स्वच्छ भारत में फंसा गरीब भारत..मध्य प्रदेश में शौचालय में इंसानों का क्वारेंटीन!

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
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कोरोना संकट ने जिस तरह से भारत में अमीर और गरीब की खाई को सबसे नंगे और विकृत रूप में सामने लाकर खड़ा कर दिया है, वह किसी और मौके पर शायद नहीं हुआ। लॉकडाउन के डेढ़ महीनों में हमने देखा कि कैसे कोरोना से फोरफ्रंट पर लड़ रहे डॉक्टर्स को घर खाली करने को कहा जा रहा था और उनके पास पीपीई किट्स नहीं थे, तो बालकनी में इससे निरपेक्ष होकर, इन्हीं को आभार प्रकट करने के लिए थाली बजाते लोग भी देखे। हमने देखा कि जिन दिनों गरीब, अपने गांव की पैदल यात्रा में रास्ते में ही दम तोड़ रहे थे, उन्ही दिनों देश की एक आबादी रात को कमरों की बत्तियां बुझा कर – खिड़कियों पर दीये जला रही थे। हमने बिना पीपीई इलाज के दौरान कोरोना से संक्रमित होते मेडिकोज़, सड़क पर पुलिस द्वारा पीटे जाते लोग, भूखे बच्चे, रोती औरतें, इलाज के लिए भटकते बीमार, सड़क पर फंसे मज़दूर, बेरोज़गार होते नौजवान देखे..हमने देखा कोरोना के नाम पर भी सांप्रदायिक नफ़रत को फैलते और भयानक छुआछूत को…और अब मध्य प्रदेश में हमने देखा एक दंपति को, जिसे क्वारंटीन किया जा रहा है…एक शौचालय में…जिसके बाहर गांधी का चश्मा है और लिखा है ‘स्वच्छ भारत’!

मध्य प्रदेश के राघोगढ़ की ये तस्वीरें, एक कहानी के ज़रिए कई कहानियां कहती हैं। इस तस्वीर में ये पति-पत्नी हैं, एक गांव टोडरा के भैयालाल सहरिया और उनकी पत्नी भूरीबाई सहरिया और इनके साथ इनके दो बच्चे भी हैं। इस प्रवासी मजदूर परिवार को राजस्थान से अपने गांव लौटने पर गांव के स्कूल के टायलेट में ही क्वॉरंटीन कर दिया गया। इस परिवार के सामने कोई विकल्प नहीं था, तो इसने आराम भी वहीं किया और खाना भी वहीं खाया। तस्वीरें जब वायरल हो गई, तो प्रशासन हरकत में आया और परिवार को शौचालय से स्कूल में शिफ्ट किया गया।

इसके बाद ज़िला प्रशासन ने बयान दिया कि ये जानकारी ही ग़लत है, तस्वीर तब खींची गई जब परिवार ख़ुद ही शौचालय में बैठ कर भोजन कर रहा था। हालांकि कुछ पत्रकारों को अलग-अलग अधिकारियों ने परस्पर विरोधाभासी बयान भी दिए। इलाके के सीइओ जितेंद्र धाकरे ने रविवार शाम तक इस मामले की जानकारी से इनकार किया तो राघोगढ़ के एसडीएम बृजेश शर्मा ने पत्रकारों से कहा कि इस संबंध में शिकायत मिली थी। मामला सामने आने के बाद तुरंत ही परिवार को शौचालय से निकालकर स्कूल में शिफ्ट कर दिया गया है और मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। सवाल ये है कि आखिर क्यों कोई भी व्यक्ति ख़ुद जाकर शौचालय में बैठ कर खाना खाने लगेगा, अगर वो ऐसा करने पर मजबूर नहीं होगा?

फिलहाल इस ख़बर को लिखे जाने तक किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई की ख़बर सामने नहीं आई है और ऐसा होने की उम्मीद भी कम ही दिखती है। लेकिन ये ख़बर ख़त्म होते-होते ये जान लीजिए कि ये गांव, जिस राघोगढ़ का हिस्सा है, वह पूर्व सीएम और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के गृहनगर और विधानसभा सीट का हिस्सा है और ये ज़िला है गुना, जहां से सांसद रहे हैं, हाल ही में कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए, ज्योतिरादित्य सिंधिया। 

इस शौचालय के अंदर है एक मज़दूर पति और पत्नी…साथ में हैं, उनके दो बच्चे…बाहर बच्चों के लिए सर्व शिक्षा अभियान के, पेंसिल पर सवार होकर उड़ते दो बच्चों की तस्वीर है..और लिखा है, सब पढ़ें-सब बढ़ें..अंदर बैठे, समाज के अपने आख़िरी आदमी से थोड़ा ही दूरी पर महात्मा गांधी का चश्मा बना है और लिखा है – स्वच्छ भारत…और थोड़ा सा और दूर लिखा है – ‘शौच के बाद साबुन से हाथ ज़रूर धोएं’। हमने तयशुदा तौर पर वो साबुन ईजाद कर लिया है, जिससे हम किसी भी सवाल, किसी भी मासूम की जान और किसी भी शोषण-उत्पीड़न के बाद, अपने हाथ धोकर साफ कर के आगे बढ़ जाते हैं। 


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