तीसरे मंदिर का यहूदी सपना

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प्रकाश के रे 

हमारी दास्तान आठवीं सदी में उस इमारत के निर्माण तक पहुंची है, जो बनने के बाद से आज तक जेरूसलम की पहचान रही है- डोम ऑफ द रॉक यानी कुब्बत अल-सखरा. यूं तो शहर में होली सेपुखर चर्च और अल-अक्सा जैसी अनेक भव्य इमारतें हैं, पर टेंपल माउंट पर बनी इस इमारत के सुनहरे गुंबद का रुतबा ही कुछ और है. यहूदी टेंपल माउंट पर जब अपने तीसरे मंदिर की कल्पना करते हैं, तो उसका केंद्र यही सुनहरे गुंबद की इमारत होती है. दास्तान के इस सिलसिले को कुछ देर के लिए रोकते हैं और देखते हैं कि उस टेंपल माउंट पर और जेरूसलम शहर में इन दिनों क्या कुछ घट रहा है.

साल 2015 में यहूदियों पर हमलों के दौर के बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संसद सदस्यों के टेंपल माउंट पर जाने पर पाबंदी लगा दी थी. तीन साल बाद अब यह रोक हटा ली गयी है. हालांकि 2017 में माहौल का अंदाजा लगाने के लिए परीक्षण के तौर पर सांसदों का दल टेंपल माउंट गया था. उस समय अरबी सांसदों ने यह कहते हुए इस परीक्षण में हिस्सा लेने से मना कर दिया था कि उनकी जब मर्जी होगी, वे टेंपल माउंट जायेंगे और इसके लिए उन्हें नेतन्याहू की अनुमति की जरूरत नहीं है. अगस्त, 2017 में जब दो सांसदों को पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने टेंपल माउंट जाने के लिए मंजूरी दी थी, तब अमन-चैन के लिए कोशिश कर रहे यहूदी युवाओं के एक दल ने टेंपल माउंट के दरवाजे पर इसका विरोध किया था. उनका कहना था कि ऐसी कोशिशों से माहौल खराब होगा और यहूदियों की जान खतरे में पड़ेगी.

जिन दो सांसदों ने तब टेंपल माउंट की यात्रा कर वहां प्रार्थना की थी, उनमें यहूदा ग्लिक भी थे. ग्लिक उस पवित्र जगह पर यहूदियों के प्रार्थना करने के अधिकार के बेबाक समर्थक हैं. इस कारण वे फिलिस्तीनियों और अरब-इजरायलियों समेत शांति के पैरोकार इजरायलियों की आलोचना के निशाने पर रहते हैं. साल 2014 में उन पर एक फिलीस्तीनी ने जेरूसलम के एक सेमीनार में जानलेवा हमला भी किया था. तब ग्लिक टेंपल माउंट पर इजरायलियों के लौटने के विषय पर बोल रहे थे. गोली मारने से पहले फिलीस्तीनी ने उनसे माफी मांगी और कहा कि वह उनकी हत्या इसलिए कर रहा है कि वे अल-अक्सा के दुश्मन हैं.

जेरूसलम के भविष्य के शांतिपूर्ण निर्धारण और समुदायों के बीच विश्वास बनाने की कोशिश में लगे संस्थान इर-अमीम के अवीव तातारस्की ने कहा था कि सांसदों के टेंपल माउंट जाने की अनुमति दिये जाने से फिलीस्तीनी, जॉर्डन और आम मुस्लिमों में यही संदेश जायेगा कि इजरायली राज्य उन संगठनों को शह दे रहा है जो टेंपल माउंट पर नियंत्रण और डोम ऑफ द रॉक की जगह तीसरा मंदिर बनाने की आकांक्षा रखते हैं.

इन सब आशंकाओं के बावजूद तीन जुलाई को प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इजरायली संसद- क्नेसेट- के स्पीकर यूली एडेल्स्टीन को पत्र लिखकर कहा कि अब हर तीसरे महीने सांसद टेंपल माउंट की यात्रा कर सकेंगे. इस अधिकार का सबसे पहला इस्तेमाल कृषि मंत्री यूरी एलियल ने किया. उन्होंने भी टेंपल माउंट पर तीसरे यहूदी मंदिर की कामना की और कहा कि पवित्र स्थान पर यहूदी कर्मकांड करने की आकांक्षा पूरी होगी. एरियल के बाद जानेवाले अनेक सांसद भी तीसरे मंदिर के हामी रहे हैं.

इस फैसले से एक पखवाड़े पहले 18 जून को नेतन्याहू जॉर्डन के बादशाह अब्दुल्लाह से अम्मान में मिले थे. अब यह तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि दोनों नेताओं ने इजरायली सांसदों के टेंपल माउंट जाने के मसले पर चर्चा की थी या नहीं, पर अनुमान यही है कि बात हुई होगी. जॉर्डन के बादशाह टेंपल माउंट और वहां बनी इस्लामी इमारतों के संरक्षक हैं. अरब शासकों से इजरायल की बढ़ती नजदीकी भी नेतन्याहू के फैसले की वजह हो सकती है. जहां तक जॉर्डन की बात है, तो इजरायल ने जुलाई में ही तोपों-टैंकों के लिए बने जॉर्डन के एक शाही संग्रहालय के लिए देश में ही बना अपना एक अत्याधुनिक मरकावा टैंक तोहफे में दिया है. इस साल के शुरू में इजरायल ने जॉर्डन के अपने दूतावास को फिर से खोलने का फैसला भी लिया था जो जुलाई, 2017 से बंद था. उस समय इजरायली दूतावास के भीतर जॉर्डन के दो लोगों की हत्या हो गयी थी. इस घटना के लिए इजरायल ने माफी भी मांगी थी और मुआवजा देने का ऐलान भी किया था.

टेंपल माउंट पर कट्टर यहूदियों का आना-जाना लगातार बढ़ रहा है. साल 2017 में इनकी तादाद 22 हजार थी. येरायेह जैसी कुछ संस्थाएं इस कोशिश में लगी हैं कि वहां ज्यादा यहूदी आयें और अपने धार्मिक कार्य करें. जानकारों की मानें, तो ये समूह उस प्राचीन पवित्र स्थान का अनुभव हासिल करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनका प्रयास यह है कि उन्हीं के जीवन-काल में उन्हीं के हाथों मंदिर बनने का कार्य संपन्न हो. हालांकि यहूदी मान्यता यह है कि यहूदियों का तीसरा मंदिर मानव-निर्मित नहीं होगा, बल्कि स्वर्ग से पूरा बना-बनाया धरती पर अवतरित होगा. इस बात को लेकर यहूदी धार्मिक संप्रदायों में आपसी तल्खी भी रहती है तथा अनेक संप्रदाय और समूह फिलीस्तीन पर इजरायल के कब्जे और टेंपल माउंट पर दखल की कोशिशों का मुखर विरोध करते रहे हैं. अब कट्टर यहूदी सांसदों की आवाजाही से इलाके में तनाव बढ़ने की पूरी आशंका है.

इसी बीच जेरूसलम के मुफ्ती अकरामा साबरी की सदारत में होनेवाले एक सेमीनार पर इजरायली सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है. इसमें इजरायली मुस्लिम और तुर्क वक्फ के प्रतिनिधि भी शामिल होनेवाले थे और इसे फिलीस्तीनी अथॉरिटी का भी सहयोग मिला हुआ था. सरकार ने इस सेमीनार को इजरायल के खिलाफ जहर फैलाने की कवायद माना है. पत्थर और पेट्रोल बम फेंकने के शक में पूर्वी जेरूसलम से बीते दिनों में 44 फिलीस्तीनियों की गिरफ्तारी भी हुई है, जिनमें से अव्यस्कों समेत ज्यादातर को छोड़ दिया गया है.

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जेरूसलम की प्राचीनता में पिछले दिनों एक नया अध्याय जुड़ा है. शहर की पहाड़ियों के नीचे नौ हजार साल पुराना नियोलिथिक गांव मिला है. दो साल पहले उस जगह के नजदीक ही पांच हजार साल पुराने एक गांव के अवशेष मिले थे. हालांकि इन इलाकों में खेती 23 हजार साल पहले ही शुरू हो गयी थी, पर ये गांव पहली बस्तियां हैं जो पारिवारिक और सामाजिक स्थायित्व की ओर बढ़ने का संकेत देती हैं.

अक्टूबर में जेरूसलम के नये मेयर का चुनाव है. जेरूसलम मामलों के इजरायली मंत्री और कट्टरपंथी लिकुड पार्टी के नेता जीव एल्किन कई उम्मीदवारों में आगे हैं. इस बार दक्षिणपंथी सांसद और पूर्व मॉडल राचेल अजारिया भी मैदान में हैं और शहर की पहली महिला मेयर बनने की कोशिश कर रही हैं. इजरायल के सात दशकों के इतिहास में तीन बड़े शहरों- तेलअवीव, हाइफा और जेरूसलम- में कोई महिला कभी मेयर नहीं रही है. शहर के स्थानीय निकायों में 98 फीसदी पुरुष (201 में सिर्फ चार महिलाएं) हैं. आगामी चुनाव में टेंपल माउंट के साथ ईसाई धर्मस्थानों पर कर लगाने और उनकी संपत्ति कब्जाने के मामले भी मुद्दा होंगे, पर अनेक उम्मीदवार होने से सेकुलर वोटों के बंटवारे का लाभ कट्टरपंथी उम्मीदवारों को हो सकता है.


पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 

आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह  

नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई

दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है

ग्यारहवीं किस्तकर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत

बारहवीं किस्‍त: क्‍या ऑगस्‍टा यूडोकिया बेवफा थी!

तेरहवीं किस्त: जेरूसलम में रोमनों के आखिरी दिन

चौदहवीं किस्त: जेरूसलम में फारस का फितना 

पंद्रहवीं क़िस्त: जेरूसलम पर अतीत का अंतहीन साया 

सोलहवीं क़िस्त: जेरूसलम फिर रोमनों के हाथ में 

सत्रहवीं क़िस्त: गाज़ा में फिलिस्तीनियों की 37 लाशों पर जेरूसलम के अमेरिकी दूतावास का उद्घाटन!

अठारहवीं क़िस्त: आज का जेरूसलम: कुछ ज़रूरी तथ्य एवं आंकड़े 

उन्नीसवीं क़िस्त: इस्लाम में जेरूसलम: गाजा में इस्लाम 

बीसवीं क़िस्त: जेरूसलम में खलीफ़ा उम्र 

इक्कीसवीं क़िस्त: टेम्पल माउंट पहुंचा इस्लाम

बाइसवीं क़िस्त: जेरुसलम में सामी पंथों की सहिष्णुता 

तेईसवीं क़िस्त: टेम्पल माउंट पर सुनहरा गुम्बद