अन्त में खेल कौन करेगा? मायावती कि मुलायम?

राजशेखर त्रिपाठी
काॅलम Published On :


चाय है तो चर्चा है, चर्चा है तो चाय है, चाय पर चर्चा इस देश के चरित्र में शामिल है।

जब कुछ है तो चाय है, जब कुछ नहीं है तो चाय है। मरनी है तो चाय है, करनी है तो चाय है। रोज़गार है तो चाय है, बेरोज़गारी है तो चाय है। किस्सा कोताह ये कि टाइम कट रहा है… और इस देश में हर आदमी के पास इफ़रात टाइम है।

सवा अरब आदमी का टाइम मिलाकर देखिए कुल कितना टाइम होता है! तो कहने का मतलब ये कि इस टाइम का कटना ज़रूरी है…टाइम काटने के लिए फिर वही चाय  है। बड़े-बड़े शहरों में तो टाइम काटने के लिए कटिंग चाय है।

मोदी जी के लिए चाय पर चर्चा सिर्फ एक चुनाव का मामला था, लेकिन देश में चाय पर चर्चा सनातन है वो चली आ रही है और चलती जाएगी अहर्निश।

बीते हफ़्ते की चर्चा मैनपुरी से शुरु हुई और मुंबई तक गयी।

हैरान परेशान शाखा बाबू ने चाय का एक सुडुक्का मारा और पोते से टीवी की आवाज़ ऊंची करने को कहा। सारे देश की तरह उन्हें भी मुलायम सिंह यादव की आवाज़ समझने में मुश्किल पेश आती है।

उन्हें सिर्फ़ दो बातें गम्भीरता से समझ आयीं। एक ये कि मायावती जी का बहुत सम्मान करना…और दूसरी ये कि आख़िरी चुनाव है भारी बहुमत से जिताना।

छुट्टी का दिन था शाखा बाबू के सपूत घर पर ही मौजूद थे। शाखा बाबू ने पूछा

“कहो ई मुलयमा चाहता का है हो ?”

सपूत की रात वाली थोड़ी ज्यादा हो गयी थी। अगले दिन की छुट्टी का सोच कर एक पऊव्वा ज्यादा मार गए थे। सबेरे से सर भन्नाया हुआ था इसी भन्नाहट में बिना दूध की चाय सुड़कते बोले

“ऊ मरते-मरते एक बार परधानमंत्री बनना चाहता है….”

शाखा बाबू का मन भुनभुनाया “…स..सु..र…ई पीएम बनिहें”

“काहें बन काहे नाहीं सकता…बन ही जाएगा”

“अरे यार…तुमहूं लोग अजब बात करते हो। टांग कबर में लटकी है…स्टेज पर चढ़ने में चार आदमी लग रहे हैं। आँय का बाँय बोल रहा है और परधानमंत्री बनेगा”।

“अरे यार बाऊजी…हमसे पूछा क्या आपने और भैरंट कऊन बात पे हो रहे हो। आपने पूछा का चाहता है…हमने बता दिया। अब बने न बने ई तो गणित 23 मई के बाद का है नss। वइसे तो भरी संसद में मोदी को वापसी का आशिर्वाद देकर आया था”।

शाखा बाबू ‘वापसी का आशीर्वाद’ वाली बात सुन के गदगदा गए। मुलायम के बारे में अचानक राय बदली-बदली सी हो गयी।

“अरे ख़ैर…पुराना पालीटीसियन है। चीजों को समझता है। एक बार तो कहते हैं कि पीएम बनने-बनते रह गया था। ललुआ लकड़ी लगा दिया था।…हुंह…अहीर साले अपनों के ही नहीं है। अब सिवपालै का मामला देखो…”

शाखा बाबू बोले जा रहे थे सपूत चाय चुसकने के बाद उठ कर हाजत रफा करने बढ़ चुके थे।

हालांकि तब तक सुबह की शाखा वाले भाई जी ने दोपहर की दस्तक दे दी।

“अरे सुने हैं…साधवी ने का कहा ?”

“साधवीSSS…! ऊ कहां से उपरा गयी हो।“

शाखा बाबू की स्मृतियों में आज भी साध्वी का मतलब ऋतंभरा है। जिसका फायर ब्रांड कैसेट सुन कर शाखा बाबू का हिन्दू मन हुँकार मारने लगता था। वे बाबरी वाले दिन थे। लेकिन भाई जी साध्वी ऋतंभरा की नहीं साध्वी प्रज्ञा की बात लेकर आए थे।

ये और बात है कि हर साध्वी होती फायर ब्रांड है।

भाई जी ने शाखा बाबू की यादाश्त दुरुस्त की

“…अरे हम साधवी प्रज्ञा की बात कर रहे हैं। जिसको भोपाल से दिग्गी के ख़िलाफ़ खड़ा किया है”।

शाखा बाबू ने पूरा मामला समझा, फिर गहरी सांस ली।

“देखो साधवी का सराप है तो लगेगा। खाली नहीं जा सकता। लेकिन भाई जी एक बात बताओ सवा महीने में दिन केतना होता है ?”

भाई जी ने हिसाब लगाया

“एक महीने में 30 कहो चाहे 31 दिन, एक हफ़्ता ऊपर से रख लो”

“तो पैंतालिस दिन तो नहीं हुआ नSSS। साध्वी के गणना में थोड़ी गलती है।“

झुंझलाए हुए भाई जी ने कहा

“अरे महाराज…आप गणना ले के बइठे हो विरोधी पिले पड़े हैं। आखिर तो हेमंत करकरवा आतंकियों की गोली से मरा था…है कि नहीं ?”

शाखा बाबू गणना भूल कर भाई जी का मुंह ताकने लगे। मन तो उनका वही मान रहा था जो साध्वी कह रही थी, लेकिन दिमाग में कठबइठी कुछ और चलने लगी।

“ई बताइए दिगबिजइया का कह रहा है ?”

“ऊ बहुत घुटा खिलाड़ी है…गेंद तत्काल दुसरे पाले में फेंक दिया। अब चाहे साधवी सफाई दें चाहे पार्टी सफाई दे। सफाई एहरे से आनी है। टिबिया वाले बड़े दिन बाद बीजेपी को मन भर चहेंट रहे हैं”।

शाखा बाबू ने चटाचट कई चैनल बदले, लेकिन हर चैनल पर मायावती और मुलायम ही हाथ हिला रहे थे।

“ई खबरिया देखा कहां रहा है ?”

“अरे सबेरे से देखा रहा था महराज, अब मायावती और मुलायम खबर हो गए तो थोड़ा हल्का पड़ा है मामला !”

शाखा बाबू का ध्यान फिर मायावती और मुलायम पर चला गया।

“भाई जी एक बात बताइए…अखिलेसवा मायावती को परधानमंत्री बनाने का चुग्गा चुगा रहा है, और हमारे सपूत कह रहे हैं कि मुलायम खुदै परधानमंत्री बनना चाहते हैं। मल्लब हमारे समझ में कुछ आई नहीं रहा है कि आखिर खेल क्या हो रहा है”।

“महराज मुलायम के पेट की थाह लेना तो किसी के बस का नहीं है। देखे थे कि नहीं, परणव मुखरजी के राष्ट्रपति चुनाव में ममता बनरजी का कैसे कांड किया था। दिन भर साथे बैठा अगले दिन खेले बदल दिया। ममता छिछिया के रह गयीं…”

मतलब आप कह रहे हैं कि मायावती के साथ भी खेला कर देगा

हम कुछ नहीं कह रहे हैं…23 मई तक इंतजार करिए…फाइनल गणितवे करेगा। का जनि मायावतिए कौनो खेल कर दे !

शाखा बाबू इस बात पर हक्का-बक्का थे कि मायावती भी कोई खेल कर सकती है।

अचानक बदले हुए चैनल पर साध्वी चमकी

साध्वी ने बताया कि देश के दुश्मन उनके बयान का ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं इसलिए उन्हें अपने बयान का अफसोस है। कहने का मतलब ये था कि साध्वी को खेद है। साध्वी के लिए देश सबसे बड़ा है और उसके लिए वो कुछ भी कर सकती हैं। इसमें न शाखा बाबू को कोई संदेह है न भाई जी को। लेकिन मामला वहां फंस गया है कि 23 मई के बाद खेल कौन करेगा मायावती या मुलायम…

शाखा बाबू की बहू भाई जी के लिए चाय धर गयी मगर उनके लिए नहीं। शाखा बाबू ने झेंप मिटाते हुए कहा

“लीजिए…लीजिए…आप लीजिए…हम तो अब्बे पिए हैं”।

उनकी चाय का खेला हो चुका था।