद- कुछ और तस्‍वीरें 

13321931_1263278050367422_8457973045256422909_n (2)???????????????????????????????????? 38_03_18_00_narad_jayanti_delhi_H@@IGHT_525_W@@IDTH_700 literature-senior-journalist-manmohan-sharma-got-narad-award-online-news-in-hindi-india narad-award

 


Related