‘देशद्रोही’ जेएनयू पढ़ाई और ‘देशभक्त’ बीएचयू दलित उत्पीड़न में अव्वल !

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जेएनयू को मिलेगा ‘विज़िटर्स अवार्ड’

साल भर पहले लगभग यही समय था जब हाहाकारी न्यूज़ चैनल दसों दिशाओं में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के देशद्रोही होने का ऐलान कर रहे थे। असली से लेकर नकली वीडियो फ़ुटेज के सहारे अरावली के छोर पर बसे इस विश्वविद्यालय पर चौतरफ़ा हमला हो रहा था। छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और कुछ अन्य छात्र गिरफ़्तार हुए और उनकी हाईकोर्ट परिसर में पिटाई हुई।

लेकिन जेएनयुू के छात्र अपने सम्मान की बहाली और हक़ों के लिए लड़ते रहे। दुनिया ने वहाँ के शिक्षकों का भी अभूतपूर्व प्रतिवाद देखा जब उन्होंने लगातार कई दिनों तक खुले आसमान तले राष्ट्रवाद की कक्षाएँ चलाईं और छात्रों के आंदोलन का समर्थन किया। सोशलमीडिया ने इस बहस को राष्ट्रव्यापी आयाम दिया। दुनिया भर में शिक्षकों के लेक्चर सुने और देखे गए।
किसी और विश्वविद्यालय के लिए ऐसी स्थिति शैक्षिक गतिविधियों के लिहाज से पिछड़ने की जायज़ वजह बन सकती थी। लेकिन जेएनयू के लिए यह शायद आम बात है। संघर्ष उसकी अदा है जो उसे और निखारता है। यही वजह है कि इस वर्ष उसे पढ़ाई लिखाई के लिहाज़ से देश का सर्वश्रेष्ठ केंद्रीय विश्वविद्यालय चुना गया है।

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 6 मार्च को जेएनयू के कुलपति एम.जगदीश कुमार को ‘विज़िटर्स अवार्ड’ नाम से मशहूर यह श्रेष्ठता सम्मान प्रदान करेंगे। राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालयों के विज़िटर हैं।

विज़िटर्स अवार्ड देने का सिलसिला 2015 में शुरू हुआ था ताकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता हो सके। इस अवार्ड के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय समेत नौ विश्वविद्यालयों ने आवेदन किया था।

जेएनयू को जिस चयन समिति ने इस सम्मान के योग्य पाया उसमें राष्ट्रपति के सचिव, उच्च शिक्षा और विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी विभाग के सचिव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन और विज्ञान एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक शामिल थे। इस सम्मान के लिए शिक्षा और अनुसंधान समेत कई श्रेणियों में विश्वविद्यालयों की उपलब्धियों को जाँचा-परखा जाता है।

वहीं, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मुताबिक वर्ष 2015-16 में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दलितों के साथ भेदभाव के सबसे ज़्यादा मामले बीएचयू में हुए। इस दौरान वहाँ 19 मामले दर्ज हुए। जातिगत भेदभाव के मामले में दूसरा नंबर रहा गुजरात विश्वविद्यालय का जहाँ 18 शिकायतें दर्ज की गईं। यूजीसी का यह आँकड़ा 6 फरवरी को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सामने आया।

यूजीसी के मुताबिक 2015-16 के दौरान 18 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दलित छात्रों के साथ भेदभाव की 102 शिकायतें दर्ज की गईं जबकि आदिवासी छात्रों के साथ भेदभाव की 40 शिकायतें दर्ज की गईं।

पिछले साल हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव का मसला बीच-बहस है।

दिलचस्प बात है कि बीएचयू के कुलपति प्रो.गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने बीएचयू में जातिगत भेदभाव के किसी मामले की जानकारी से इनकार किया है। यह अलग बात है कि यूजीसी ने सारी जानकारी विश्वविद्यालयों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर ही दी है।

प्रो.त्रिपाठी पर यह भी आरोप है कि उन्होंने बीएचयू को आरएसएस के नाम कर दिया है। आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी संगठनों की गतिविधियाँ वहाँ प्रतिबंधित हैं। यहाँ तक कि उन्होंने पुस्तकालय पर भी पहरा बैठा दिया है जो पहले 24 घंटे खुलती थी। प्रो.त्रिपाठी के मुताबिक लड़के-लड़कियों का साथ पुस्तकालय में देर तक बैठना ठीक नहीं है। पुस्तकालय खुलवाने के लिए आँदोलन हुआ तो 9 छात्र निलंबित कर दिए गए।

कुल मिलाकर दलितों के साथ भेदभाव चाहे होता हो, प्रो.त्रिपाठी के नेतृत्व में बीएचयू में “भारतीय संस्कृति’ का झंडा बुलंद है। इसके तहत बीएचयू के महिला महाविद्यालय की छात्राओं पर तरह-तरह के प्रतिबंध हैं। उन्हें इंटरनेट की सुविधाओं से वंचित रखा गया है। वे नौ बजे के बाद मोबाइल नहीं इस्तेमाल कर सकतीं और शाम आठ बजे तक हर हाल में हॉस्टल लौटना पड़ता है।

हाँ, प्रो.त्रिपाठी यह सार्वजनिक घोषणा कर चुके हैं कि वे आरएसएस के सदस्य हैंं।


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