छत्तीसगढ़ में ‘न्याय’ योजना शुरू कर के, कांग्रेस ने भाजपा के लिए चुनौती पेश की है?

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
संपादकीय Published On :


कांग्रेस ने गुरुवार, 21 मई, 2020 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर अपने द्वारा प्रशासित राज्य – छत्तीसगढ़ में राजीव गांधी के नाम से राहुल गांधी की ड्रीम पॉलिसी, ‘न्याय’ योजना लॉंच कर दी। ये वो योजना है, जिसको लेकर, कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरी थी और चुनाव हार गई थी। इसके बाद, इसके बारे में कोई ख़ास बात नहीं की जाती थी। लेकिन कोरोना संकट से उपजी बेरोज़गारी और आर्थिक महामारी के  बाद,राहुल गांधी समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं ने फिर से इस योजना के बारे में बात करनी शुरू की। राहुल गांधी ही नहीं, पी चिदंबरम से लेकर कांग्रेस के हर नेता ने केंद्र सरकार से कहा कि उसको ‘न्याय’ जैसी योजना लागू करनी चाहिए। तो क्या ये कांग्रेस का वो दांव है, जिसने गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है और अब सरकार को इसका कोई ठोस न सही, तो राजनैतिक जवाब देना ही होगा? इसको समझने के लिए हमको न्याय योजना के अतीत में चलना होगा, जो कोई बहुत पुराना नहीं है। 

1 साल, 1 महीना, 26 दिन पहले

तारीख़ थी, 25 मार्च-2019 और लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान इंडियन नेशनल कांग्रेस ने अपने मुताबिक सबसे बड़ा चुनावी दांव खेल दिया था। हमेशा की तरह, भारतीय राजनीति पूंजीवादियों के चंदे से समाजवाद का स्वांग रचती रही है। सरकार की ओर से वित्तीय घाटा सह कर, गरीबों के लिए योजनाओं का एलान होता है, चुनाव लड़े और कभी जीते भी जाते हैं – राजकोषीय घाटा भी होता है, बस गरीब तक योजना का लाभ कभी नहीं पहुंचता। राहुल गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट की जाने वाली ये योजना भी ऐसी ही एक योजना थी। लेकिन विचार के तौर पर ये एक क्रांतिकारी योजना ज़रूर थी। मक़सद था, सीधे आम आदमी के हाथ में कैश पहुंचाना। कांग्रेस ने इसे न्यूनतम आय योजना या संक्षेप में कैची शब्द ‘न्याय’ से पुकारा। घोषणा की गई कि कांग्रेस सरकार में आई तो देश के हर व्यक्ति कि न्यूनतम मासिक आय को 12 हज़ार रुपए पहुंचाएगी। वो जितना कमाता है, उस से जो भी अतिरिक्त रकम उसकी आय को 12 हज़ार पहुंचाने के लिए ज़रूरी होगी – वह रकम सरकार देगी। यानी कि आप 8,000 रुपए प्रतिमाह कमाते हैं तो 4,000 रुपए आपके ख़ाते में सरकार देगी। कहा गया कि देश के 5 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत सालाना, प्रति परिवार 72,000 रुपए दिए जाएंगे। ये योजना अपने आप में क्रांतिकारी थी। इससे सप्लाई और डिमांड के अनुपात को भी सुधारा जा सकता था। लेकिन इस पर जो खर्च सरकारों को करना होगा, वह कुल जीडीपी का 2 फीसदी और वित्तीय बजट का 13 फीसदी था। ख़ैर, कांग्रेस की ये योजना ज़ाहिर है कि गरीब के लिए थी और देश में अब चुनावों के नतीजे मध्य वर्ग तय करता है। उसे गरीबों की, अपने से ज्यादा चिंता समझ नहीं आई और कांग्रेस चुनाव हार गई। इसके बाद से कांग्रेस भी लगा कि ‘न्याय’ को भूल गई है।

2019 लोकसभा चुनाव के पहले न्याय योजना का एलान

सरकार से कोरोना काल तक

केंद्र में नरेंद्र मोदी फिर से पीएम बने और अपने कैबिनेट के साथ फिर से सरकार चलानी शुरु कर दी। अर्थव्यवस्था पर कोई सवाल किया जा सकता, इससे पहले ही गृह मंत्री ने सवाल बदल दिए और कश्मीर को सवाल बना दिया। सारे सवाल पलट गए, देशभक्ति और राष्ट्रवाद के ज्वार में ज़रूरी मुद्दे बह गए और कश्मीरी अपनी किस्मत को बद से बदतर होते देखते रहे। देश की अर्थव्यवस्था गिरती जा रही थी और बेरोज़गारी की दर बढ़ती जा रही थी। लेकिन अमित शाह को पता था कि कैसे भूखे पेटों के ऊपर जुड़े हाथों को नारों की मुद्रा में खड़ा कर देना है। तो संसद में नागरिकता संशोधन अधिनियम आ गया। सड़क पर आंदोलन शुरु हो गया और सरकार फिर सवालों से बच गई। इन सवालों का अंत करने के लिए सत्ता को दिल्ली दंगों से सहारा मिल गया। इस बीच राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और वो सीन में पहले की तरह नहीं थे।

लेकिन फिर मार्च की शुरुआत में कोरोना संकट गहराया और राहुल गांधी की भी वापसी हो गई। उनकी वापसी के साथ ही न्यूनतम आय योजना की भी वापसी हो गई। 

राहुल गांधी, कांग्रेस और न्याय 

कोरोना लॉकडाउन से साथ ही शुरु हुआ, तेज़ी से देश की अर्थव्यवस्था का और पतन और साथ ही श्रमिकों का अपने गृह राज्यों को पलायन। इसके साथ ही एक बार फिर से न्याय का नारा बुलंद होने लगा। राहुल गांधी ने अपने हर बयान, प्रेस कांफ्रेंस के साथ ही साथ – रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी के साथ अपने संवाद में भी न्याय योजना को प्रमोट करना शुरु कर दिया। इसी के साथ पूरी कांग्रेस न्याय योजना के प्रचार में फिर से लग गई। राहुल गांधी ने अपनी प्रेस वार्ता में भी न्याय योजना को लाने की सरकार से अपील की और ये भी कह डाला कि सरकार चाहें तो किसी भी और नाम से इसे लागू कर सकती है। कांग्रेस की हर प्रेस कांफ्रेंस में गरीबों तक कैश पहुंचाने की बात की जाने लगी। सरकार ने इसी बीच 20 लाख करोड़ के पैकेज का एलान कर दिया। लेकिन इसमें भी आर्थिक रूप से अभावग्रस्त समाज तक किसी तरह से नकदी पहुंचाने की कोई नीति नहीं दिखी।

छत्तीसगढ़ सरकार की ‘न्याय’ योजना का एलान

छत्तीसगढ़ सरकार की न्याय योजना 

ज़ाहिर है कि कोरोना काल में केंद्र सरकार की विफलताओं के समय में कांग्रेस के लिए ये एक मौका था। और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने, अपनी तमाम नाकामियों को छिपाने, आला कमान को खुश करने और भाजपा के सामने दांव खेलने के लिए 21 मई, 2020 को न्याय योजना का एलान कर दिया। छत्तीसगढ़ सरकार की न्याय योजना का मूलभूत सिद्धांत वही है, जो राहुल गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट का था – गरीबों के हाथ में नकदी पहुंचाना, जिससे स्थानीय बाज़ार में डिमांड बढ़े। इस योजना में 19 लाख धान, मक्का, गन्ना पैदा करने वाले किसानों के ख़ाते में सीधे 7500 रुपये जाएंगे। छत्तीसगढ़ सरकार के मुताबिक इस योजना के पहले चरण में धान फसल के लिए 18 लाख 34 हजार 834 किसानों को पहली किस्त के रूप में 1500 करोड़ रुपये की राशि दी जाएगी।
ज़ाहिर है कि ये राशि 12 हज़ार रुपए की तो नहीं है, लेकिन फिर भी 7,500 रुपए किसानों के लिए एक बड़ी रकम है। देखना ये होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार इसे लागू भी कर पाती है या तमाम और योजनाओं की तरह इसका हश्र भी सिर्फ फाइलों में धूल फांकने और दीवारों पर पोत दिए जाने तक महदूद हो जाएगा।

लेकिन ये भाजपा और केंद्र सरकार को चुनौती तो है ही 

हालांकि इस योजना का भविष्य छत्तीसगढ़ सरकार की नीयत से ही तय होगा, लेकिन फिर भी ये भाजपा और केंद्र सरकार के लिए एक राजनैतिक चुनौती है। 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में भी गरीब के हाथ में नकदी पहुंचाने का कोई तरीका सुस्पष्ट नहीं था। अभी भी जन-धन खाते में जो 500 रुपए सरकार दे रही है, उससे 1 हफ्ते भी भोजन नहीं खाया जा सकता है। ऐसे वक़्त में जब गरीब जनता के पास खाने को भी कुछ नहीं है, 500 रुपए की मदद केवल उसका मज़ाक उड़ाना है। मध्य वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग इतनी राशि अमूमन एक या दो वक्त के भोजन में खर्च कर देता है। रसोई गैस के सिलिंडर की कीमत का ज़िक्र करना यहां बेमानी है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस योजना के एलान के मौके पर ये कह ही दिया, ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना की ऐतिहासिक शुरुआत सीएम भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में हुई। उम्मीद है भारत सरकार इस अनूठी पहल से सीख लेगी।’

ज़ाहिर है कि ये योजना लागू करना कांग्रेस का एक राजनैतिक दांव है। ठीक वैसे ही, जैसे कि यूपी की सीमा पर बसें खड़ी कर देना, लेकिन ये दांव भाजपा के लिए एक कड़ी चुनौती साबित हो सकता है, अगर इसको छत्तीसगढ सरकार लागू कर सकी तो। ऐसे में ये सच है कि कांग्रेस ने गेंद भाजपा के पाले में डाल दी है। भाजपा अपने प्रशासित राज्यों या केंद्र में ऐसी कोई योजना लागू करेगी या नहीं, इसका इंतज़ार तो होना ही चाहिए, इंतज़ार इस बात का भी होना चाहिए कि क्या कांग्रेस प्रशासित राजस्थान और कांग्रेस की भागीदारी वाले महाराष्ट्र में भी इसे लागू किया जाएगा…

 

 

मयंक सक्सेना, मीडिया विजिल संपादकीय टीम का हिस्सा हैं। पूर्व टीवी पत्रकार हैं और अब मुंबई में फिल्म लेखन करते हैं।

 


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