प्रपंचतंत्र : दो तोतों की कहानी

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अनिल यादव

बरेली के एक अखबार में गुमशुदा कॉलम में एक चिंतित मुद्रा में बैठे एक अधेड़ तोते का विज्ञापन छपा- ‘मेरा तोता, मिट्ठू, रंग हरा, नर, गले पर छल्ला, सेंट एंड्रोज स्कूल के पास, बदायूं रोड, सुभाष नगर, बरेली से दिनांक 20 अक्टूबर (शनिवार) 2018 को कहीं उड़ गया है. मिलने पर संपर्क करें. पता बताने वाले को उचित ईनाम दिया जाएगा. आम दिनों में इसका प्रभाव मनोहारी और मार्मिक होता कि कोई तोते को मेले में भटक गए बच्चे की तरह खोज रहा है. मेरे एक संपादक दोस्त ने इस तोते की फोटो को फेसबुक पर लगा दिया, जो प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं उनसे लगता है कि अब कोई भी तोता पहले जैसा पक्षी नहीं रहा. उसका कायांतरण हो चुका है.

सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल पहले जब सीबीआई को कांग्रेस के राज में हुए कोल ब्लाक आवंटन घोटाले की सुनवाई करते हुए सरकार के पिंजरे का तोता कहा था तो अंदाजा लगाना मुश्किल था कि एक दिन यह बिंब, उग्र हिंदुत्व की राजनीति में इतनी अहम भूमिका निभाएगा. सरकार का पिंजरा बड़े जतन से पाले और सिखाए गए दो तोतों की लड़ाई में टूट चुका है. मोदी सरकार की सांस अटकी हुई कि तोते जो सब कुछ जानते हैं न जाने क्या गुल खिलाएंगे. स्वाभाविक था कि एक और उत्पाती तोते की याद आए जो बहुत पहले मारखेज के मशहूर उपन्यास ‘लव इन द टाइम्स आफ कॉलरा’ में मिला था. छंटी हुई  गालियां बकने और राजनीतिक नारे लगाने के उस्ताद उस तोते ने एक पचास साल लंबे दाम्पत्य का अंत किया था और अनंत काल तक कही जाने वाली दो बूढ़ों की अमर प्रेमकथा की शुरूआत की थी.

उपन्यास में रॉयल पारमारिबो प्रजाति यह तोता एक नाविक से बारह रुपए में डा. जुवेनाल अरबिनो की पत्नी खरीद कर लाती है. डाक्टर पुराना रईस है जिसकी अपने शहर में हैसियत लगभग प्रधानमंत्री जैसी है. उसका रसूख सर्वव्यापी है और हर संस्था का मानद अध्यक्ष या सदस्य है. वह पहले तोता पालने के खिलाफ रहता है लेकिन एक दिन घर में चोर घुस आते हैं तो तोता कुत्ते की आवाज में भौकंता है और चोर-चोर चिल्ला कर उन्हें भगा देता है.

इसके बाद डाक्टर बीस साल तक उस तोते का इतना ख्याल रखता है जितना उसने कभी अपने बच्चों का नहीं रखा. उसे धाराप्रवाह फ्रेंच बोलना, धार्मिक कथाओं का पारायण और गणित के सवाल बिठाना सिखाता है. तोते की ख्याति इतनी फैल जाती है कि एक दिन गणराज्य के राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल के साथ उससे मुलाकात करने आते हैं. तोता, अपनी हैसियत बताने के लिए, दो घंटे की मुलाकात के दौरान सन्नाटा खींचे रहता है. एक शब्द नहीं बोलता.

एक बार तोता रसोई में कुछ करतब दिखा रहा होता है कि खौलते शोरबे की कड़ाही में जा गिरता है. एक रसोईया उसे छानकर निकाल लेता है. उसके पंख झड़ जाते हैं और उसे घर में घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है. डाक्टर को पता नहीं चलता कि दोबारा कब उसके पर निकल आए. एक दिन तोता लिबरल पार्टी जिंदाबाद का नारा लगाता हुआ काफी उत्पात मचाता है, उसे पकड़ने के लिए दमकल बुलाई जाती है लेकिन वह हाथ नहीं आता. एक दोपहर जब डाक्टर आराम कर रहा होता है, देखता है कि तोता घर के बाहर आम के पेड़ पर बैठा हुआ है. डाक्टर चिल्लाता है, दुष्ट कहीं का. तोता पलट कर जवाब देता है- डाक्टर तुम मुझसे ज्यादा दुष्ट हो. डाक्टर उसे पकड़ने के लिए पुचकारते हुए सीढ़ी लगाकर पेड़ पर चढ़ता है. तोता उसे लगातार जवाब देते हुए सरकता जाता है. अंततः जब डाक्टर उसे पकड़ लेता है तभी सीढ़ी से उसका पैर फिसलता है. डाक्टर पेड़ से गिर कर मर जाता है औऱ तोता उड़ जाता है. वह दोबारा तभी प्रकट होता है जब डाक्टर की बूढ़ी पत्नी का एक पुराना प्रेमी शोक प्रकट करने उसके घर आता है.

यह कहानी सुनाने का औचित्य यह है कि पिछले साढ़े चार साल से देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहानियां सुन रहा है. नोटबंदी के जरिए कालाधन वापस लाने, आतंकवाद खत्म करने की कहानी, स्विस बैंक से लाकर हर नागरिक के खाते में पंद्रह लाख डालने की कहानी, अरबों रुपए लेकर विदेश भागते पूंजीपतियों के जहाजों के शोर के बीच न खाऊंगा न खाने दूंगा की भ्रष्टाचार को खत्म करने वाली कर्णप्रिय कहानी, लगातार डूबती अर्थव्यवस्था के बीच देश को जगद्गुरू बनाने की कहानी, भीड़ द्वारा मुसलमानों की हत्याओं के बीच लोकतंत्र के फलने फूलने की कहानी. यह देश ज्यादातर समय कहानियों में जीता है. कभी-कभार लोगों का ध्यान यथार्थ की ओर भी चला जाता है.