कानूनी प्रक्रिया दुरुस्त होती तो हिंदुत्व ब्रिगेड के कई चेहरे सलाखों के पीछे होते!

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प्रतिबद्ध वामपंथी पत्रकार एवं न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव से जुड़े हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष गाताड़े ने हाल में संघ के विचारक और एकात्‍म मानववाद के प्रणेता कहे जाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय पर बहुत अध्‍ययन कर के एक पुस्‍तक लिखी है। नवनिर्मिति, वर्धा, महाराष्ट्र द्वारा प्रकाशित इस पुस्‍तक का नाम है ”भाजपा के गांधी”। लेखक की सहर्ष सहमति से मीडियाविजिल अपने पाठकों के लिए इस पुस्‍तक के अध्‍यायों की एक श्रृंखला चला रहा है। इस कड़ी में प्रस्‍तुत है पुस्‍तक की दूसरी किस्‍त। (संपादक)

अध्याय 2 

नायक कैसे गढ़े जाते हैं?

 

लगभग 16 लाख आबादी के इस शहर इस्लामाबाद में 827 मस्जिदें हैं, जिनमें से कुछ के साथ मदरसे भी संलग्न हैं और ऐसे पवित्र स्थल जिनका अलग अलग स्तर का धार्मिक और राजनीतिक महत्व है। ‘‘सुंदर इस्लामाबाद’’ के इस संग्रह में एक अब नयी बढ़ोत्तरी हो रही है – मुमताज कादरी नामक उस शख्स की कब्र जो अब पवित्र स्थल बन गयी है – वही मुमताज कादरी जिसने वर्ष 2011 में पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर को बंदूकों की गोलियों से भून डाला था।

(https://www.dawn.com/news/1302289)

हिन्दुत्व अतिवादी नथुराम गोडसे – जो उस आतंकी मोडयूल का अगुआ था जिसने महात्मा गांधी की हत्या की – का बढ़ता सार्वजनिक महिमामण्डन हमारे समय की एक नोट करने लायक परिघटना है। याद करें उसके हिमायतियों की तरफ से इस ‘‘महान देशभक्त’’ के मंदिरों का देश भर में निर्माण करने की योजना भी बनी है। (http: //www. thehindu.com/ news/national/other-states/meerut-villagers-rally-against-godse-temple/article6754164.ece)  वैसे यह बात चुपचाप तरीके से लम्बे समय से चल रही है। शेष भारत में इस बात का खुलासा उस वक्त़ अचानक हुआ जब नांदेड बम धमाके हुए / अप्रैल 2006/ जब हिन्दू वर्चस्ववादी जमात के दो कार्यकर्ता – हिमांशु पानसे और नरेश राजकोण्डवार बम बनाते वक्त मारे गए।(Ref : Portents of Nanded, 27 May 2006, EPW, http://www.epw.in/journal/2006/21/commentary/portents-nanded.htmlhttp://www.thehindu.com/todays-paper/tp-opinion/Nanded-case-of-lost-leads-and-shoddy-investigation/article15333964.ece )

पुलिस द्वारा आगे जांच करने पर पता चला कि यही गिरोह सूबे के अन्य स्थानों में हुई आतंकी घटनाओं में शामिल था। इतना ही नहीं यह आतंकी समूह गोडसे का ‘‘शहादत दिवस’’ भी मनाता था, जिसमें भाषण देने के लिए हिन्दू राष्ट्रवादी तंजीमों के नेता पहुंचते थे। और यह सिलसिला विभिन्न शहरों में चल रहा था। सूबा महाराष्ट में एक नाटक लम्बे समय से चलता रहा है ‘‘मी नाथुराम बोलतोय’’ / मैं नाथुराम बोल रहा हूं/ जिसमें नाथुराम के नज़र से गांधी हत्या को देखा गया है और औचित्य प्रदान किया गया है। /संदर्भ 2/

निश्चित ही गोडसे कोई अपवाद नहीं है नायक को ‘गढ़ने’ की हिन्दुत्ववादियों की अन्तहीन सी लगनेवाली कवायद में।

हिन्दुत्व ब्रिगेड में ऐसे तमाम लोगों को चिन्हित किया जा सकता है, जो जनता के खिलाफ अपराध करने के मामलों में अपने आप को सलाखों के पीछे पा सकते थे – बशर्ते देश की कानूनी प्रक्रिया को सही ढंग से आगे बढ़ने दिया जाता। यह अलग बात है कि वह अभी भी न केवल सम्मानित नागरिक बने हुए हैं बल्कि महिमामंडित भी होते आए हैं। हम याद कर सकते हैं पचीस साल पुराना वह उथल पुथल भरा दौर जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया था और आज़ादी के बाद पहली दफा समूचे देश के पैमाने पर साम्प्रदायिकता का दावानल फैला था, तब इस मुहिम के एक ‘शिल्पकार’ को देश की राजधानी में ‘हिन्दू हृदय  सम्राट’ के तौर पर नवाज़ा गया था। हम कैसे भूल सकते हैं कि हिन्दुत्व के हिमायती एक स्थापित गुजराती लेखक की जन्मशती का भव्य आयोजन जिसमें कई मुख्यमंत्रियों एवं केसरिया पलटन के अग्रणी नेताओं ने शिरकत की थी, जिस शख्स ने एक साक्षात्कार में कहा था कि किस तरह 2002 की संगठित हिंसा को उन्होंने सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया था। (It had to be done, Hindutva  leader says of riots, Sheela Bhatt, 12 March 2002, www.rediff.com)) इतना ही नहीं वर्ष 2008 में जब मालेगांव बाम्बर्स के आतंकियों को – जिनके आतंकी मोडयूल का खुलासा जांबाज कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अफसर हेमन्त करकरे ने किया था – नाशिक एवं पुणे की अदालत में पेश किया गया था तब किस तरह हिन्दुत्ववादी जमातों के कार्यकर्ताओं ने इन अभियुक्तों पर गुलाब फूल की पंखुडिया बरसायी थी, जो सिलसिला फिर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी दोहराया गया था जब इस्लामिक आतंकी मुमताज कादरी को लाहौर अदालत में पेश किया गया था।

नायकों को ‘गढ़ने’ के अलावा हिन्दुत्ववादी संगठनों की यह भी पूरी कोशिश रही है कि उपनिवेशवादी विरोधी ऐतिहासिक संघर्ष के अग्रणियों को ही नहीं बल्कि सामाजिक मुक्ति की जुझारू लहर से सम्बद्ध रहे कर्णधारों को, अपने प्रोजेक्ट में समाहित किया जाए। /संदर्भ 3/ इसमें यह आस रहती है कि उन्हें ‘अपनाकर’ उनके पराक्रमों की छाया का गुणगान किया जाए और रफ्ता-रफ्ता उन्हें इस ढंग से तोड़ा मरोड़ा जाए कि उनकी रैडिकल सम्भावनाएं कम से कम जनता की निगाह में भोथरी पड़ें। आज नियमित चलनेवाली संघ की शाखाओं में भी यह आम बात है कि हिन्दुओं के महान नायकों की कतार में प्रातःस्मरणीयों की सूची में- जिन्हें संघ पहले से ही पूजता रहा है – गांधी और अंबेडकर भी शामिल कर दिए गए हैं। इस तरह यह बदलते वातावरण का ही परियाचक है कि उन्हें गांधी, अंबेडकर और पटेल को भी अपनाने में कोई संकोच नहीं है जबकि इन तीनों ने समय समय पर संघ के संकीर्ण नज़रिये का जोरदार विरोध किया था। पटेल जैसों ने तो गांधी हत्या में हिन्दुत्व के विचारों की छाया देखी थी तो अंबेडकर ने अपने अनुयायियों को आवाहन किया था कि -हिन्दू राज बनेगा तो वह आज़ादी के लिए खतरनाक साबित होगा।’ /संदर्भ 4/

अग्रणियों के ‘गढ़ने‘’ या ऐसे विशेष जनों को ‘‘समाहित’’ करने के अलावा उन्होंने एक तीसरा तरीका भी अपनाया है जिसमें उनकी कोशिश अपने ही नेताओं की साफसुथराकृत /सैनिटाइज्ड छवि को लोगों के बीच प्रोजेक्ट करने की रही है ताकि वह व्यापक आबादी के लिए अधिक स्वीकार्य हो। (http://www.catchnews.com/politics-news/deendayal-comic-strip-in-up-schools-haryana-univs-to-teach-golwalkar-savarkar-76767.html) यह अकारण नहीं कि सावरकर को भारतरत्न प्रदान करने की बात काफी समय से चल रही है जबकि इस बात के तमाम दस्तावेजी प्रमाण मौजूद हैं कि किस तरह अंदमान जेल में अपने बन्दी जीवन में उन्होंने ब्रिटिश सरकार के पास याचिकाएं भेजीं कि उन्हें रिहा किया जाए, किस तरह गांधी हत्या में कथित भूमिका को लेकर गोडसे जैसे आतंकियों पर चले मुकदमे में वह भी अभियुक्त बनाए गए थे और किस तरह जे एल कपूर आयोग ने -जिसने 60 के दशक के अन्त में इस मसले की नए सिरे से खोजबीन की थी, उन्होंने सबूतों के साथ स्पष्ट किया था कि किस तरह गांधी हत्या के प्रमुख साजिशकर्ताओं में वह शामिल थे। (http://www.frontline.in/static/html/fl2919/stories/20121005291911400 ; htm, https://thewire.in/140667/savarkar-gandhi-assassination)

न्यायमूर्ति जे एल कपूर ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि किस तरह ‘‘गोडसे उनका अनुयायी था’’ और किस तरह ‘‘सभी तथ्यों को मददेनज़र रखने के बाद यही बात स्पष्ट होती है कि ‘‘हत्या का यह षडयंत्र सावरकर एवं उनके समूह ने रचा था। /..”all these facts taken together were destructive of any theory other than the conspiracy to murder by Savarkar and his groupall these facts taken together were destructive of any theory other than the conspiracy to murder by Savarkar and his group/

पिछले दिनों यह भी ख़बर आयी थी कि केन्द्र सरकार संघ के दूसरे सुप्रीमो – जिनका विचारविश्व एवं कालखण्ड काफी विवादास्पद रहा है – गोलवलकर को ‘‘महान दार्शनिक और एक ‘‘मजबूत राष्ट्रवाद (robust nationalism) के’’ कर्णधार के तौर पर प्रोजेक्ट करने की योजना बना रही है। (https://www.telegraphindia.com/1170705/jsp/nation/story_160286.jsp)

यह अलग मसला है कि हिन्दू राष्ट्र के हिमायती एक भी नेता को हिन्दुत्व ब्रिगेड के उस विवादास्पद अतीत से अलग करके नहीं देखा जा सकता, जिसने इस कार्यभार को और चुनौतीपूर्ण बनाया है। इसके बावजूद इस दिशा में उनकी कोशिशें जारी हैं और केन्द्र तथा कई राज्यों में सत्ता हासिल करने के बाद तथा समाज के प्रबुद्ध तबके के एक हिस्से में उनके विश्वदृष्टिकोण  की अधिक स्वीकार्यता के बाद, इस कवायद को गोया पंख लगे हैं।


(जारी) 

पहला भाग