मीडिया के लिए एक दबाव समूह बनाने पर सहमति, पढ़िए पांचसूत्रीय संकल्प-पत्र

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6 मई 2017 को दिल्ली में ‘मीडिया : आज़ादी और जवाबदेही’ विषय पर आयोजित सम्मेलन में मीडिया की मौजूदा स्थिति पर व्यापक और गहन विचार-विमर्श के बाद निम्न संकल्प सामूहिक सहमति से पारित गया है: 

1. यह सभा इस बात पर गंभीर रूप से अपनी चिंता ज़ाहिर करती है कि चौथे खंभे के रूप में जिस मीडिया की परिकल्पना की गई थी, वह अपनी ज़िम्मेदारी से विमुख हो चुका है। कॉरपोरेट पूँजी से कॉरपोरेट हितों के लिए चलने वाले कारोबारी मीडिया संस्थानों में पिछले कुछ एक वर्षों में जिस क़िस्म की ख़बरों को चलाने और दबाने का चयनित प्रचलन बढ़ा है, वह जनसंचार के बुनियादी उसूलों के ख़िलाफ़ जाता है। यह सभा शासकवर्ग के हितों के साथ पूरी तरह नत्थी हो चुके और संविधान में वर्णित सामाजिक न्याय व बंधुत्व की बुनियादी भावना के ख़िलाफ़ सचेतन ढंग से काम कर रहे  मीडिया की कड़ी निंदा करती है।

2. जनता के व्यापक मुद्दों पर अधूरी ख़बरें देने, ख़बरों को छिपाने, दबाने और नकली तरीक़े से गढ़ने का जो चलन पिछले कुछ वर्षों में क़ायम हुआ है, उसने  सच और झूठ की विभाजक रेखा को धुँधला कर दिया है। अब एक सामान्य तथ्य को अतिरंजित सत्य में तब्दील किया जा सकता है और एक काल्पनिक झूठ को तथ्य बनाकर पेश किया जा सकता है। रोज़मर्रा के स्तर पर की जाने वाली इस सचेतन क़वायद ने ना सिर्फ़ समाज के सामूहिक विवेक पर हमला किया है बल्कि नैतिकता की स्थापित कसौटियों को भी कमज़ोर कर दिया है। लिहाज़ा लंबे समय से सहअस्तित्व के साथ चले आ रहे इस बहुलतावादी व समावेशी समाज के ताने-बाने के छिन्न-भिन्न होने का ख़तरा पैदा हो गया है। इससे  सामाजिक समरसता और सौहार्द के समक्ष अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया है। इस परिस्थिति में कभी-कभी एक सामान्य पाठक या दर्शक को ऐसा अहसास होने लगता है कि जैसे मीडिया ही इस राष्ट्र और समाज का प्राथमिक नियंता हो। इससे आम पत्रकारों की साख भी बुरी तरह प्रभावित हुई है जबकि मौजूदा मीडियातंत्र में उनका ज़बरदस्त तरीक़े से आर्थिक,मानसिक और शारीरिक शोषण हो रहा है। ना उनके काम के घंटे नियत हैं और ना ही उनकी नौकरी ही सुरक्षित है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है और यह सभा मीडिया की ऐसी विकृति कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने के लिए एक संस्थागत तंत्र विकसित करने की ज़रूरत महसूस करती है।

3. यह सभा उपर्युक्त तंत्र की स्थापना में दो बुनियादी  तत्वों की पहचान पर ज़ोर देती है- मीडिया पर निगरानी और जनता के प्रति मीडिया की जवाबदेही। इन दो तत्वों को प्राथमिक व दैनिक कार्यभार के तौर पर आत्मसात करते हुए यह सभा प्रस्ताव करती है कि सरोकारी पत्रकारों व समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले विवेकवान लोगों को साथ आकर एक मंच पर समस्या का निदान करना होगा।

4. इस सभा को एक दीर्घकालीन व आवश्यक प्रक्रिया का पहला पड़ाव मानते हुए संकल्प पारित किया जाता है कि यहाँ स्वीकार किए गए प्रस्तावों के आधार पर आगे की कार्यवाही का खाका तैयार किया जाएगा और कारोबारी मीडिया के लिए एक दबाव-समूह के गठन की दिशा में आगे क़दम बढ़ाया जाएगा।

5. यह दबाव समूह व्यावहारिक रूप से लोकतंत्र के पाँचवे स्तंभ के रूप में काम कर सके, सभा की यह सदिच्छा है। पाँचवे स्तंभ के रूप में इसकी जो भी शक्ल हो, लेकिन इसका बुनियादी कार्यभार लोकतंत्र (जिसके होने का आभास निरंतर कमज़ोर पड़ता जा रहा है) के बाक़ी चार स्तंभों पर निगरानी रखना और जनता के प्रति उनकी जवाबदेही को सुनिश्चित कराना होना चाहिए। सभा यह संकल्प पारित करती है कि जिस रूप में चौथे स्तंभ अवधारणा स्वीकार की गई थी, उसे निभा पाने में वह नाकाम हो चुका है और इसमें कोई भी सुधारवादी गुंजाइश नहीं बची है। हालाँकि कथित रूप से कुछ पत्रकार या संस्थान अभी भी बेहतर काम करने की कोशिश करते दिखते हैं पर ये ‘अपवाद’ नियम की ही पुष्टि करते हैं। दरअस्ल बाक़ी तीन स्तंभों के साथ नत्थी होना इस मीडिया की ढाँचागत बाध्यता बन चुका है। यही वजह है कि आज यह सभा पाँचवें स्तंभ की ज़रूरत को शिद्दत के साथ रेखाँकित करना ज़रूरी समझती है। इस पाँचवें स्तंभ में कैसा गारा-सीमेंट-चूना लगेगा और इसकी शक्ल कैसी होगी, यह सभा उसे तय करने की सामूहिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार करते हुए अध्यक्षमंडल से इस दिशा में पहल लेने का अनुरोध करती है।

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