राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कारों पर मीडिया की अज्ञानता का हिस्‍सेदार बनने से बचें, इसे पढ़ें

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मिहिर पंड्या

सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार ‘नीरजा’ को नहीं मिला है। यह मराठी फ़िल्म ‘कासव’ को मिला है। राम माधवानी की ‘नीरजा’ को बेस्ट हिन्दी फ़िल्म का पुरस्कार मिला है। जैसे ग्यारह अन्य भाषाओं में अन्य फ़िल्मों को मिला है। सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए स्वर्ण कमल हासिल करने वाले राजेश मापुसकर हैं, मराठी फ़िल्म ‘वेंटिलेटर’ के लिए।

सर्वश्रेष्ठ नायिका का पुरस्कार सोनम कपूर को नहीं मिला है। यह मलयालम फ़िल्म ‘मिन्नामीनुंगू’ के लिए सुरभि को मिला है। सोनम कपूर को निर्णायक मंडल का विशेष उल्लेख हासिल हुआ है ‘नीरजा’ के लिए। ठीक वैसे ही, जैसे अभिनेता आदिल हुसैन को और निर्देशक शुभाशीष भूटियानी को ‘मुक्ति भवन’ के लिए मिला है। ‘मुक्ति भवन’ के केंद्र में मृत्यु का प्रश्न है। इसके निर्देशक शुभाशीष की उम्र अभी 25 साल है। संयोग है, यह फ़िल्म आज ही सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई है।

बेस्ट नॉन-फ़ीचर फ़िल्म का स्वर्ण कमल प्रशंसित फ़िल्म ‘फायरफ्लाइज़ इन दि एबिस’ को मिला है। निर्देशक – चंद्रशेखर रेड्डी। इस साल यहां शर्ली और अमित की ‘दी सिनेमा ट्रैवेलर्स’ और अभय कुमार की ‘प्लासिबो’ जैसी शानदार फ़िल्में भी पुरस्कृत हुई हैं। क्या होगी इनके मुकाबले कोई फिक्शन फ़िल्म खड़ी! और कई सारे अजनबी नाम हैं मेरे लिए भी, जिन्हें मैंने अपनी आगामी मस्ट वाच सूची में शामिल कर लिया है।

बाक़ी ‘बिक चुकी है ये गोरमिंट’ तो पिछले साल ही साबित हो गया था, जब ‘बाहुबली’ ने सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का स्वर्ण कमल जीता था। उसके लिए अक्षय कुमार के पुरस्कार पाने का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं। लेकिन यहां भी ‘अक्षय को क्यों, आमिर को क्यों नहीं’ पूछकर मुख्यधारा मीडिया भारतीय सिनेमा के प्रति अपनी अज्ञानता ही प्रदर्शित कर रहा है। इसके हिस्सेदार मत बनिए। बल्कि इस साल तो पुरस्कारों में बॉलीवुड का आतंक कुछ कम नज़र आता है, हमें इसका ही संतोष करना चाहिए। और इस पचास से ज़्यादा पुरस्कारों की लंबी सूची में विभिन्न भारतीय भाषाओं के जो चंद अनदेखे मोती आज भी छिपे हैं, उन तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए।

(फेसबुक दीवार से साभार)


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