करेली की गलियों से गोयनका अवार्ड तक..!


अखबार पत्रिकाओं के चस्के का पहला बडा असर दिखा सागर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की प्रवेश परीक्षा में जहां अपन अव्वल आये और विभागाध्यक्ष प्रदीप कृष्णात्रे जी की निगाहों में चढ गये।


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वरिष्ठ टी.वी.पत्रकार ब्रजेश राजपूत एबीपी चैनल के भोपाल ब्यूरो प्रमुख हैं। एक चैनल से दूसरे और दूसरे से तीसरे में उछल-कूद करने के दौर में मृदुभाषी ब्रजेश पिछले 15 सालों से इसी चैनल के साथ हैं। 2003 में स्टार न्यूज़ के नाम से जो 24 घंटे हिंदी चैनल शुरू हुआ था, ब्रजेश उसके हिस्से बने और यह सफ़र स्टार के एबीपी बनने के बाद भी जारी है। पिछले दिनों ब्रजेश को प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका अवार्ड मिला तो उन्होंने फ़ेसबुक पर अपने बचपन के दिनों को याद किया जिससे पता चलता है कि पढ़ने-लिखने की आदत होना किसी के पत्रकार बनने के लिए कितनी ज़रूरी है-संपादक


दिल्ली की हयात होटल का वाल रूम। लगातार आ रहीं मीडिया और राजनीति की हस्तियां। हाल के अंदर और बाहर लगे रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड के बडे पोस्टर और फ्लेक्स। छोटा सा मंच जहां गृह मंत्री राजनाथ सिंह और इंडियन एक्सप्रेस समूह के प्रमुख विवेक गोयनका हैं। उनके सामने बैठे हैं दिल्ली की राजनीति, पत्रकारिता और कानून से जुडी शख्शियतों के साथ चुने हुये अतिथि और मंच के कोने में एक तरफ हैं क्रम से बैठाये गये देश भर के पच्चीस पत्रकार जिनको साल २०१७ के इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिये चुना गया है। और जब इस सब के बीच में अपना नाम पुकारा जाता है तो थोडी देर को भरोसा नहीं होता।

मंच पर चढते समय दिल दिमाग करेली की गलियों की ओर दौड रहा था जहां नगर पालिका के प्राइमरी स्कूल में पढने के दौरान स्कूल के पास बनी नेताजी की चाय की दुकान पर आने वाले अखबारों को पढने को लालायित रहते थे। उसके बाद किताब पत्रिकाओं का ऐसा चस्का लगा कि स्टेशन पर जाकर धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के आने वाले बंडलों का इंतजार करते थे और पत्रिका के घर पर पहुंचने से पहले रास्ते में ही आधी पढकर चट कर जाया करते थे।खाना खाते खाते भी किताबें उन्पयास पढने का ऐसा चस्का जिस पर हमेशा डांट पढती थी। सरकारी हाई स्कूल तक पहुंचते पहुंचते उस दौरान करेली में चलने वाली सामान्य ज्ञान की सारी प्रतियोगिताओं में पुरस्कार मिलना तकरीबन तय होता था। इन सालों तक अखबार पत्रिकाओं के चस्के का पहला बडा असर दिखा सागर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की प्रवेश परीक्षा में जहां अपन अव्वल आये और विभागाध्यक्ष प्रदीप कृष्णात्रे जी की निगाहों में चढ गये। उसके बाद तो प्रदीप जी ने भटकने नहीं दिया और जिस पत्रकारिता विभाग में सिर्फ एक साल मौज मस्ती के लिये आये थे वो पत्रकारिता जिंदगी से जुड गयी और इन बीस सालों में पहचान दिलाने के साथ पत्रकारिता का रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड दिला रही है। 

गृहमंत्री राजनाथ सिंह जब मुझे पालिटिकल रिपोर्टिंग के लिये सम्मानित कर रहे थे तो बगल में लगी बडी एलईडी पर ‘ कहीं की ईंट कहीं का रोडा, शिवराज ने मोदी का सपना तोड़ा’ की कहानी बतायी जा रही थी। बालाघाट के सामाजिक कार्यकर्ता विवेक पवार ने जब फोन कर मुझे पीएम आवास पर हो रहे इस फर्जीवाडे की जानकारी दी थी तो भरोसा नहीं हो पा रहा था कि भ्रष्टाचार के सारे छेद बंद कर लागू की गयी इस योजना में भी भ्रष्टाचारियों ने सेंध लगा ली है। स्टोरी चलने के बाद पीएमओ से भी जांच आयी और सरकार के एक बडे अफसर ने हड़काया कि भई ऐसी कहानी क्यों दिखाते हो जिसमें मोदी साब हमारे सीएम साब से जबाव मांगे। स्वर्णिम मध्यप्रदेश की दूसरी स्टोरी भी किया कीजिये। मगर इतने सालों में ये तो सीख पाये हैं कि ऐसे मौकों पर नेता अफसरों को जबाव अगली बड़ी कहानी करके ही देना चाहिये। खैर इस बडे मौके पर अपने उन सारे संवाददाता साथियों को बडी विनम्रता से याद कर शुक्रिया कर रहा हूं जिन्होंने इतने सालों में बहुत बेहतर कहानियां बतायीं और हमने दिखायीं। शुक्रिया आरएनजी अवार्ड। शुक्रिया एबीपी न्यूज इन गौरव के पलों के लिये..

ब्रजेश राजपूत


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